अब तक बिंदुधाम को नहीं मिल सका पर्यटन स्थल का दर्जा

मां बिंदुवासिनी मंदिर की ख्याति देश के साथ-साथ विदेशों में भी भवन देखरेख के अभाव में हो रहा जजर्र बरहरवा : साहिबगंज जिले के राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में स्थित बरहरवा के बिंदुधाम पहाड़ पर स्थित मां बिंदुवासिनी मंदिर की ख्याति पूरे देश के साथ-साथ विदेशों में भी है. बावजूद जिला प्रशासन व सरकार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 6, 2015 12:52 AM
मां बिंदुवासिनी मंदिर की ख्याति देश के साथ-साथ विदेशों में भी
भवन देखरेख के अभाव में हो रहा जजर्र
बरहरवा : साहिबगंज जिले के राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में स्थित बरहरवा के बिंदुधाम पहाड़ पर स्थित मां बिंदुवासिनी मंदिर की ख्याति पूरे देश के साथ-साथ विदेशों में भी है. बावजूद जिला प्रशासन व सरकार की उपेक्षा के कारण अब तक उक्त स्थल को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित नहीं किया जा सका है.
पर्यटन की असीम संभावनाओं के बावजूद न तो कोई जनप्रतिनिधि और न ही किसी अधिकारी ने ही उक्त स्थल को विकसित करने को लेकर कोई पहल कर रहे हैं. विकास के नाम पर मंदिर परिसर में बने यात्रिका भवन व सामुदायिक भवन देख-रेख के अभाव में जजर्र हो चुका है.जबकि कई भवन आज भी निर्माणाधीन हैं.
पहाड़ी बाबा ने किया था मंदिर का विस्तार : पूर्व में यहां एक विशाल वट वृक्ष के नीचे पूजा-अर्चना की जाती थी. बाद में जब स्वामी हरिहरानंद गिरी उर्फ पहाड़ी बाबा यहां पहुंचे तो मंदिर के महत्व को जानने के बाद अपनी योग क्रिया द्वारा उन तीनों शिला खंड को उठा कर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया. पहाड़ी बाबा के समय से ही मंदिर के विकास व प्रसिद्धि को लेकर पांच दिनों तक चलने वाले शतचंडी महायज्ञ व मास व्यापी मेले का आयोजन शुरू किया गया. जो आज रामनवमी मेले के नाम से विख्यात है.
आकर्षण का केंद्र है मंदिर
मां बिंदुवासिनी मंदिर की दीवारों पर खंभों पर उकेरी गयी अनेक देवी-देवताओं के चित्र आज भी लोगों को अपनी ओर खींचते हैं. मंदिर तक पहुंचने के लिए 108 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है. मंदिर की ख्याति झारखंड, बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, असम, बंगाल, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान आदि पड़ोसी देशों तक फैली हुई है. जिसे देखने को समय-समय पर बाहर से लोग आते रहते हैं.
मंदिर का है ऐतिहासिक महत्व
मंदिर में महादुर्गा, महालक्ष्मी व महासरस्वती पिंड के रूप में विराजमान हैं. यहां आ कर आध्यात्मिक शांति का अनुभव मिलता है. पौराणिक व ऐतिहासिक दृष्टिकोण के अलावे वास्तु शास्त्र के अनुसार भी बिंदुधाम मंदिर को अद्वितीय माना जाता है.
बिंदुधाम के मुख्य मंदिर के समीप यज्ञशाला के उत्तरी भाग में मंदिर निर्माण के दौरान खुदाई के क्रम में इस स्थान से ताम्र पत्र, जंजीर, सम्राट अशोक के मुहर बरामद हुए थे. जो दिल्ली म्यूजियम में रखे हुए हैं.

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