World Tribal Day 2022: ये हैं झारखंड की वीरांगनाएं, जिन्होंने देश की मिट्टी को बचाने के लिए दिये थे प्राण
विश्व आदिवासी दिवस आज पूरे भारते में धूमधाम से मनाया जाएगा. कई राज्यों में इसे लेकर तमाम तरह के आयोजनों का आगाज हो रहा है. इस मौके पर झारखंड की उन आदिवासी वीरांगनाओं को याद कर रहा है, जिन्होंने इस देश की मिट्टी को विदेशियों से बचाने के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिये.
Ranchi news: 25 जुलाई, 2022 को आदिवासी समाज की महिला द्रौपदी मुर्मू ने भारत के15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं. झारखंड में आदिवासी महिलाओं की शहादत का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. विडंबना यह कि इतिहासकारों ने मध्य भारत के आदिवासी इलाकों पर समग्र दृष्टि नहीं डाली और इन वीरांगनाओं की गाथा तो इतिहास में और भी उपेक्षित रही. विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) पर झारखंड की उन आदिवासी वीरांगनाओं को याद कर रहा है, जिन्होंने इस देश की मिट्टी को विदेशियों से बचाने के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिये. आजादी के 75वें साल में ही इस देश के सर्वोच्च पद पर आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू का विराजमान होना भी ऐतिहासिक है, जो पूरे विश्व को भारत में आदिवासी गौरव का एहसास करा रहा है.
सिनगी दई और कइली दई
14वीं सदी में रोहतासगढ़ पर मुगल शासकों के आक्रमण को यहां के राजा की दो बेटियों सिनगी दई और कइली दई ने तीन बार विफल किया था. तीन बार मुगल सेना को परास्त करने की याद में उरांव स्त्रियां आज भी जनी शिकार का उत्सव मनाती हैं.
जिउरी पहाड़िन
पहाड़िया विद्रोह 1772- 1789 के कालक्रम में पहाड़िया महिलाओं ने अहम भूमिका निभायी. इनमें शहीद जिउरी पहाड़िन की चर्चा है, पर उनके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है. इस विद्रोह में वह सक्रिय रही थीं और अंग्रेजों के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया था.
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रुनिया और झुनिया
1828 से 1832 के काल क्रम में वीर बुधू भगत के साथ उनके बेटे हलधर व गिरधर और उनकी बेटियों रुनिया व झुनिया ने भी अंग्रेजों से लोहा लिया था. उनके दांत खट्टे किये थे. रुनिया और झुनिया युद्धकला में पारंगत थीं.
रत्नी खड़िया
1880 में खड़िया विद्रोह हुआ था. तेलंगा खड़िया कम उम्र में ही अंग्रेजों का मुकाबला करने लगे थे. इसमें उनकी पत्नी रत्नी खड़िया ने हर कदम पर उनका साथ दिया. तेलंगा खड़िया की हत्या के बाद भी रत्नी ने जोड़ी पंचायत का काम जारी रखा था.
फूलो और झानो
1855-56 के संताल विद्रोह के नायक चुनु मुर्मू और सुगी देलही की छह संतानों, सिदो, कान्हू, चांद व भैरव के साथ बहन फूलो व झानो का नाम भी सम्मान से लिया जाता है. फूलो और झानो ने अंग्रेजों की छावनी में घुस कर 21 अंग्रेज सिपाहियों की हत्या कर दी थी.
माकी, धीगी, नागे, लेंबू
वर्ष 1899 में जब अंग्रेजों की सेना ने बिरसा मुंडा के अनुयायी सरदार गया मुंडा के घर पर हमला बोला, तब उनकी पत्नी माकी, दो पुत्र वधुओं व बेटियों धीगी, नागे और लेंबू ने कुल्हाड़ी, लाठी, दउली और तलवार से अंग्रजों पर हमला बोल कर उनके दांत खट्टे कर दिये थे.