रांची : झारखंड में आदिवासी मुद्दे पर कई युवा काम कर रहे हैं, लेकिन इनमें से कुछ ही हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम बनाने में कामयाब हुए हैं. इनमें कोई प्राध्यापक हैं, तो कोई कवि और लेखक. कोई फैशन फर्म चला रहे हैं, तो कोई डिजिटल डिजाइनिंग जैसे क्षेत्र के जानकार हैं. इन सबने खुद ही अपनी पहचान बनायी है. साथ ही इन्होंने अपने काम से देश-दुनिया में अपने समुदायों के मुद्दों को जोड़ा है. विश्व आदिवासी दिवस पर पढ़िए ऐसे ही युवाओं की कहानी. रिपोर्ट प्रवीण मुंडा की.
अपनी कविताओं से प्रेरित कर रहीं जसिंता
झारखंड की युवा लेखिका, कवि और पत्रकार जसिंता केरकेट्टा हाल के वर्षों में सबसे तेजी से अंतरराष्ट्रीय फलक पर उभरनेवाली शख्सियत हैं. फोर्ब्स इंडिया ने उन्हें 2022 में भारत की शीर्ष 20 स्वनिर्मित महिलाओं में से एक नामित किया था. इससे पहले उन्हें एशिया इंडिजिनस पीपुल्स पैक्ट, रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार सहित राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. जसिंता हिंदी में कविताएं लिखती हैं और उनकी पुस्तकों का अनुवाद कई विदेशी भाषाओं में किया गया है. उनकी कविताएं उद्वेलित करती हैं और सोचने पर विवश करती हैं. जसिंता ने कई देशों की यात्राएं की हैं और उन देशों के जनजातीय समुदायों के बारे में की रिपोर्ट लिखी. जसिंता लिखती हैं कि दुनिया में एक धारा श्रेष्ठतावाद, वर्चस्ववाद, प्रतियोगिता और पूंजीवाद पर आधारित है. यह जीवनधारा प्रकृति के विध्वंस, और उपनिवेशवाद पर टिकी हुई है. इसका प्रतिरोध आदिवासी जीवनदर्शन से ही संभव है.
दुनिया के मंच पर बने आदिवासियों की आवाज
अभय सागर मिंज डीएसपीएमयू रांची में सहायक प्राध्यापक हैं. लेकिन उनका दूसरा परिचय यह है कि वह आदिवासी विषयों पर काफी मुखर हैं और झारखंड व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई बार नजर आ चुके हैं. संयुक्त राष्ट्र के मंच पर आदिवासी समुदाय से जुड़े मुद्दों पर आवाज उठा चुके हैं. वह झारखंड के मुद्दों पर लगातार लेखन का काम करते हैं. साथ ही आदिवासी युवाओं को प्रेरित करते हैं कि वह आदिवासी समुदाय से जुड़े मुद्दों पर समझ बनायें और काम करें. इस अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर वह लिखते हैं कि भारत से लेकर म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया और न्यूजीलैंड सहित असंख्य द्वीपों पर आदिवासियों की समस्या लगभग एक समान है. सभी अपने पुरखों के जल, जंगल और जमीन की विरासत को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. इनमें एक नया आयाम जुड़ा है और वह है जलवायु परिवर्तन. इसके कारक कोई और हैं, लेकिन इसके दुषप्रभाव को सबसे ज्यादा आदिवासी समुदाय झेलता है.
यूरोप के फैशन बाजार में पहचान बनाने की ललक
चाईबासा की ज्योति सीमा देवगम की कहानी किसी परीकथा से कम नहीं है. ज्योति जर्मनी में फैशन उद्यमिता के क्षेत्र में जुड़ी हैं. वह मैरी एंड सीमा नामक फर्म चला रही हैं. फर्म में ज्योति प्रबंध निदेशक के तौर पर काम कर रही हैं, जबकि उनकी साथी मेरी क्रिएटिव डायरेक्टर हैं. अपने इनोवेटिव आइडियाज और रचनाशीलता के कारण उनके काम यूरोपियन को पसंद आ रहे हैं. ज्योति ने जर्मनी में अपने मनपसंद काम को करने के लिए काफी संघर्ष किया और कई नौकरियां छोड़ीं. ज्योति को अपने आदिवासियत पर गर्व है और वह अपने काम से अपने समुदाय को गौरवान्वित कर रही हैं. ज्योति जिस क्षेत्र में काम कर रही हैं, वहां आदिवासियों में बहुत कम लोग ही पहुंचते हैं. फिलहाल उसकी जद्दोजहद अपने परिधानों को यूरोपियन बाजार में स्थापित करने की है.
आदिवासी डिजाइनों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाने की जद्दोजहद
घाटशिला के श्याम मुर्मू तकनीकी और रचनात्मक रूप से बेहद प्रतिभाशाली आदिवासी युवाओं में एक हैं. उन्होंने आज से एक दशक पहले से अपनी वेबसाइट के जरिये लोगों को संताली भाषा सिखाने का बीड़ा उठाया था. उन्होंने संताली लिपि ओल चिकी का डिजिटल फोंट भी बनाया, जिसका इस्तेमाल पब्लिकेशन में होता है. वह ट्राइबल डिजाइन फोरम से भी जुड़े हैं. यह संस्था भारत और दुनिया के कई आदिवासी समुदायों के युवा डिजाइनरों का समूह है. इसमें फैशन और डिजाइनिंग से जुड़े विविध क्षेत्रों के लोग जुड़े हैं. श्याम अपने-अपने समुदायों की परंपरागत चीजों और उनके डिजाइनिंग कौशल को सहेजने, उनके संवर्धन, विकास और उसे बाजार से जोड़ने की मुहिम में जुड़े हैं. श्याम मुर्मू लगातार आदिवासी युवाओं से संवाद कर तकनीक के माध्यम से परंपरागत आदिवासी डिजाइन को वैश्विक स्तर पर प्रदर्शित करने के लिए काम कर रहे हैं.