रांची : योगेंद्र यादव देश के जाने-माने समाजशास्त्री, सामाजिक कार्यकर्ता और जनपक्षीय राजनीति करनेवाले शख्स हैं. देश में चुनावी विद्या, सेफेलॉजी को उन्होंने सबसे प्रमाणिक और वैज्ञानिक धरातल दिया था. फिलहाल उन्होंने चुनाव पूर्वानुमान करना छोड़ दिया है. सामाजिक सरोकार को लेकर देशभर के संघर्षशील ताकतों के बीच वह घूम रहे हैं. भारत जोड़ो अभियान के अगुवा हैं. योगेंद्र यादव मंगलवार को प्रभात खबर कार्यालय पहुंचे. प्रभात खबर के ब्यूरो प्रमुख आनंद मोहन ने पिछले लोकसभा चुनाव से लेकर देश की वर्तमान राजनीति पर लंबी बातचीत की. पेश है बातचीत के अंश.
Q. पिछले लोकसभा चुनाव के जनादेश और मोदी 3.0 के कार्यकाल को किस रूप में देख रहे हैं.
देखिए, इस जनादेश को संदर्भ के रूप में देखना होगा. अगर आप औपचारिक रूप से देखें, तो कह सकते हैं कि तीसरी बार मोदी सरकार बन गयी. तीसरी बार मोदी सरकार बनी, तो यह बड़ी उपलब्धि है. यह कोई सामान्य चुनाव नहीं था. यह चुनाव संसद का चुनाव नहीं था, संविधान सभा का चुनाव था. यह चुनाव मोदी के हां और ना का था. इस चुनाव ने 240 सीट देकर ना कह दिया. बाकी सब औपचारिक आंकड़े हैं, सरकार बन गयी. लेकिन इकबाल सरकार का चल गया. अब तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं, जो पहले नहीं उठा करते थे.
Qआजकल राज्यों में लोगों को सीधे पैसे देने, खजाना खोलने का प्रचलन बढ़ा है. मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना योजना, तो झारखंड में मंईयां सम्मान योजना चल रही है. चुनाव में इसका कितना फायदा होता है?
मैं पहले सोचा करता था, आखिरी छह महीने की घोषणा से कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन मध्य प्रदेश के चुनाव से लगता है कि फर्क पड़ता है. हकीकत ये है कि औसत नागरिक महसूस करता है कि सरकार कुछ करेगी, तो नहीं. उन्हें समझ आ गया है कि इस सरकार से बुनियादी चीज मिलनेवाली नहीं है. शिक्षा, ना स्वास्थ्य ना कुछ, तो सीधे-सीधे कैश है, वही पकड़ लो, बाकी तो डायलॉग है. इसलिए एक हजार, डेढ़ हजार जो मिलता है, उसी को कस के पकड़ लेता है. इसको रेवड़ी कल्चर कहा जाता है, उसे मैं नहीं मानता हूं. रेवड़ी की बात करनेवालों को लड्डू दिखायी नहीं देते, जो बड़े-बड़े कॉरपोरेट को दिये जाते हैं. लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर बना कर लोगों में खुशहाली लाये, उसका प्रयास अधिकतर सरकारों ने छोड़ दी है. ये खतरे की बात है. मुझे पांच-दस रुपये का नोट ना पकड़ायें, मैं बीमार हूं, तो अस्पताल में मुझे कुछ मिले. ऐसा प्रयास हो.
Q. झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर आपका क्या पूर्वानुमान है, क्या हेमंत सोरेन की फिर से सरकार बनेगी या भाजपा बड़ी ताकत बनकर उभरेगी?
मैंने तो पूर्वानुमान करने से कान पकड़ ली है. कायदे से बीजेपी को यहां जीतना चाहिए ना. मोटे तौर पर आप देखेंगे कि लोकसभा चुनाव की पुनरावृत्ति होती है, तो भाजपा आगे है. लेकिन जमीन पर ऐसा नहीं दिख रहा है. 81 विधानसभा में से 51 में लीड मिली है, तो उसे आगे आना चाहिए, लेकिन जमीन पर वह स्थिति नहीं दिख रही है. पांच सीटें जो इंडिया गठबंधन ने जीती हैं, वो सब आदिवासी सीटें हैं. आदिवासी क्षेत्रों में झामुमो की पकड़ कमजोर होते नहीं दिख रही है. लोकसभा चुनाव के बाद मजबूत ही हुई होगी, कमजोर नहीं. लेकिन भाजपा ने जहां परफॉर्म किया, वहां तरह-तरह की बातें आ रही है. नयी-नयी पार्टी उन इलाके में आ रही हैं.
Q. भाजपा संपूर्ण देश की पार्टी बन गयी. दक्षिण के राज्यों में भी बेहतर प्रदर्शन रहा है?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपा एक राष्ट्रव्यापी चुनौती है. उनकी दक्षिण के इलाके में पैठ बढ़ी है. देखिए, भाजपा के लिए आप दो तरह के इलाके देख सकते हैं, जहां वो सत्ता का स्वरूप हैं, कर्नाटक से लेकर झारखंड तक भाजपा को नुकसान हुआ है. दूसरा वह इलाका है कि भाजपा चैलेंज है. जहां भाजपा सत्ता में नहीं, विपक्ष है. विरोध का प्रतिरोध का मुखौटा पहने हुए है, वहां भाजपा को फायदा हुआ है. तेलांगाना, आंध्र प्रदेश, ओड़िशा. चुनाव में सत्ता और मोदी की लहर पर गारंटी नहीं है. भाजपा को इस चुनाव में एक मोहलत मिली है. भाजपा ऐसी ताकत नहीं है कि चुटकी बजाते चली जाये. केंद्र में इनकी सरकार चली भी जाये, तो संघर्ष लंबा है.