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Jharkhand Election 2024: राजमहल विधानसभा क्षेत्र में BJP का रहा है दबदबा, इस नेता ने 18 वर्षों तक किया राज

राजमहल विधानसभा क्षेत्र से लंबे समय तक विधायक बनने का सौभाग्य ध्रुव भगत को ही मिला. 1977 में ध्रुव भगत जनसंघ और जनता पार्टी के सहयोग से निर्दलीय चुनाव लड़े और पहली बार जीत दर्ज की.

Jharkhand Election 2024 : आजादी के बाद हुए पहले चुनाव में राजमहल विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के मो बुरहानुद्दीन खान ने जीत दर्ज की और इस क्षेत्र के पहले विधायक के रूप में विधानसभा में कदम रखा, जबकि राजमहल दामिन निर्वाचन क्षेत्र से जेठ किस्कू विधानसभा पहुंचे. उस समय राजमहल विधानसभा क्षेत्र से दो प्रतिनिधि चुने जाते थे.

1957 के चुनाव में विनोदानंद झा ने दर्ज की जीत

1957 में दूसरा चुनाव हुआ और यह सीट फिर कांग्रेस की ही झोली में गयी. 1957 से राजमहल का एक अलग अस्तित्व बना दामिन क्षेत्र अलग कर दिया गया. 1957 में हुए चुनाव में विनोदानंद झा ने राजमहल विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया. 1962 में भी विनोदानंद झा कांग्रेस से राजमहल के विधायक चुने गए. लेकिन 1967 में हुए चुनाव में स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार नथमल डोकानियां ने विनोदानंद झा को पराजित कर राजमहल सीट अपने नाम कर ली.

1969 में पहली बार भारतीय जनसंघ से खोला खाता

1969 में पहली बार राजमहल विधानसभा सीट भारतीय जनसंघ के खाते में गयी. 1969 में भारतीय जन संघ के ओमप्रकाश राय जीते. उसके बाद तीन बार पुनः कांग्रेस को राजमहल विधानसभा सीट पर सफलता मिली बाकी टर्म में राजमहल सीट भाजपा के ही कब्जे में रही. 1967 के बाद राजमहल विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भाजपा और कांग्रेस ने ही किया. राजद के कद्दावर नेता रहे राज्य सरकार के पूर्व मंत्री रामचंद्र केसरी ने भी राजमहल विधानसभा सीट से राज्य की टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं पाये.

झारखंड विधानसभा चुनाव की ताजा खबरें यहां पढ़ें

ध्रुव भगत 18 वर्षों तक रहे विधायक

राजमहल विधानसभा क्षेत्र से लंबे समय तक विधायक बनने का सौभाग्य ध्रुव भगत को ही मिला. 1977 में ध्रुव भगत जनसंघ और जनता पार्टी के सहयोग से निर्दलीय चुनाव लड़े और पहली बार जीत दर्ज की. इसके बाद 1980 में वे भाजपा में चले गये उन्हें टिकट मिला और जीते भी. उसके बाद 1985 में भी वे विधायक बने. लेकिन 1990 में हवा का रूख उनके उनके खिलाफ थी, वे कांग्रेस के रघुनाथ प्रसाद सोडाणी से चुनाव हार गये. 1995 में पुनः कांग्रेस को पराजित ध्रुव भगत कर जीत का परचम लहराया. चारा घोटाले में जेल जाने के बाद उन्हें भाजपा ने 6 वर्षों के लिए निलंबित कर दिया.

2000 में चारा घोटाले के कारण बीजेपी से हुए निष्कासित

2000 में हुए चुनाव में भाजपा ने ध्रुव भगत के बदले अरुण मंडल पर अपना भरोसा जताया. राजमहल भाजपा की परंपरागत सीट होने के कारण अरुण मंडल ने भी राजमहल सीट से जीत दर्ज की. इसी वर्ष बिहार से झारखंड अलग हो गया.

झारखंड बनने के बाद कांग्रेस ने मारी बाजी

झारखंड बनने के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव 2005 में संताल परगना के कद्दावर नेता रहे थॉमस हंसदा ने राजमहल विधानसभा से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा. इस वर्ष भाजपा ने अपने सिटिंग विधायक अरुण मंडल का टिकट काटकर कमल कृष्ण भगत को टिकट दिया परिणाम हुआ कि भाजपा के वोट बंटा और कांग्रेस को जीत मिली. परंतु 2009 में एक बार पुनः भाजपा ने अपनी गलती को सुधारते हुए अरुण मंडल को ही अपना उम्मीदवार बनाया और 2009 में भाजपा ने एक बार फिर जीती.

2009 से अबतक बीजेपी ने लगातार दर्ज की जीत

2014 में पार्टी ने अरुण मंडल का टिकट काटकर अनंत कुमार ओझा को राजमहल से प्रत्याशी बनाया, इस बार अरुण मंडल के चुनावी मैदान में होने के बावजूद भाजपा ने मामूली अंतर से जीत दर्ज की. 2019 में एक बार फिर अनंत ओझा ने ही भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा और राजमहल की जनता ने पुनः अनंत ओझा को विजयी बनाया. अब तक हुए चुनाव में ध्रुव भगत को छोड़कर किसी ने भी विधानसभा में प्रतिनिधित्व की लंबी पारी नहीं खेली. ध्रुव भगत को राजमहल विधानसभा से लगभग 18 वर्ष तक प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्राप्त हुआ.

अब तक प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक

बिहार

1952 : मोहम्मद बुरहानुद्दीन खान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जेठा किस्कू (राजमहल दामिन निर्वाचन क्षेत्र)
1957 विनोदानंद झा-कांग्रेस
1962 विनोदानंद झा-कांग्रेस
1967 एन. डोकानीया – स्वतंत्र पार्टी
1969 ओम प्रकाश रॉय- भारतीय जनसंघ
1972 नाथमल डोकानिया-कांग्रेस
1977 ध्रुव भगत स्वतंत्र
1980 ध्रुव भगत- भाजपा
1985 ध्रुव भगत-भाजपा
1990 रघु नाथ प्रसाद सोडाणी- कांग्रेस
1995 ध्रुव भगत : भाजपा
2000 अरुण मंडल-भाजपा
झारखंड
2005 थॉमस हांसदा-कांग्रेस
2009 अरुण मंडल-भाजपा
2014 अनंत कुमार ओझा-भाजपा
2019 अनंत कुमार ओझा -भाजपा

भाजपा और झामुमो के बीच होगी सीधी टक्कर चांय समाज हो रहे गाेलबंद

चुनाव का बिगुल बजते ही विभिन्न चौक चौराहों पर प्रत्याशियों के नाम और उनके जीत हार के दावे को लेकर चर्चा शुरू हो गयी है. साहिबगंज शहर का राजनीतिक केंद्र बिंदु कहलाने वाला बाटा मोड़ (अब विवेकानंद चौक) पर लगभग सभी दलों के समर्थकों का शाम को जमावड़ा लगता है. लोगों में इस बात की चर्चा है कि इस बार भी राजमहल विधानसभा क्षेत्र में भाजपा और झामुमो के बीच सीधी टक्कर होगी. वहीं एक वर्ग यह भी कहते सुने जा रहे हैं कि इस बार भाजपा के लिए सीटिंग विधायक हैट्रिक लगाने में कामयाब होंगे. चांय समाज का ज्यादातर वोट अब तक भाजपा के ही पक्ष में जाता रहा है अगर इस बार भी ऐसा ही रहा तो भाजपा की राह आसान हो सकती है परंतु चांय समाज का गोल बंद होना भाजपा के लिए चिंता का विषय हो सकता है. अब देखना क्या होगा कि यह गोलबंदी वास्तव में सामाजिक हित के लिए हो रही है या राजनीतिक हित साधने को लेकर. ऐसे में चांय जाति की गोलबंदी परिणाम को प्रभावित भी कर सकती है.

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