पारंपरिक खेती को छोड़ शुरू की गेंदा फूल की खेती, कमा रहे अच्छा मुनाफा
मिर्जाचौकी सीमावर्ती क्षेत्र के योगिया लताब गांव के दिलीप महतो आसपास के किसानों को कर रहे प्रेरित
मंडरो. देश में हुनर और हुनरमंद लोगों की कमी नहीं है. अपना देश कृषि प्रधान है. देश की माटी में ही सोना उगता है, बस लगन के साथ मेहनत करने की जरूरत है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है मिर्जाचौकी सीमावर्ती क्षेत्र के योगिया लताब गांव के 45 वर्षीय दिलीप महतो ने. दिलीप महतो ने कहा कि पांच वर्ष पूर्व आलू और प्याज की खेती कर जीवन यापन करते थे, लेकिन आमदनी का स्रोत नहीं बढ़ पाया. इसके बाद चार वर्ष पूर्व गेंदा फूल की खेती शुरू किया. गेंदा फूल की खेती करना प्रारंभ किया, तब से अच्छी आमदनी शुरू हुई और सबसे पहले हम 1 लाख 45 हजार रुपये कमा कर परिवार का भरण पोषण करना शुरू किया. उन्होंने कहा कि परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उच्चस्तरीय शिक्षा ग्रहण नहीं कर सके और नॉन मैट्रिक ही रह गये. फूलों की खेती करके अपने दो पुत्रों को अच्छी शिक्षा प्रदान करा रहे हैं. आज मेरी आर्थिक स्थिति काफी अच्छी है. 400 रुपये प्रति सैकड़े की दर से कोलकाता से मंगाये पौधे दिलीप महतो का कहना है कि जब हम गेंदा फूल की खेती शुरू किया, तब 400 रुपये प्रति सैकड़े की दर से कोलकाता से पौधे मंगाये और तीन कट्ठा में खेती शुरू किया. उन्होंने फूलों को अपने घर से बिक्री करते हुए मिर्जाचौकी बाजार में खुदरा बिक्री करते हैं. व्यापारी घर पर भी आकर फूल खरीद कर ले जाते हैं. अब बढ़िया मुनाफा भी हो रहा है. तीन साल पहले फूलों की खेती शुरु की और मेरी मेहनत रंग लायी. हालांकि, शुरुआती दौर में गुजारे लायक आमदनी हुई, तो हम खेती का रकबा बढ़ाया. इससे पैदावार में इजाफा होने के साथ ही आमदनी भी बढ़ी. आज एक बीघे खेत में गेंदा फूल की खेती कर रहे हैं. आर्थिक तौर पर मिली मजबूती दिलीप महतो ने बताया कि मुझे देखकर गांव के अन्य किसानों का भी रुझान अब परंपरागत फसलों के बजाय फूलों की खेती की ओर बढ़ने लगा है. आज हम आर्थिक रूप से लगातार मजबूत हो रहे हैं. एक समय ऐसा भी था, जब हमने सरकारी मदद की आस लगा रखी थी. इस आस में कोशिश भी की, पर मदद नहीं मिलने पर कर्ज लेकर गेंदे के फूल की खेती शुरू किया. दशहरा, दीपावली जैसे त्योहारों, पूजा पाठ और शादी विवाह के मौके पर फूलों की बिक्री से अच्छी बचत हो जाती है.
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