World Tribal Day: झारखंड की ये 3 आदिवासी महिलाएं समाज को सशक्त बनाने के लिए कर रही काम
आज विश्व आदिवासी दिवस है. इस समाज को आगे बढ़ाने में कई लोगों ने उल्लेखनीय योगदान दिया है. इनमें से कुछ महिलाएं ऐसी हैं जो अपनी भाषा को समृद्ध बनाने के लिए काम कर रही है. आज हम इन्हीं महिलाओं के बारे में इस आर्टिकल में चर्चा करेंगे.
रांची : आज समाज को बेहतर बनाने में आदिवासियों के योगदान व उनकी संस्कृति को याद करने का दिन है. यह आदिवासियों की कला-संस्कृति को संरक्षित करने का भी दिन है. इस मौके पर हम अपने पाठकों को आदिवासी समाज की तीन सशक्त महिलाओं से रूबरू करा रहे हैं, जो आदिवासी भाषा और साहित्य को समृद्ध करने के लिए काम कर रही हैं.
सुषमा असुर : आदिम जनजाति की पहली कवयित्री
नेतरहाट के सखुआपानी की रहनेवाली सुषमा असुर आदिम जनजाति की पहली कवयित्री हैं. अब तक इनके कविता संग्रह की तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. एक पुस्तक ‘असुर सिरिंग’ के नाम से है. दो अन्य पुस्तकें भी हैं. एक और कविता संग्रह तथा एक असुर संस्कृति पर भी पुस्तक आनेवाली है. इन्होंने दिल्ली और रांची में प्रतिष्ठित साहित्य सम्मेलनों में मंच साझा किया है. स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की है. अब इग्नू से एमए कर रही हैं. सुषमा 2008-09 से कविता लेखन कर रही हैं. इनकी कविताओं में असुर आदिम जनजाति और संस्कृति का बिंब बहुत खूबसूरती और सहजता के साथ उभरता है. सुषमा नेतरहाट में चलनेवाले असुर रेडियो की टीम को भी लीड कर रही हैं.
असिंता असुर : स्टोरी टेलिंग में महारथ हासिल है
असिंता असुर नेतरहाट के जोभीपाट क्षेत्र की रहनेवाली हैं. ये भी आदिम जनजाति असुर समुदाय से जुड़ी हैं. असिंता असुर महज सातवीं तक पढ़ी हैं. परिस्थितियों ने इन्हें आगे पढ़ने नहीं दिया. पर कहा जाता है न कि जब कुछ करने की इच्छा हो, तो कोई भी परिस्थिति आपको रोक नहीं सकती. असिंता अब असुर रेडियो के साथ जुड़ी हैं. इन्हें स्टोरी टेलिंग में महारथ हासिल है. इनकी स्टोरी में असुर संस्कृति, नेतरहाट व आसपास के जनजीवन, पुरखा कहानियां शामिल होती हैं. इनकी स्टोरी टेलिंग की शैली में सहजता और प्रवाह है, जिसे श्रोता काफी पसंद करते हैं. कई कहानियां ये खुद लिखती हैं. असिंता असुर ‘असुर भाषा’ के संरक्षण के लिए भी काम कर रही हैं.
पुष्पा टेटे : आदिवासी समुदाय के मुद्दों को उठाया
पुष्पा टेटे एक्टिविस्ट, लेखिका और पत्रकार हैं. इन्होंने नेतरहाट आंदोलन और कोइलकारो आंदोलन में हिस्सा लिया है. ये ‘जनहूल नामक’ पत्रिका से जुड़ीं. इन्होंने प्रभात खबर के लिए कई वर्षों तक लिखा. बाद में मासिक पत्रिका ‘झारखंड लहर’ का संपादन किया. ‘झारखंड धारा’ और ‘हम दलित’ पत्रिका में भी लिखती रहीं. ‘ग्राम स्वराज अभियान’ और ‘स्वशासन पत्रिका’ का संपादन किया. फिलहाल पाक्षिक अखबार ‘झारखंड एक्सप्रेस’ की संपादक और प्रकाशक हैं. उनकी पुस्तक ‘आसारी तेरेसा : एक आदिवासी महिला की संघर्षगाथा’ काफी चर्चित रही है. लेखन के जरिये झारखंड के आदिवासी मुद्दों को उठा रही हैं.