उत्तरवाहिनी गंगा में श्रद्धालुओं ने किया पवित्र स्नान, इष्ट की आराधना शुरू

उत्तरवाहिनी गंगा में श्रद्धालुओं ने किया पवित्र स्नान, इष्ट की आराधना शुरू

By Prabhat Khabar News Desk | February 11, 2025 9:15 PM

प्रतिनिधि, राजमहल

उत्तर वाहिनी गंगा तट पर सालों से लगने वाला माघी मेला कई मायनों में खास है. मेले में लगे गुरु बाबाओं का अखाड़ा अद्भुत नजारा प्रस्तुत करता है. यह मेला आदिवासी-गैरआदिवासी साझी संस्कृति का अद्भुत मिसाल भी है. गंगा स्नान व पूजा-अर्चना करने झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा व नेपाल से भी आदिवासी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. इस वजह से माधी पूर्णिमा पर राजमहल में लगने वाले इस मेला को आदिवासियों का ””महाकुंभ”” भी कहा जाता है. इस आस्था के महाकुंभ में मंगलवार को आदिवासी साफाहोड़ श्रद्धालु अपने धर्म गुरुओं के साथ आस्था की डुबकी लगना शुरू कर दिये हैं. यह सिलसिला लगभग चार दिनों तक जारी रहेगा. पूर्णिमा के पहले, पूर्णिमा मुहूर्त एवं उसके बाद अपने-अपने धर्म गुरुओं के साथ अनुआई गंगा स्नान कर देंगे. वस्त्र में घंटों आराधना करने के उपरांत लोटा में जल लेकर अखाड़ा पहुंचते हैं.

गुरु शिष्य के अनोखा एवं प्राचीनतम उदाहरण

एक तरफ साफाहोड़ व विदिन होड़ आदिवासी अपने धर्म गुरुओं के साथ उत्तरवाहिनी गंगा में आस्था की डुबकी लगाते हैं. वहीं गैर आदिवासी समाज के श्रद्धालु भी हजारों की संख्या में गंगा स्नान कर गंगा पूजन करते हैं. मेला परिसर में लगे गुरु बाबाओं के अखाड़े में उनके साथ बैठने वाले शिष्य के साथ अन्य धर्मावलंबी भी होते हैं. गुरु शिष्य की परंपरा का ऐसा अनोखा व प्राचीनतम उदाहरण शायद ही कहीं देखने को मिले. शिष्यों के शारीरिक, आर्थिक व मानसिक कष्टों का निवारण गुरु बाबा अपनी विशिष्ट आध्यात्मिक शैली से करते हैं. मान्यता है कि माघी पूर्णिमा पर गंगा स्नान से पापों से मुक्ति मिलती है. आदिवासी समुदाय के लोग परंपरागत वेशभूषा में सपरिवार यहां पहुंचते हैं. आधुनिक चकाचौंध से दूर विशेषकर साफाहोड़ व विदिन होड़ आदिवासी मेला के दौरान मांस-मदिरा का सेवन करना, तो दूर प्याज लहसुन तक नहीं खाते हैं. विशुद्ध सादा भोजन करना एवं सादगी से जीवन व्यतीत करना उनका एकमात्र लक्ष्य होता है. सर्द भरी रात में गुरु शिष्य साथ मिलकर अखाड़ा तैयार करते हैं. सूर्योदय से पहले गंगा नदी में स्नान के लिए प्रवेश कर जाते हैं. घंटों सूर्योपासना के बाद भींगे वस्त्र में एक कांसा के लोटे में गंगा जल लेकर सभी अपने-अपने अखाड़ा में पहुंचते हैं. वे लोग मांझी हड़ाम यानी शिव की गुरु पूजा त्रिशूल व तुलसी में रख कर शिव चित्र स्थापित कर करते हैं. साफाहोड़ समुदाय के लोग अपने-अपने गुरु बाबा के प्रति अपार श्रद्धा और विश्वास व्यक्त करते हुए अपना सब कुछ गुरु के चरणों में समर्पित कर देते हैं. गुरु उनकी सुख-समृद्धि व शांति के लिए मांझी हड़ाम यानी शिव गुरु से आशीष मांगते हैं. पूजा अनुष्ठान के दौरान गुरु बाबा के मंत्र उच्चारण की विशिष्ट शैली हिंदू शैव प्रवर्तकों का एक अलग स्वरूप प्रस्तुत करता है. निःसंदेह मंत्रोच्चारण की संस्कृत व देवनागरी से कोई वास्ता नहीं है. हालांकि वे अपने-अपने आस्था के नाम पर पूर्व ””ऊं”” उच्चारण अवश्य करते हैं. विदिन होड़ समाज के लोग मांझी स्थान व जाहेर स्थान बना कर पूजा करते हैं. वैसे राजमहल गंगा तट पर स्थाई मांझी स्थान भी हैं.

मेला में लगने लगा मनोरंजन के साधन

राजकीय माघी मुख्य पूर्णिमा मेले में दुकानें सज गयी है. मिठाई, नाश्ता, पूजन सामग्री, लोहे का सामान, शील-पाटा सहित अन्य छोटे-मोटे खिलौने की दुकानें भी शामिल हैं. राजमहल व आसपास ग्रामीण इलाके में गंगा स्नान एवं मेला में मनोरंजन के साधनों का लुप्त उठाने पहुंचते हैं.

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