वृद्धा आश्रम में मां कर रहीं हैं अपने लाल का इंतजार

अंतरराष्ट्रीय मदर्स डे. पुराने दिनों की याद कर झलक उठते हैं आंसू, मां के पैरों के नीचे स्वर्ग यहां नहीं होता चरितार्थ

By Prabhat Khabar News Desk | May 11, 2024 11:26 PM

साहिबगंज. विश्व में अंतरराष्ट्रीय मदर्स डे रविवार को मनेगा. वर्ष 1908 में अमेरिकी कार्यकर्ता अन्ना जार्विस ने अपनी मां के सम्मान में एक स्मारक सेवा आयोजित की. इसमें भारी भीड़ जुटी थी. इसके बाद में इसे एक मां की कठिनाइयों को स्वीकार करने के दिन के रूप में मनाया जाने लगा. जिला मुख्यालय स्थित धोबी झरना के पास बने वृद्ध आश्रम की नौ वृद्ध माताएं रह रही हैं. बातचीत के क्रम में महिलाओं ने बताया कि मुझे जानकारी मिल रही है कि रविवार को माता दिवस है. बड़ा मदनशाही की रहनेवाली विमला देवी ने बताया कि लोग कहते हैं की मां के पैर के नीचे स्वर्ग है. निश्चित रूप से यह बात गलत नहीं हो सकती. क्योंकि धार्मिक किताब में भी लिखी हुई है. लेकिन आजकल के बच्चे इसे समझ नहीं पा रहे हैं. यही कारण है कि बूढ़े मां-बाप को बच्चे बोझ समझते हैं. केलाबाड़ी निवासी उषा राय ने बताया कि मदर्स डे है. यह क्या होता है. यह तो हम लोग नहीं जानते. हम लोग पुराने जमाने की महिला हैं. बड़ी विडंबना होती है जब इस तरह की दिन आता है और शहर से लोग हमारे आश्रम में महिलाओं को सम्मानित करने के लिए आते हैं. तब उसे समय हमारे यहां के अपनी परिजनों को तलाशती है. आखिर परिजन क्यों आये, जब उन लोगों ने मुझे वृद्ध आश्रम में पहुंचा दिया. बरमसिया निवासी सलमा किस्कू बताती हैं कि पहले हम लोग सुना करते थे कि बड़े-बड़े शहरों में शहर के लोग अपनी मां-बाप को वृद्ध आश्रम में रखते हैं. पर अब आदिवासी लोगों को भी अपने मां-बाप भारी लगने लगे हैं. बोरियो के अप्रौल निवासी बहीम हेंब्रम ने बताया कि यहां जिसे देखता हूं मुझे लगता है कि सभी लोग हमारे परिवार हैं. अलग से हमारा भाई और रिश्तेदार क्यों मेरे से मिलने आयेगा. शहर के चौक बाजार स्थित रोड निवासी रश्मि देवी उन्होंने बताई कि मेरी उम्र अभी 70 वर्ष हो गयी है. लगभग यहां पर 70 के आसपास के ही महिलाएं रह रहीं हैं. सबसे बड़ी दुख तब होता है जब बाजार से लोग सम्मानित करने आते हैं. मैं अपने परिजनों को देखने के लिए बेताब रहती हूं. उधवा के रहनेवाली अर्चना राय ने बताया की मैं अपने परिजनों का नाम नहीं बताऊंगी मुझे शर्म आती है. मेरे परिजन को शर्म नहीं आती है. पालन-पोषण कर बच्चों को बड़ा किया. आज हम बोझ बन गये हैं. अजहर टोला निवासी मंजू देवी ने बताया कि मेरा घर महज कुछ दूरी पर है. परंतु मुझे वृद्ध आश्रम में रहना मजबूरी हो गयी. शहर के गुल्ली भट्टा निवासी सरस्वती ने बताया कि अब जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर हूं. किसे कहूं कि कौन गलत किया. गुल्लीभट्टा निवासी मोनिका देवी ने कहा कि मुझे कभी-कभी लगता है कि अपना घर जाऊं. लेकिन आखिर जाऊंगी किसके पास यही ठीक हूं. कॉलेज रोड निवासी सुमित्रा मोसमात ने बताया कि मैं अपने घर से बहुत बेहतर यहां रह रही हूं. मैं मदर्स डे पर सभी माता को बधाई देना चाहती हूं. मेरे बाल बच्चे खुश रहें. यही हम लोगों की दुआ है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version