Prabhat Khabar EXCLUSIVE: झारखंड समेत पूरे देश में एक नशा बहुत तेजी से बढ़ रहा है. युवा ही नहीं, बच्चे भी इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं. इसने एडिक्शन का रूप ले लिया है. अभिभावकों ने अगर अभी से अपने बच्चों को इस एडिक्शन से बचाने की गंभीर पहल नहीं की, तो आने वाले दिनों में बहुत मुश्किल होने वाली है. समाज और देश को भी इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. यह कहना है कि रांची स्थित सेंट्रल इंस्टीयूट ऑफ साइकियैट्री (सीआईपी) के डायरेक्टर बासुदेव दास का.
सीआईपी रांची के डायरेक्टर प्रो डॉ बासुदेव दास कहते हैं कि आज के समय में बच्चों से लेकर युवाओं को सबसे तेजी से जो नशा अपनी गिरफ्त में ले रहा है, वह है- इंटरनेट का नशा. उन्होंने प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा कि अल्कोहल यानी शराब, गांजा, हेरोइन, अफीम, चरस का नशा तो पहले से था ही. युवाओं में आजकल एक बड़ा नशा तेजी से फैल रहा है. वो है इंटरनेट का नशा.
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डॉ दास ने कहा कि किसी भी तरह का स्मार्टफोन हो, टेक्नोलॉजिकल गैजेट हो या टैब, स्टूडेंट्स इसमें इंगेज हो रहे हैं. इसके जरिये वे तरह-तरह के सोशल मीडिया साइट्स के अलावा पोर्नोग्राफी साइट्स और गेमिंग साइट्स की लत उन्हें घेर रही है. इसकी वजह से कई तरह की परेशानियां बढ़ रही हैं. उनकी पढ़ाई छूट जा रही है. उनके व्यवहार में गड़बड़ी या बदलाव देखे जा रहे हैं.
सीआईपी रांची के डायरेक्टर प्रो डॉ बासुदेव दास कहते हैं कि इस तरह की परेशानियों को देखते हुए सेंटर में एक नया क्लिनिक खोला गया है. एडिक्टिव बिहेवियर्स क्लिनिक. बिहेवियरल एडिक्शन, जो किसी नशे के सामान से नहीं, ऐसी चीज से हो रहा है, जो चीज नशा पैदा करता है. उन्होंने कहा कि एडिक्टिव बिहेवियर्स क्लिनिक के सकारात्मक परिणाम दिख रहे हैं. यह काफी सफल रहा है.
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हालांकि, डॉ दास कहते हैं कि हमारे समाज में इतने लोग बिहेवियरल एडिक्शन के शिकार हो रहे हैं, यह अच्छी बात नहीं है. आने वाले दिनों में अगर हमने इससे बचने और निपटने की तैयारी नहीं की, तो काफी परेशानी हो सकती है. बहुत ज्यादा लोग इसके शिकार हो सकते हैं. कई तरह की मानसिक समस्या बढ़ सकती है. डिप्रेशन और नींद की समस्या बढ़ सकती है.
यह पूछने पर कि बच्चों को इंटरनेट एडिक्शन से कैसे बचायें, डॉ दास कहते हैं कि कुछ साल पहले तक मैट्रिक या इंटर में टॉप करने वाले विद्यार्थियों के पास मोबाइल फोन या कोई दूसरा गैजेट नहीं होता था. वैश्विक महामारी कोविड के दौरान जब सब कुछ बंद हो गया. लॉकडाउन लगाना पड़ा. तब सभी स्टूडेंट्स के लिए मोबाइल अनिवार्य हो गया. ऑनलाइन क्लास अटेंड करने के लिए मोबाइल जरूरी था.
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इस समय अभिभावों को अपने बच्चों के मोबाइल के इस्तेमाल की निगरानी करने की जरूरत थी. लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया. बच्चे क्लास अटेंड करने के नाम पर मोबाइल ले लेते थे और पढ़ाई करने की बजाय उसका कुछ और इस्तेमाल करते थे. धीरे-धीरे यह नशा बन गया. जब हालात सामान्य हुए और ऑफलाइन क्लास शुरू हुए, तो बच्चों को एडजस्ट करने में काफी दिक्कतें आने लगीं.
उन्होंने कहा कि इसी वजह से कुछ बच्चे चोरी-छिपे फोन लेकर स्कूल जाने लगे. ऐसे कुछ बच्चों पर स्कूल प्रबंधन ने कार्रवाई भी की. कई बच्चों को रेस्टिकेट तक कर दिया गया. हम देख रहे हैं कि मोबाइल एडिक्शन की वजह से बच्चों और युवाओं में कई तरह की परेशानियां बढ़ी हैं. यह सही है कि मोबाइल के बगैर जीवन आसान नहीं है, लेकिन हमें इसके लिए कुछ समयसीमा तय करनी होगी. बच्चों के मोबाइल के इस्तेमाल को नियंत्रित करना होगा.
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डॉ दास ने अभिभावकों को सलाह दी है कि बच्चों के लिए एक टाइम स्लॉट तय कर दें कि दिन में आधा घंटा या एक घंटा ही आप मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर पायेंगे. अगर हम ऐसा कर पाये, तो बच्चों को इंटरनेट के एडिक्शन से बचा सकते हैं. इसके लिए हमें समय रहते कदम उठाना होगा. हमने अभी बच्चों को इंटरनेट एडिक्शन से नहीं बचाया, तो आने वाले दिनों में हम उन्हें इस नशे से नहीं बचा पायेंगे.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.