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झारखंड की देसी साग सब्जियों में भरपूर पोषण

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पटना व रांची स्थित पूर्वी अनुसंधान परिसर, प्लांडू, रांची के शोधकर्ताओं ने आदिवासियों द्वारा उपयोग की जानेवाली ऐसी पत्तेदार सब्जियों की 20 प्रजातियों की पहचान की है, जो पौष्टिक गुणों से युक्त होने के साथ-साथ भोजन में विविधता को बढ़ावा दे सकती हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | September 4, 2020 5:39 AM

रांची : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पटना व रांची स्थित पूर्वी अनुसंधान परिसर, प्लांडू, रांची के शोधकर्ताओं ने आदिवासियों द्वारा उपयोग की जानेवाली ऐसी पत्तेदार सब्जियों की 20 प्रजातियों की पहचान की है, जो पौष्टिक गुणों से युक्त होने के साथ-साथ भोजन में विविधता को बढ़ावा दे सकती हैं. ये साग-सब्जियां झारखंड में पोषण एवं खाद्य सुरक्षा व आमदनी का बेहतरीन जरिया बन सकती हैं. इन सब्जियों की प्रजातियों में शामिल लाल गंधारी, हरी गंधारी, कलमी, बथुआ, पोई, बेंग, मुचरी, कोईनार, मुंगा, सनई, सुनसुनिया, फुटकल, गिरहुल, चकोर, कटई/सरला, कांडा और मत्था झारखंड के आदिवासियों के भोजन का प्रमुख हिस्सा हैं.

रांची, गुमला, खूंटी, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, रामगढ़ और हजारीबाग समेत झारखंड के सात जिलों के हाट (बाजारों) में सर्वेक्षण में उपलब्ध विभिन्न मौसमी सब्जियों की प्रजातियों के नमूने में मौजूद पोषक तत्वों, जैसे- विटामिन-सी, कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्निशयम, पोटेशियम, सोडियम और सल्फर, आयरन, जिंक, कॉपर एवं मैगनीज, कैरोटेनॉयड्स और एंटीऑक्सीडेंट गुणों का जैव-रासायनिक विश्लेषण किया गया है.

विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर इन पत्तेदार सब्जियों में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, पोटैशियम पाये गये हैं. इन सब्जियों में फाइबर की उच्च मात्रा होती है, जबकि कार्बोहाइड्रेट एवं वसा का स्तर बेहद कम पाया गया है.

फसलों के देसी प्रकार में ज्यादा पोषक तत्व : बिरसा कृषि विवि के सॉयल साइंटिस्ट डॉ अरविंद कुमार बताते हैं कि झारखंड की रेतीली दोमट मिट्टी अम्लीय प्रकृति की है और इसमें कार्बनिक पदार्थो की उपलब्धता कम है. इन वजहों से पौधे पोषक तत्वों का अवशोषण नहीं कर पाते हैं. पौधों में इसकी उपलब्धता बढ़ाने के लिए अनुवांशिक गुणों के विकास की जरूरत है.

एक शोध के मुताबिक, झारखंड के किसानों प्राय: तीन तरह के फसल की खेती करते हैं. इनमें देसी, उन्नत तथा संकर किस्में प्रमुख हैं. अनुसंधान के अनुसार, देसी प्रभेदों में सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, कॉपर, आयरन एवं मैंगनीज की उपलब्धता उन्नत एवं संकर प्रभेदों से ज्यादा होती है. मिट्टी के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों का उचित प्रबंधन और उचित फसल एवं किस्मों का चुनाव कर खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों कि मात्रा को बढ़ाया जा सकता है.

फेटाटेस के कारण शरीर में नहीं पहुंच रहे जरूरी पोषक तत्व : फल और चावल के उत्पादक देशों में भारत दूसरे नंबर पर है. इसके बावजूद यहां के बच्चों में आयरन और जिंक की लगातार कमी बनी हुई है. बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हाॅर्टिकल्चर रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने एक शोध में इंसान के मुख्य आहार के प्रमुख घटक अनाज, कंद और फलियों में फेटाटेस नामक पदार्थ की मात्रा निश्चित सीमा से अधिक होना बताया है.

फेटाटेस पोषण विरोधी होता है, जो खाने में मौजूद आयरन और जिंक को खींच लेता है. इससे ये जरूरी पोषक तत्व शरीर में नहीं पहुंच पाते. फेटाटेस को आहार से हटाया भी नहीं जा सकता, क्योंकि यह कैंसर और उम्र के साथ मानव शरीर में होने वाले परिवर्तनों से लड़ने में मददगार होता है. इंडिया साइंस वायर के मुताबिक भारतीय खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए इनमें मौजूद फेटाटेस की मात्रा को कम करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए. अनाज, दालें, तिलहन और चीनी आयरन और जिंक जैसे पोषक तत्वों का प्रमुख स्रोत हैं.

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Post by : Pritish Sahay

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