अनिता कुमारी
थायराइड ग्लैंड की निष्क्रियता के कारण ही थायराइड की बीमारी होती है. हालांकि यह महिलाओं में सबसे ज्यादा देखने को मिलता है. अब पुरुष भी इस बीमारी की चपेट में आने लगे हैं. थायराइड के कारण शरीर का पूरा मेटाबाॅलिज्म अनियंत्रित हो जाता है, जिससे शरीर के कई महत्वपूर्ण अंग भी प्रभावित हो जाते हैं. थायराइड ग्लैंड से कभी कम तो कभी अधिक हार्मोन का श्राव होने लगता है. इससे दो प्रकार की बीमारी हाइपरथाइरॉयडिज्म या हाइपोथायरायडिज्म हो जाती है. गर्भावस्था के समय महिलाओं में थायराइड की समस्या आम है. अगर गर्भवती महिला का थायराइड अनियंत्रित रहता है, तो गर्भ में पल रहे बच्चे का शारीरिक और मानसिक दोनों विकास अवरुद्ध हो जाता है. हालांकि योग में थायराइड का संपूर्ण इलाज है. कुछ ऐसे आसन हैं, जिसके नियमित अभ्यास से बीमारी नियंत्रित हो जाती है.
मार्जारि का अर्थ बिल्ली होता है, इसलिए इस आसन में व्यक्ति बिल्ली के समान दिखायी देने लगता है. यही कारण है कि लोग इसे कैट पोज भी कहते हैं. इस आसन से रीढ़ और पीठ की मांसपेशियों के अलावा गले में तनाव (स्ट्रेच) होता है. इससे गले की मांसपेशियों में खिंचाव पड़ने के कारण थायराइड ग्लैंड के सेल उत्तेजित होने लगते हैं. थायराइड ग्लैंड एक्टिव होता है, जिससे हार्मोन का श्राव ठीक से होने लगता है.
भुजंगासन को सर्पासन (कोबरा पोज) भी कहा जाता है. इस आसन को करने पर शरीर सांप की आकृति का हो जाता है. हमारा सिर सांप के फन की तरह ऊठा हुआ होता है. इससे गले में तनाव होता है. इससे थायराइड ग्लैंड पर दबाव पड़ता है और सुषुप्त अवस्था में पड़ी थायराइड ग्रंथी जागृत हो जाती है.
योग के इस आसन से शरीर के सभी अंगों का व्यायाम हो जाता है, इसलिए इस आसन को सर्वांगासन कहा जाता है. स्वास्थ्य की दृष्टि से इस आसन को सर्वोत्तम माना जाता है. इससे मस्तिष्क, फेफड़ा, हृदय और गले की समस्या दूर हो जाती है. यानी थायराइड की समस्या में यह आसन भी लाभकारी साबित होता है.
थायराइड की समस्या में हलासन काफी कारगर होता है. इससे गला, कंधा, पेट और पैर के अलावा कमर पर तनाव आता है. इससे थायराइड ग्लैंड में सक्रियता आती है. इसका अभ्यास सुबह के वक्त खाली पेट में ही करना चाहिए.
सेतुबंधासन को ब्रिज पोज (पुल की तरह) भी कहा जाता है, क्योंकि इस आसन में आते ही शरीर ब्रिज के समान हो जाता है. इसको करने से शरीर स्ट्रेच होता है, जिससे रक्त का संचार सही होने लगता है. इस आसन की अंतिम स्थिति में आने पर गर्दन पर सबसे अधिक तनाव होता है, जिससे थायराइड ग्लैंड एक्टिव हो जाता है.
मत्स्यासन का अभ्यास करने से शरीर की सभी मांसपेशियां उत्तेजित होती हैं. पैर, जांघ, पेट और पीठ के अलावा गर्दन में तनाव आता है. मत्स्यासन में पीठ को उठाकर ऊपर खींचने से गर्दन पर सबसे अधिक जोर पड़ता है, जिससे वहां दबाव पड़ने के कारण थायराइड ग्लैंड एक्टिव होता है.
उष्ट्रासन में शरीर की आकृति ऊंट की तरह हो जाती है, इसलिए इसे ”कैमेल पोज” भी कहा जाता है. इसके नियमित अभ्यास से शारीरिक और मानसिक परेशानी दूर हो जाती है. इस आसन से पेट के निचला हिस्सा मजबूत होता ही है, जबकि गर्दन के पास की मांसपेशियों में तनाव आता है, जिससे थायराइड ग्लैंड जागृत अवस्था में आ जाता है.
जालंधर बंध को ”चिन लॉक” पोज भी कहा जाता है. जालंधर बंध में गर्दन को सिकोड़ा जाता है और ठुड्डी पर जोर दिया जाता है. इससे गर्दन पर दबाव पड़ता है. यह आसान थायराइड के मरीजों के लिए रामबाण माना जाता है. इस आसन का सीधा प्रभाव थायराइड ग्लैंड पर पड़ता है, जिससे वह एक्टिव होता है. इसके नियमित अभ्यास से थायराइड की समस्या पूरी तरह ठीक हो जाती है.
उज्जायी प्राणायाम गले की मांसपेशियों और रक्त धमनियों को गतिशील बनाता है. थायराइड की समस्या से निजात दिलाने में यह भी कारगर योगाभ्यास माना गया है. इसके नियमित अभ्यास से थायराइड नियंत्रित रहता है. प्रतिदिन इसका 10-15 मिनट अभ्यास करना लाभकारी है.
(योग एक्सपर्ट, आर्किड मेडिकल सेंटर)