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प्रवचन :: शांति, भारीपन स्वप्रेरित चिकित्सा के प्रमुख अंग यदि कोई निरर्थक विचार आता है तो वह उसे मैत्री भाव से देखता तथा कहता है – ‘अच्छा तुम बाद में आना, क्योंकि मैं अभी स्वप्रेरित प्रशिक्षण ले रहा हूं.’ यह योगनिद्रा की तरह है. चित्तवृत्ति के सूत्र के बाद वाक्यांशों की शृंखला के प्रयोग द्वारा चेतना शरीर के विभिन्न अंगों तथा कार्यों पर ले जाई जाती है. सर्वप्रथम दाहिना अथवा दोनों हाथ तथा दानों पैरों पर चेतना को ले जाते हैं. ऐसी कल्पना करते हैं कि वे भारी और गरम हो रहे हैं प्रशिक्षणार्थी कहता है- दाहिना हाथ भारी, दाहिना हाथ गरम हो रहे हैं. इन वाक्यांशों का मस्तिष्क के भूरे द्रव पर गहरा प्रभाव पड़ता है. मस्तिष्क का बड़ा भाग हाथ की ओर उन्मुख होता है. इस भारीपन का संबंध मांसपेशियों के शिथिलीकरण से है. जब एक अंग शिथिल होता है तो उसका प्रभाव सिर के अतिरिक्त समूचे शरीर में पड़ता है.ऐसा कहा जाता है कि शांति, भारीपन तथा गरमी स्वप्रेरित चिकित्सा के प्रमुख अंग हैं. एक बार इनमें निपुणता प्राप्त कर लेने पर बीमारी के लक्षण गायब हो जाते हैं.

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