ब्रिटिशों के खिलाफ संताल हूल की उपज है संताल परगना प्रमंडल: सच्चिदानंद
प्रगति भवन सभागार में झारखंड राजभाषा साहित्य अकादमी की ओर से कार्यक्रम का आयोजन
साहिबगंज. प्रगति भवन के सभागार में झारखंड राजभाषा साहित्य अकादमी के तत्वावधान में संताल परगना प्रमंडल स्थापना की 169वीं वर्षगांठ पर संताल हूल और इसके परिणाम विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की गयी. कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के कुलाधिपति डॉ. रामजन्म मिश्र ने की. इस संगोष्ठी का विषय था. कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए झारखंड राजभाषा साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. सच्चिदानंद ने संताल परगना प्रमंडल के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि 1855 में ब्रिटिश शासन ने संताल परगना को एक विशेष प्रशासनिक इकाई के रूप में स्थापित किया. इसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी समुदायों की संघर्षपूर्ण स्थिति को शांत करना था. यह डिवीजन आदिवासियों के ऐतिहासिक संघर्षों, खासकर 1855-56 के संताल हूल का परिणाम था, जो अंग्रेजों और जमींदारों के शोषण के खिलाफ एक बड़ा विद्रोह था. संताल हूल है संघर्ष और बलिदान की गाथा प्रसिद्ध टेराकोटा कलाकार अमृत प्रकाश ने अपने उद्बोधन में कहा कि संताल हूल आदिवासियों के साहस और बलिदान की कहानी है. इस आंदोलन में ब्रिटिश प्रशासन और जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठायी गयी. आदिवासी समुदायों को अंग्रेजों की नीतियों के कारण आजीविका संकट, भारी कराधान, भूमि अधिग्रहण और व्यापारिक शोषण का सामना करना पड़ा. विमल मुर्मू ने अपने वक्तव्य में कहा कि संताल हूल के 102 वर्षों के बाद भारत स्वतंत्र हुआ, लेकिन आदिवासी समाज के उत्थान के लिए आज भी प्रयास जारी रखने की आवश्यकता है. उन्होंने जोर देकर कहा कि छोटे प्रशासनिक इकाइयों के निर्माण के बावजूद विकास की किरणें समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए. अंग्रेजों की नीतियां और आदिवासी समाज पर प्रभाव संगोष्ठी के मुख्य वक्ता साहित्यकार अनिरुद्ध प्रभास ने कहा कि संताल हूल केवल एक विद्रोह नहीं, बल्कि अन्याय और शोषण के खिलाफ आदिवासियों की हुंकार थी. हजारों आदिवासियों ने इस आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति दी. विद्रोह को दबाने के बाद, ब्रिटिश सरकार ने इसे अलग प्रशासनिक इकाई के रूप में स्थापित किया. उनका उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों को नियंत्रित करना, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना और विद्रोहों की संभावनाओं को समाप्त करना था. मनोरंजन भोजपुरी साहित्य परिषद की सचिव सरिता तिवारी ने बताया कि अंग्रेजों ने लैंड रेवेन्यू जैसी नीतियों के जरिये आदिवासी भूमि पर कब्जा जमाया. संताल परगना के प्राकृतिक संसाधनों, जैसे खनिज, जंगल और जल संसाधनों का उपयोग ब्रिटिश साम्राज्य की आवश्यकताओं के लिए किया गया. संताल परगना का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व संताल परगना न केवल एक प्रशासनिक इकाई है, बल्कि आदिवासी समुदाय की पारंपरिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है. इस क्षेत्र में आदिवासियों का जीवन, उनकी संस्कृति और परंपराएं ब्रिटिश नीतियों के कारण प्रभावित हुईं. कार्यक्रम में उपेंद्र राय ने संताल हूल के अमर शहीदों को नमन करते हुए कहा कि यह क्षेत्र आदिवासी समाज के संघर्ष और अस्तित्व का जीवंत उदाहरण है. भारत यादव ने कहा कि संताल परगना का गठन अंग्रेजों की नीतियों का परिणाम था, लेकिन यह आदिवासी समाज के संघर्षों का भी प्रमाण है. इस अवसर पर गौरव रामेश्वरम, गरिमा मिश्रा, नकुल मिश्रा, यशराज, श्रेया मिश्रा, और मुन्ना पासवान आदि उपस्थित रहे.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है