स्वास्थ्य सेवा बदहाल. सुदूरवर्ती गांवों में एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिलती
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पत्नी को खाट पर टांग कर 15 किमी पैदल चल पहुंचा अस्पताल
स्वास्थ्य सेवा बदहाल. सुदूरवर्ती गांवों में एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिलती साहिबगंज : राज्य की रघुवर सरकार समाज के अंतिम व्यक्ति तक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के कृत संकल्पित है और इसी को सफल बनाने में दर्जनों प्रकार की स्वास्थ्य योजनाएं चलायी जा रही है. लेकिन क्षेत्र में हकीकत कुछ और ही देखने को मिल […]
साहिबगंज : राज्य की रघुवर सरकार समाज के अंतिम व्यक्ति तक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के कृत संकल्पित है और इसी को सफल बनाने में दर्जनों प्रकार की स्वास्थ्य योजनाएं चलायी जा रही है. लेकिन क्षेत्र में हकीकत कुछ और ही देखने को मिल जायेगा. जी हां! हम बात कर रहे हैं झारखंड प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे साहिबगंज जिले की. साहिबगंज जिला आदिवासी बहुल जिला है. यहां की 35 प्रतिशत आबादी पहाड़ों पर बसती है. आपात स्थिति में अगर कोई महिला, पुरुष या बच्चा बीमार पड़ जाये और उसे इलाज के लिए अस्पताल ले जाना पड़े तो न तो एंबुलेंस, न ही कोई वाहन की सेवा मिल सकती है. परिजनों का बस एक ही अंतिम विकल्प है.
वह है खाट पर मरीज को लिटा कर रस्सी के सहारे 10 या 12 फीट का बांस लगा कर कई किमी के पठारी क्षेत्र का पैदल सफर कर उसे अस्पताल पहुंचाना. शुक्रवार को भी एक ऐसा मामला सामने आया. जिले के मंडरो प्रखंड के दामिनभीठा पंचायत के शहर गड गांव का रूपा पहाड़िया अपनी बीमार पत्नी दोरही पहाड़िन (40) को खाट पर लाद कर इलाज कराने जिला अस्पताल पहुंचा. रूपा ने बताया कि उसकी पत्नी दोरदी को कई दिन से बुखार है. उसके कमर में सूजन है. उसको इलाज कराने के लिए खाट पर लाद कर अस्पताल लाये हैं.
सीएस ने दो वर्ष पूर्व भेजा था डोली सेवा का प्रस्ताव
सीएस डॉ बी मरांडी ने कहा कि पठारी क्षेत्र से गर्भवती को स्वास्थ्य केंद्र व अस्पताल तक सुरक्षित पहुंचाने के उद्देश्य को लेकर सरकार को डोली सेवा प्रारंभ कराने का प्रस्ताव भेजा गया था. लेकिन जिले में डोली सेवा बहाल नहीं हुई.
छह दिसंबर को लगा था जनता दरबार
मंडरो प्रखंड के दामिनभीठा गांव में छह दिसंबर को जनता दरबार लगा था. इसमें 150 मरीज की जांच की गयी थी. लेकिन लगातार पहाड़ी क्षेत्रों में बस व एंबुलेंस की सेवा इलाज के लिए कैम्प समय पर नहीं लगने से दिक्कत हो रही है.
15 किमी पहाड़ी रास्ता तय करने में लगे तीन घंटे
रूपा ने बताया कि हमलोगों को बीमार पत्नी दोरदी को खाट पर लाद कर अस्पताल लाने में लगभग तीन घंटा लगातार चलना पड़ा. 15 किमी का पहाड़ी रास्ता तय करना पड़ा. उन्होंने बताया कि खाट पर मरीज को लेकर पहाड़ पर चढ़ना व उतरना काफी जोखिम भरा कार्य है. लेकिन बाबू मजदूरी सब करा देता है.
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