राजमहल: 213 बूथों पर भाजपा की रही बढ़त, पर 161 बूथों ने झामुमो को दिलायी जीत
साहिबगंज जिले की तीन विधानसभा सीटों में सबसे चौंकाने वाला परिणाम राजमहल विधानसभा सीट पर देखने को मिला. इस सीट पर अलग झारखंड राज्य के गठन के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का वर्चस्व कायम रहा था.
संवाददाता, साहिबगंज
विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के साथ ही राजनीतिक गलियारों में हार-जीत को लेकर गहन मंथन शुरू हो गया है. साहिबगंज जिले की तीन विधानसभा सीटों में सबसे चौंकाने वाला परिणाम राजमहल विधानसभा सीट पर देखने को मिला. इस सीट पर अलग झारखंड राज्य के गठन के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का वर्चस्व कायम रहा था. भाजपा ने सबसे ज्यादा चार बार इस सीट पर जीत दर्ज की थी और पिछले तीन चुनावों में लगातार अपना परचम लहराया था. लेकिन इस बार भाजपा को राजमहल सीट पर अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा. यह हार पार्टी समर्थकों और विश्लेषकों के लिए असमंजस का विषय बनी हुई है. दिलचस्प बात यह है कि इस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा, लेकिन फिर भी सीट झामुमो (झारखंड मुक्ति मोर्चा) गठबंधन के प्रत्याशी एमटी राजा के खाते में चली गयी. राजमहल सीट के कुल 383 बूथों में से भाजपा प्रत्याशी अनंत ओझा को सबसे अधिक 213 बूथों पर बढ़त मिली, जबकि झामुमो प्रत्याशी एमटी राजा को 161 बूथों पर समर्थन प्राप्त हुआ. बावजूद इसके, भाजपा यह सीट नहीं बचा सकी. खासकर बूथ संख्या 232 पर भाजपा प्रत्याशी अनंत ओझा को एक भी वोट नहीं मिले, जबकि एम.टी. राजा ने लगभग सभी बूथों से वोट हासिल किया. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि झामुमो की जीत का मुख्य कारण मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार द्वारा मंईयां सम्मान योजना और बिजली बिल माफी योजना को चुनाव से ठीक पहले लागू करना रहा. इन योजनाओं ने मतदाताओं पर गहरा प्रभाव डाला और झामुमो को महत्वपूर्ण बढ़त दिलायी. दूसरी ओर, एमटी राजा ने अपने राजनीतिक जीवन के सबसे महत्वपूर्ण चुनाव में जबरदस्त रणनीति अपनायी. लंबे समय तक पार्टी से निष्कासन झेलने के बाद 6 मार्च 2024 को जब उन्होंने झामुमो में वापसी की, तभी से उन्होंने चुनाव जीतने की तैयारी शुरू कर दी थी. इस बार की हार उनके लिए राजनीतिक संन्यास लेने की मजबूरी बन सकती थी, इसलिए उन्होंने इसे आखिरी चुनौती के रूप में लिया और पूरी ताकत झोंक दी.जनसांख्यिकीय बदलाव बनी बड़ी वजह:
चुनाव से पहले राजमहल विधानसभा क्षेत्र में 27,000 नये मतदाता जुड़े, और लोकसभा व विधानसभा चुनाव के बीच यह संख्या 7,000 और बढ़ गयी. भाजपा नेताओं का दावा है कि इन 34,000 नए मतदाताओं में से अधिकांश झामुमो समर्थक थे. इसके अलावा, लगभग 30,000 ऐसे मतदाता, जो काम के सिलसिले में क्षेत्र से बाहर थे, चुनाव के लिए वापस बुलाये गये.भाजपा की रणनीति और उसकी चुनौतियां:
भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान हिंदू बहुल क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की. दूसरी ओर, झामुमो ने इन्हीं क्षेत्रों में जनसंपर्क अभियान चलाकर भाजपा के वोट बैंक में सेंधमारी की. झामुमो की इस रणनीति का फायदा एमटी. राजा को मिला और उन्होंने चुनाव में बाजी मार ली.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है