आज उर्दू के प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इकबाल का जन्म दिवस है. इनका जन्म 09 नवंबर 1877 को हुआ था. मुहम्मद इकबाल लेखक, दार्शनिक और राजनीतिज्ञ थे. इस खास दिन को विश्व उर्दू दिवस के रूप में मनाया जाता है
-डॉ शहाब आर्यन, पीजी राजनीति विज्ञान विभाग, रांची विवि
आज नौ नवंबर है अर्थात विश्व उर्दू दिवस. यह मौका है सुप्रसिद्ध शायर अल्लामा इकबाल की जयंती का. वास्तव में इंसान ने जब अल्फाज सीखे, तो ज़ुबान पैदा हुई. दुनिया के हर हिस्से में अलग जुबानें वजूद में आयीं. कई ऐसे मुल्क हैं, जहां एक से ज्यादा जुबानें इस्तेमाल की जाती हैं. इस मामले में भारत सब से अलग और सब से खास मुकाम रखता है. हमारी हजारों वर्षों की शानदार तारीख अनगिनत जुबानों का फसाना सुनाती है. उर्दू ऐसी ही एक तारीखी ज़ुबान है, जिसने गुजरे हुए जमानों से लेकर अब तक का एक सुनहरा सफर तय किया है. कभी लश्करी ज़ुबान कही जानेवाली उर्दू की सब से बड़ी खुसूसियत इसका एक अवामी ज़ुबान होना है, जो जात, नस्ल और मजहब से परे दिलों की जुबान है.
ये उर्दू है जिसे वली दक्कनी, मीर तकी मीर, मिर्जा गालिब, रघुपति सहाय फिराक से लेकर बशीर बद्र, परवीन शाकिर और राहत इंदौरी तक, मंटो से लेकर इब्ने शफी तक और बादशाहों से लेकर फकीरों तक, सबने सींचा और जेहनों से लेकर दिलों तक उर्दू की खुशबू को बिखेर कर रख दिया. उर्दू की मिठास और खूबसूरती ने इसे तहजीब के पैमाने में बदल दिया.
उर्दू हमें जिंदगी के तौर तरीके, तहजीब और सलीका तो सिखाती ही है, इसकी मिठास और इसके हुस्न ने न सिर्फ इसे शायरों की जुबान बनाया, बल्कि हकीकत में इसे मोहब्बतों की, आशिकों की जुबान बना दिया. चाहे इश्क का इजहार हो, या माशूक की बेवफाई हो, उर्दू हर जज्बे को ज़ुबान देती है.
अहमद वसी के लफ्जों में:
वो करे बात तो हर लफ्ज से खुशबू आये!
ऐसी बोली वही बोले जिसे उर्दू आये!
आज उर्दू दिवस है. आइए, इसी बहाने उर्दू जुबान बोलें यानी मोहब्बतों का इजहार करें. इंसानियत से प्यार करें.
उर्दू एक मिठास भरी जुबान है. उर्दू किसी एक धर्म की भाषा नहीं है. उर्दू भाषा का स्वतंत्रता संग्राम में काफी अहम भूमिका रही है. हजारों उर्दू वालों ने जंग-ए-आजादी में अपनी कुर्बानियां दी. उर्दू एक तहजीब है. एक सलीका है. यह व्यवहार में विनम्रता लाता है. यह कहना उचित होगा कि-उर्दू बोलोगे, तो जबां शीरीं हो जायेगी, तहजीब भी सीखोगे, सलीका भी आ आयेगा.
-नसीर अफसर, महासचिव, अंजुमन बका-ए-अदब
अल्लामा इकबाल एक महान उर्दू कवि और विचारक रहे हैं. उन्होंने उर्दू में शायरी कर उर्दू को एक नयी जिंदगी दी. बच्चों के गीत हो या दर्शनशास्त्र की. हर फन में इकबाल लाजवाब हैं. इकबाल की शायरी की चर्चा के बिना उर्दू की हर महफिल अधूरी है. उर्दू भारत की जुबान है. बकौल शायर : मादर-ए-हिन्द की बेटी है जबान-ए-उर्दू, किसी की क्या ताकत की मिटा दे उर्दू, मगर ऐ शहर-ए-वतन कुछ तुझे मालूम भी है, तेरे ही इस शहर में उर्दू बेनाम भी है.
-डॉ सरफराज आलम, उपसचिव, अलमनार एजुकेशनल फाउंडेशन
भारतीय उपमहाद्वीप में एक बड़ी आबादी उर्दू से जुड़ी है. हाल के एक सर्वे के अनुसार वैश्विक स्तर पर उर्दू बोलनेवाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है. यह उर्दू के लिए अच्छा संकेत है. यह शायरी की पसंदीदा भाषा है. मीर, गालिब और फैज की बदौलत पूरी दुनिया में उर्दू की स्वीकार्यता बढ़ी है. शायरी में दिलचस्पी रखनेवाले लोग उर्दू भाषा को सीख रहे हैं.
डॉ सरवर साजिद, उर्दू विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विवि
उर्दू भाषा और साहित्य का इतिहास लगभग 1300 वर्ष पुराना है, लेकिन हम लोग विश्व उर्दू दिवस नौ नवंबर को मनाते हैं, जो उपमहाद्वीप के महान कवि डॉ अल्लामा इकबाल का जन्म दिवस है. ऐसे में ये मात्र एक सांकेतिक रूप से विश्व उर्दू दिवस है. यदि उर्दू दिवस मनाना ही बेहतर है, तो अमीर खुसरो या फिर नजीर की जयंती पर मनाना ज्यादा उचित है. उर्दू का जन्म और उद्गम वो सरजमीन है, जहां कई देशज और विदेशज संस्कृतियों का संगम समृद्ध हुआ था.
-डॉ रिजवान अली, रांची विवि