रांची: विश्व आदिवासी दिवस पर झारखंड आदिवासी महोत्सव के पहले दिन राष्ट्रीय आदिवासी साहित्य सेमिनार का आयोजन किया गया. इसमें झारखंड के वरिष्ठ साहित्यकार एवं साहित्य अकादमी के सदस्य महादेव टोप्पो ने कहा कि आज की आदिवासी युवा पीढ़ी को आदिवासियों से जुड़े साहित्य एवं कथाओं को पढ़ना चाहिए ताकि वे दिशाहीन ना हों. उन्हें अपनी पुरानी परंपराओं से जुड़ने की ज़रूरत है. इसके लिए पूर्वजों द्वारा लिखी गये साहित्यों को पढ़ने की ज़रूरत है. इस मौके पर दिल्ली विश्वविद्यालय से आयीं प्रोफेसर स्नेह लता नेगी, त्रिपुरा से आयीं प्रोफेसर मिलन रानी चमातिया, प्रयागराज से आये प्रोफेसर जनार्दन गोंड ने अपने विचार रखे.
जनजातीय जीवन दर्शन से लोग हो रहे रूबरू
विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर रांची के बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान में झारखंड आदिवासी महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. नौ व 10 अगस्त को इसका भव्य आयोजन किया गया है. कला, साहित्य व संस्कृति के कई रंग देखने को मिल रहे हैं. एक ओर जहां सांस्कृतिक कार्यक्रम से आदिवासी जीवन दर्शन को समझने का मौक़ा मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर इसी उद्यान में परिचर्चा के माध्यम से देश के कोने-कोने से आये ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञों से जनजातीय भाषाओं, संस्कृति और परंपराओं सहित जनजातीय साहित्य, इतिहास, जनजातीय दर्शन के महत्व के बारे में जानकारी मिल रही है.
पैनल डिस्कशन से जनजातीय जीवन दर्शन की जानकारी
झारखंड आदिवासी महोत्सव-2023 के अवसर पर सेमिनार का आयोजन किया गया. इस मौके पर देशभर से आए ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया और परिचर्चा में अपने विचार रखे. आदिवासी साहित्यों एवं कथाओं के ज़रिए आदिवासी जीवन दर्शन को जानने का प्रयास किया गया. आदिवासी समाज की संस्कृति एवं उनके जीवन दर्शन की झलकियों को पैनल डिस्कशन से समझने में मदद मिल रही है. आदिवासी साहित्य में कथा और कथेतर विधाओं का वर्तमान परिदृश्य के बारे में वक्ताओं ने अपने विचार रखे.
ट्राइबल लिटरेचर सेमिनार
झारखंड आदिवासी महोत्सव के पहले दिन आज बुधवार को सेमिनार के पहले दिन ट्राइबल लिटरेचर सेमिनार में आदिवासी साहित्य में कथा और कथेतर विधाओं का वर्तमान परिदृश्य के बारे में चर्चा की गयी. प्रमुख वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार एवं साहित्य अकादमी के सदस्य महादेव टोप्पो ने साहित्य एवं लोक कथाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने कहा कि आज की आदिवासी युवा पीढ़ी को आदिवासियों से जुड़े साहित्य एवं कथाओं को पढ़ना चाहिए ताकि वे दिशाहीन ना हों. उन्होंने कहा कि युवा अपनी पुरानी आदिवासी परंपरा से कटकर दिशाहीन हो रहे हैं. उन्हें अपनी पुरानी परंपराओं से जुड़ने की ज़रूरत है. इसके लिए पूर्वजों द्वारा लिखी गये साहित्यों को पढ़ने की ज़रूरत है. उन्होंने पुरखों द्वारा लिखे गए साहित्य एवं कथाओं पर प्रकाश डाला.
देश के विभिन्न राज्यों से आये विशेषज्ञों ने रखे अपने विचार
प्रयागराज से आये प्रोफेसर जनार्दन गोंड ने आदिवासी के जीवन दर्शन के बारे में विस्तार से बताया. आदिवासी के ज्ञान के बारे में चर्चा की. उनमें प्रकृति को ले कर जागरूकता के बारे में बताया. इसके साथ ही प्रकृति से सामंजस्य पर प्रकाश डाला. मणिपुर विश्वविद्यालय से आयी प्रोफेसर ई विजयलक्ष्मी ने आदिवासी दर्शन में उनके ज्ञान के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहानी एवं उपन्यास के माध्यम से आदिवासियों की जीवनी के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला.
आदिवासी भाषा व जीवन दर्शन से कराया रूबरू
त्रिपुरा से आयीं प्रोफेसर मिलन रानी चमातिया ने भी आदिवासी भाषा, जीवन दर्शन के बारे में चर्चा की. उन्होंने भी कहानी एवं उपन्यास के माध्यम से उनके जीवन संघर्ष, शिक्षा के बारे में जानकारी दी. उन्होंने त्रिपुरा के आदिवासी के जीवन संघर्ष, जीवन दर्शन, इतिहास और उनकी संस्कृति के बारे में विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कब्रक उपन्यास के माध्यम से त्रिपुरा सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों के आदिवासियों के बारे में चर्चा की.
सेमिनार के पहले दिन का समापन
सेमिनार के पहले दिन का समापन दिल्ली विश्वविद्यालय से आयीं प्रोफेसर स्नेह लता नेगी की चर्चा से हुई. उन्होंने आदिवासी साहित्य की परंपरा एवं कथा के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि झारखंड कथा एवं साहित्य के संदर्भ में बेहतर रहा है. यहां कई साहित्यकार एवं कथाकार हुए हैं. आदिवासियों के जीवन दर्शन, संस्कृति एवं उनकी परंपरा को जानने एवं समझने के लिए पूर्वजों द्वारा लिखे गए साहित्य को पढ़ने एवं समझने की के साथ-साथ उसे अपने जीवन में आत्मसात करने की आवश्यकता है.