Fast Food नहीं ये 7 Super Food रखेंगे सेहतमंद, झारखंड में होती है बंपर खेती
संयुक्त राष्ट्र महासभा से वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित किया है. भारत सरकार ने प्राचीन अनाजों को बढ़ाने, इनकी खेती और खपत को बढ़ाने के लिए वर्ष 2018 को राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया था.
रांची, पूजा सिंह : सिर्फ 50-60 वर्ष पहले हम मोटा अनाज खाने वाले लोग थे. भोजन की थाली में जौ, ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो, सामा, सांवा जैसे अनाज शामिल होते थे. इसकी महत्ता इतनी है कि यजुर्वेद में भी मोटे अनाज का जिक्र है. लेकिन धीरे-धीरे हमने इन मोटे अनाज को छोड़ दिया. ये हमारी थाली से गायब हो गये. आज इन अनाजों को दुनिया अपना रही है. संयुक्त राष्ट्र महासभा से वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित किया है. भारत सरकार ने प्राचीन अनाजों को बढ़ाने, इनकी खेती और खपत को बढ़ाने के लिए वर्ष 2018 को राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया था. भारत के प्रस्ताव पर ही 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित किया गया है. इसका उद्देश्य बदलती परिस्थितियों में खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए भोजन में इन पोषक अनाजों को शामिल करने के लिए जागरूकता को बढ़ाना है.
मोटे अनाज को जानिए
मोटा अनाज यानी मिलेट्स में ज्वार, बाजरा, मड़ुआ रागी, गुंदली, सांवा, कोदो, कंगनी, कौनी आदि शामिल हैं. इसमें सबसे ज्यादा प्रचलित मड़ुआ (रागी), ज्वार और बाजरा है. इसकी खेती झारखंड के कई क्षेत्रों में विशेष रूप से होती है. इसे मोटा अनाज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है. ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं. पानी की खपत पर करीब 30 फीसदी कम होती है. यूरिया और अन्य केमिकल की जरूरत नहीं पड़ती. खास बात है कि यह पर्यावरण के लिए भी बेहतर है. ये अनाज जल्दी खराब भी नहीं होते
छुपा है सेहत का खजाना
मिलेट्स में कई मिनिरल्स होते हैं, जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद होते हैं. इसमें कैल्शियम, आयरन, जिंक, मैग्नेशियम, विटामिन बी, विटामिन बी 3, आवश्यक अमिनो ऐसिड प्रोटीन, सुपाच्य फाइबर आदि पाये जाते हैं. अन्य फसलों की अपेक्षा मिलेट्स में इनकी मात्रा अधिक होती है.
बीमारियों में भी फायदेमंद
इसके सेवन से कई बीमारियों से निजात पायी जा सकती है. मधुमेह, हाई बीपी, हृदय रोग, कोलेस्ट्रॉल कम करने, कैंसर (ब्रेस्ट) के मरीजों के लिए यह काफी फायदेमंद है.
झारखंड के इन जिलों में होती है रागी, जौ, बाजरा और ज्वार की खेती
झारखंड के करीब 1 लाख 60 हजार एकड़ भूमि पर रागी (मड़ुआ) की खेती होती है. राज्य के सभी जिलों में इसकी खेती होती है, लेकिन मुख्य उत्पादक जिले रांची, हजारीबाग और गिरिडीह हैं. वहीं प्रदेश की करीब 48, 600 एकड़ शुष्क भूमि पर जौ की खेती की जाती है. जौ की खेती में पलामू मुख्य उत्पादक जिला है. हालांकि बाजरा की खेती सिर्फ 22 एकड़ भूमि पर की जाती है. इसके मुख्य उत्पादक जिलों में हजारीबाग, रांची, सिंहभूम और संताल परगना शामिल हैं. प्रदेश के करीब 5000 एकड़ शुष्क क्षेत्र और उच्च भूमि में ज्वार की खेती होती है. हजारीबाग, रांची, सिंहभूम एवं संथाल परगना ज्वार उत्पादक प्रमुख जिले हैं.
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झारखंड में मड़ुआ की खेती की संभावना
प्रदेश में धान के बाद रागी (मड़ुआ) दूसरी प्रमुख खरीफ फसल है. परंपरागत खेती और स्थानीय किस्म के उपयोग के कारण किसानों को 5-6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ही उपज मिल पाती है. जबकि उन्नत तकनीक एवं उन्नत किस्मों के प्रयोग से कम खर्च में 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज आसानी से प्राप्त की जा सकती है. बिरसा कृषि विवि रांची में आइसीएआर- अखिल भारतीय समंवित स्माल मिलेट शोध परियोजना में अधिकतम उपज 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हुई है.
मोटे अनाज की खेती में समस्या भी है
अन्य खाद्यान्न के मुकाबले मोटे अनाज का स्थानीय बाजारों में बाजार मूल्य काफी कम होता है. इसकी खेती से किसानों को विशेष आर्थिक लाभ नहीं होता, जो किसानों के विमुख होने का मुख्य कारण है. प्रदेश में मोटे अनाज के प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्धन इकाई और बेहतर बाजार का अभाव है.
मोटे अनाज की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा मिले
विशेषज्ञ कहते हैं कि मोटे अनाज की खेती को राज्य में लाभकारी कृषि के दायरे में लाना जरूरी है. राज्य में उन्नत तकनीकी और अधिक उपज देने वाली उन्नत चार किस्में उपलब्ध है. इनमें रागी फसल के क्षेत्र विस्तार में उन्नत किस्मों के उपयोग अधिकतम उत्पादन से किसानों के लिए लाभ का अवसर सृजित की जा सकती है. मोटे अनाजों में विशेष कर रागी की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा, जिलों में बेहतर बाजार प्रणाली की व्यवस्था, अन्य राज्य के व्यापार केंद्रों से सरकार के माध्यम से लिंक एवं निर्यात तथा रागी उत्पादों के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनी से सीधा संपर्क स्थापित कर किसानों को बेहतर लाभ का अवसर देकर प्रेरित किया जा सकता है.
मिलेट के पोषक तत्व (प्रति 100 ग्राम के हिसाब से)
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नाम प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम
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बाजरा, 11.6, 5, 67.5, 42
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ज्वार: 11. 1,1. 3,69. 6,26
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रागी : 7.3, 1.3, 72, 344
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कंगनी : 12.3, 1.6, 62.3, 31
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कुटकी : 7.7, 1.0, 60. 9,17
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सावां : 11.2, 1.1, 70, 11
नोट: एनआइएन हैदराबाद के अनुसार मिलेट्स के पोषक तत्व (प्रोटिन, फैट, कार्बोहाइड्रेट ग्राम और कैल्शियम मिलीग्राम के हिसाब सेे)
सेहत के लिए फायदेमंद है माेटा अनाज
बाजरा : यह हड्डियों को मजबूत बनाता है. खून की कमी को दूर करता है. कोलेस्ट्रॉल कम होता है. कैंसर की संभावना कम होती है. कब्ज, अस्थमा में राहत और शुगर लेबल को कम करता है. बाजरे की रोटी और सरसों का साग सर्दियों के मौसम में एक पॉपुलर डिश में से एक है. बाजरे के आटे में फाइबर और अमीनो एसिड भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. मोटापा कम करने के लिए आप अपनी डाइट में बाजरे की रोटी को शामिल कर सकते हैं. बाजरे की रोटी से पेट गैस और पाचन को बेहतर रखा जा सकता है.
ज्वार : डायबिटीज और वजन कम करने में फायदेमंद है. ज्वार का सेवन सही मात्रा में करने से पाचन शक्ति स्वस्थ तरीके से काम करती है. फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है. ज्वार के आटा के फायदे दिल को सेहतमंद बनाए रखने में लाभदायक साबित हो सकते हैं. खून को जमा नहीं होने देते हैं.
मड़ुआ : यह कैल्शियम का बेहतरीन स्त्रोत है. सुपाच्य, लिवर और पेट के लिए लाभदायक होता है. खनिजों और फाइबर से भरपूर होने के कारण डायबिटीज में भी फायदेमंद है. रागी खाने की सलाह मधुमेह के रोगियों को दी जाती है. हड्डियों को मजबूत रखने तथा मांसपेशियों को ताकतवर बनाने में मदद करता है. प्रति 100 ग्राम में 344 मिग्रा कैल्शियम होता है. दूसरे किसी भी अनाज में कैल्शियम की इतनी अधिक मात्रा नहीं पायी जाती है.
कंगनी : ये दुनिया का सबसे पुराना मिलेट है. नर्वस सिस्टम के लिए सुपर फूड. हृदय रोग, डायबिटीज, पेट संबंधी समस्या, रक्त की कमी, जोड़ों काे दर्द, भूख की कमी, मूत्र विसर्जन के समय जलन में फायदेमंद है. कांगनी के अंदर बहुत ज्यादा मात्रा में प्रोटीन और आयरन है. इसके सेवन से एनीमिया की बीमारी ठीक हो जाती है. इसमें कार्बोहाइड्रेट होता है, जिसकी वजह से पेट साफ रहता है. वजन कम करने में भी काफी मददगार है. तनाव दूर भगाकर दिमाग को शांत करता है.
कुटकी : कुटकी प्रोटीन, फाइबर और आयरन का उत्तम स्रोत है. डायबिटीज में लाभदायक होता है. यह एसिडिटी, खट्टा डकार जैसी समस्या से छुटकारा दिलाता है. प्रजनन तंत्र स्वस्थ होते हैं. कुटकी के काढ़े से गरारा करने से मुंह का स्वाद ठीक होता है. मुंह के छाले ठीक होते हैं. वजन घटाने में कुटकी फायदेमंद साबित होता है. पेट संबंधी परेशानी दूर होती है. फोड़े-फूंसी, दाद-खाज और खुजली में फायदेमंद है.
कोदो : यह ब्लड प्यूरीफायर का काम करता है. डायबिटीज, हार्ट डिजीज, कैंसर और पेट के रोगों में लाभदायक होता है. लिवर और किडनी के लिए भी अच्छा है. नर्वस सिस्टम को मजबूत करता है. कफ-पित्त दोष, मल-मूत्र विकार में फायदेमंद है. रूसी की समस्या से छुटकारा दिलाता है. घेघा रोग में फायदेमंद है. सांसों की बीमारी, खांसी और पेट से जुड़े रोग में कारगर है.
सांवा : डायबिटीज, हार्ट डिजीज और कैंसर में लाभदायक होता है. शरीर के अंदरूनी अंगों को ताकत मिलती है. यह पहले से प्रचलन में है. व्रत के दिनों में उपवास के दौरान इसे खाया जाता है. शरीर को निरोग रखने में कारगर है. हड्डियों को मजबूती देने वाले कैल्शियम भरपूर मात्रा में रहते हैं. फॉस्फोरस की भी भरपूर मात्रा है.