Exclusive: आदिवासियों का प्रकृति को ही आधार मानकर पूजा करने के पीछे क्या है कारण ?

आदिवासी दिवस के दिन देश के विभिन्न राज्यों में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता. झारखंड में भी इस दिन कई रंगारग कार्यक्रम समेत खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन होगा. इसमें देश के कई नामचीन शख्सियत शामिल होंगे

By Sameer Oraon | August 7, 2023 3:10 PM
an image

9 अगस्त को पूरा विश्व आदिवासी दिवस मनाएगा. दिसंबर 1994 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा ‘विश्व आदिवासी दिवस’ मनाने की घोषणा की गयी थी. इसका उद्देश्य आदिवासी के अधिकारों को संजोये रखना है. जिसमें जल, जंगल, जमीन शामिल हैं. इन तीन चीजों को बढ़ावा देने के अलावा उनकी सामाजिक, आर्थिक और न्यायायिक सुरक्षा में सशक्त करने के मकसद से भी इसे मनाया जाता है.

इस दिन देश के विभिन्न राज्यों में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता. झारखंड में भी इस दिन कई रंगारग कार्यक्रम समेत खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन होगा. इसमें देश के कई नामचीन शख्सियत शामिल होंगे. ऐसे में आम लोगों के मन में ये सवाल उठना लाजमी है कि आदिवासी कौन हैं और उनकी सांस्कृति क्या है? इन सारे सवालों का जवाब ढूंढने के लिए प्रभात खबर डॉट कॉम के प्रतिनिधि समीर उरांव ने डॉ अभय सागर मिंज से खास बातचीत की है.

Q. आदिवासियों के बारे में कहा जाता है कि वे प्रकृति पूजक हैं. प्रकृति को ही आधार मानकर पूजा करने के पीछे क्या कारण है

प्रचीन समय से ही इनकी जिंदगी जंगल और इसके आसपास ही रहा. अपनी सरलता के कारण जीवित रहने के लिए जो संसाधन चाहिए था, चाहे वो जैविक रूप से हो या सांस्कृतिक रूप से वो इनके आस पास ही रहा. उनके आस पास रहते रहते जब इनको प्रकृति के मूल्यों के बारे में पता चला तो वो उसे पूज्य या अराध्य मानने लगे. आदिवासी के बारे में कहा जाय तो ये उनके साथ सहजीवी वाला जीवन जीते हैं. दूसरा कारण ये है कि उनकी जो जीवन शैली है वो लालच से परे है. इनकी प्रवृति प्रकृति से लाभ कमाने की नहीं रहती. इसलिए उन्हें प्राकृतिक पूजक बोल दीजिए या सहजीवी दोनों एक ही है.

Also Read: विश्व आदिवासी दिवस: जर्मन हैंगर में सज रही झारखंडी संस्कृति, ये होगा आकर्षण का केंद्र

Q. आदिवासियों में गृह प्रवेश के समय में एक पूजा का प्रचलन है. इसे डंडा कट्टा पूजा कहा जाता है. दरअसल ये है क्या?

डंडा कट्टा को हम कुडुख में भाग खंडना भी कहते हैं. हर समुदाय में दो प्रकार की शक्तियों पर हमेशा विश्वास होता है. एक बुरी शक्तियां होती है और एक अच्छी शक्तियां होती हैं. डंडा कटने की प्रक्रिया में जो भी बुरी शक्तियां हैं उससे हमारा घर द्वार, पशु पक्षी आदि की सुरक्षा हो सके. सिर्फ गृह प्रवेश ही नहीं कि खेत खलिहान के पूजा में भी डंडा कट्टा किया जाता है. इस पूजा का मुख्य उद्देश्य यही है.

Q. आदिवासियों के बारे में कहा जाता है कि वे पिछड़े हैं, इस पर आपकी क्या राय है?

विकास को आप किस पैरामीटर में तौलते हैं. क्या आपकी सैलरी साल का 20 लाख हो या आप हवाई जहाज की सफर करने को विकसित की श्रेणी में लाते हैं. हर व्यक्ति के लिए विकास के मायने अलग अलग हैं. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी अपने पंचशील में कहा था कि आज आदिवासी खुश हैं. और वो हमसे ज्यादा खुश है तो विकसित कौन हुआ. सबसे बड़ी बात ये है कि आदिवासियों को आप किस रूप में देखते हैं. आज लोग उनकी क्या है इच्छा है इस बारे में कोई चर्चा नहीं करता है. बाहर बैठ के लोगों को लगता है कि अगर उनका मिट्टी का घर है तो वो पिछड़ा या आर्थिक रूप से कमजोर है.

अगर वो अपने लिए भोजन की व्यवस्था सही तरीके से कर पाते हैं और अपने पर्व त्योहार को मना पाता है तो अपने में वे विकसित हैं. आज पूरे विश्व में उनके जीवन शैली के बारे में में शोध हो रहा है. चाहे आप आईएल 17 देख लीजिए या फिर आईएलओ 169 देख लीजिए. सारे जगहों पर ये चर्चा होती है कि अगर पृथ्वी को बचाना है तो आदिवासियों से सीखना होगा. आज जो अपने आप को आदिवासी कहलाने में शर्म महसूस करते हैं उन्हें वापस आरक्षण का लाभ लेने के लिए वापस इसमें आना पड़ेगा.

Also Read: जनजातीय युवतियों से विवाह कर आरक्षण का लाभ लेना असंवैधानिक, बजरंग दल की बैठक में बोले VHP के मिलिंद परांडे

Q.किसी भी शुभ कार्यक्रम में हड़िया का प्रचलन बड़ा आम है, इसकी क्या बड़ी वजह है

हड़िया या किसी भी तरह का मादक पेय पदार्थ एक सामाजिक प्रक्रिया है. ये इंसान तभी पीता है जब वो इंसान किसी चीज से बहुत ज्यादा परेशान हो. आदिवासी समाज में जब मोनोटाइज इकॉनोमी नहीं थी तब रोपा के समय बनी का कॉन्सेप्ट नहीं था. तब सब लोग मिलजुल कर रोपा रोपने के बाद खाने पीने, नाचने गाने और हड़िया की प्रथा थी. उस वक्त कैश इकॉनोमी नहीं होने के कारण हड़िया एक सोशल बैंकिंग का बड़ा कॉन्सेप्ट था.

वो दिन भर की थकान मिटाने का एक जरिया था, जो सीमित मात्रा में लिया जाए तो कारगर है. लेकिन अब लोग इसे असीमित मात्रा में लेने लगे हैं वो गलत है. ऐसा नहीं है कि अब आदिवासी समाज ही केवल हड़िया पीता है. क्या आज जो शराब की दुकानों के बाहर लाइन लगी होती है वो क्या सब आदिवासी समाज के लोग ही होते हैं? जिस व्यक्ति से आपने उसकी जमीन छीन ली है, उनसे आपने उसका जंगल छीन लिया है तो वो क्या करेगा? कई बार ये भी देखने को मिलता है कि लोग उनको शराब की लत लगा देते हैं. हाड़िया में इस्तेमाल होने वाला रानू कई बीमारियों के लिए कारगर है. ये बॉटनी ने भी साबित किया है. सीमित मात्रा में इसका इस्तेमाल अच्छा है.

हमारा समाज पुरुष प्रधान है. लेकिन आदिवासी समुदाय के बारे में ये कहना उचित नहीं है. क्या ऐसे उदाहरण दे सकते हैं जिसमें ये कहा जा सके कि महिलाओं को भी ट्राइबल में समान रूप से दर्जा दिया जाता है?

इसका बड़ा साधारण से उदाहरण है कि आदिवासी समाज में सभी महिलाएं, पुरुषों के साथ में मिलकर खेत में काम करती है. दादा दादी एक साथ बैठकर हड़िया का सेवन करते हैं. हालांकि धार्मिक अधिकार अब भी उनको पूरी तरीके से नहीं मिले हैं. लेकिन इसकी भी अनुमति बहुत जगहों पर मिल चुकी हैं. धार्मिक अनुष्ठानों पर अनुमति मिलने के भी की कारण हैं. क्योंकि आदिवासी लोग पूजा करते समय पुरखों को गोहरते हैं. ये महिलाओं के लिए थोड़ा असहज होता है कि वे अपने बुजुर्ग या ससुर का नाम कैसे लगी? दूसरा कारण ये है कि भूलवश अगर उनसे किसी बुजुर्ग का नाम छूट जाए तो इसे अशुभ माना जाता है. लेकिन अगर इसके अलावा देखेंगे तो जब कोई स्त्री किसी के घर में शादी करके आती है तो उनको भी उनकी संपत्ति में उतना ही अधिकार मिलता है जितना कि एक पुरुष को. दूसरी बात ये है कि आदिवासी किसी भी सांस्कृतिक पर्व में महिला और पुरुष साथ में नाचते गाते हैं. यूं कह लें तो उनके बिना पूरा नहीं होता है.

Also Read: झारखंड की असिंता अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव में ले रही हैं हिस्सा, असुर समुदाय से भाग लेने वाली पहली महिला

Q. आदिवासी समाज में शादी की क्या विशेषता है?

आदिवासियों में शादी की रस्म बिल्कुल वैज्ञानिक पद्धति से होती है. सुबह जब सूर्योदय होती है तब सिंदूर दान होता है. और जब सिंदूर की रस्म होती है तो उसको चारों ओर से ढका जाता है. जिसको चुपकी शादी कहते हैं. और सिंदूर दान के समय में केवल वैवाहिक व्यक्ति ही उसे देख सकता है. आदिवासी समाज के लोगों ने विवाह को बहुत पवित्र माना है. क्योंकि इस विवाह से नया जीव का उत्पन्न होगा. शादी के वक्त जुआड़ का इस्तेमाल होता है जो कि बैल के कंधे पर लगता है. इसका सांकेतिक संदेश ये होता है कि जिस तरह दो बैल मिलकर साथ साथ चलते हैं और आर्थिक उत्पादन करते हैं. उसी तरह हम दोनों मिलकर घर गृहस्थी को चलाएंगे. दूसरी चीज जो है कि वर वधू दोनों मसाला पिसने वाला सिलवट में भी खड़े होकर वचन लेते हैं कि उनका बंधन अट्टूट रहे.

Q. धुमकुड़िया क्या है, आज के समय में इसकी क्या प्रासंगिकता है, और जिस तरह से आज लोग इसका गलत रूप में प्रसारित कर रहे हैं इस बारे में आपका क्या कहना है?

धुमकुड़िया को ही हम युवागृह कहते हैं, प्रचीनकाल से ही आदिवासी समाज में रीति रिवाज, रहन सहन और नाच गान का प्रशिक्षण इसी जगह पर दिया जाता था. पहले जमाने में बहुत सी जनजातियों में पुरूष युवागृह और महिला युवागृह एक ही होता था और बहुत सी जगहों में अलग अलग. वैसे तो मुझे इसके बारे में इसके बारे में क्या गलत दुप्ष्रचार हो रहा है इस बारे में जानकारी नहीं है. लेकिन वर्तमान हेमंत सोरेन की सरकार धुमकुड़िया को फिर से पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है जो स्वागत योग्य कदम है. अगर इसे पुनर्जीवित किया जाता है तो प्रचीन समय की तरह ही इसका संचालन होगा ये जरूरी नहीं. क्योंकि समय के साथ कई नयी चुनौतियां आयी है.

Exit mobile version