साहिबगंज नींबू पहाड़ अवैध खनन मामले की जारी रहेगी CBI जांच, सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से किया इनकार
मामले की सुनवाई के दौरान पंकज मिश्रा की ओर से यह दलील पेश की गयी कि विजय हांसदा की याचिका पर हाइकोर्ट द्वारा दिया गया सीबीआइ जांच का आदेश नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध है.
रांची : साहिबगंज के नींबू पहाड़ पर हुए अवैध खनन मामले की सीबीआइ जांच पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया. साथ ही पंकज मिश्रा और विजय हांसदा द्वारा दायर याचिका पर अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद करने का फैसला किया है. न्यायाधीश बेला एम त्रिवेदी और न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की पीठ में पंकज मिश्रा और विजय हांसदा द्वारा दायर याचिका पर संयुक्त रूप से सुनवाई हुई. पंकज मिश्रा ने विजय हांसदा की याचिका पर हाइकोर्ट द्वारा दिये गये सीबीआइ जांच के आदेश को चुनौती दी थी. विजय हांसदा ने भी सुप्रीम कोर्ट में दो याचिका दायर कर हाइकोर्ट द्वारा उसकी मूल याचिका का वापस नहीं लेने के मामले को चुनौती दी थी.
मामले की सुनवाई के दौरान पंकज मिश्रा की ओर से यह दलील पेश की गयी कि विजय हांसदा की याचिका पर हाइकोर्ट द्वारा दिया गया सीबीआइ जांच का आदेश नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध है. हाइकोर्ट ने पंकज मिश्रा का पक्ष सुने बिना ही सीबीआइ जांच का आदेश दिया. यह नियम सम्मत नहीं है. पंकज मिश्रा की ओर से इस प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये गये फैसलों का हवाला दिया गया.
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याचिका दायर करनेवालों की दलील : सीबीआइ जांच का आदेश दिया जाना गलत
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि पंकज मिश्रा को गिरफ्तार किया गया है या नहीं? इसके जवाब में कहा गया कि उसे एक दूसरे मामले में पहले गिरफ्तार किया जा चुका है. वह उसी वक्त से जेल में है. विजय हांसदा की ओर से यह दलील दी गयी कि वह जब जेल में था उस वक्त उसके नाम से हाइकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. इस याचिका में उसके द्वारा बोरियो थाने में दर्ज करायी गयी प्राथमिकी में किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की मांग की गयी थी. उसे धोखा देकर किसी ने उसके नाम पर जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की थी. इसलिए वह इस याचिका को वापस लेना चाहता था. उसने याचिका वापस लेने के लिए हाइकोर्ट में आइए दायर की थी.
लेकिन हाइकोर्ट ने याचिका वापस नहीं लेने दी और सीबीआइ जांच का आदेश दे दिया. हाइकोर्ट का यह कदम नियम सम्मत नहीं है. न्यायालय द्वारा सुनवाई के दौरान यह सवाल उठाया गया कि अगर न्यायालय को याचिकाकर्ता की भूमिका पर संदेह हो तो उसे जांच का आदेश देने का अधिकार है या नहीं. इस सवाल के जवाब में विजय हांसदा की ओर से यह कहा गया कि न्यायालय को संदेह दूर करने के लिए जांच का आदेश देने का अधिकार है. लेकिन वकालतनामा सही है या गलत इसकी जांच रजिस्ट्रार जेनरल से कराने के बदले सीधे मामले को सीबीआइ के हवाले कर दिया गया. यह गलत है.
ईडी की दलील :
जांच अभियुक्त से पूछ कर करने का नियम नहीं है इडी की ओर से सुनवाई के दौरान यह कहा गया कि विजय हांसदा द्वारा दर्ज करायी गयी प्राथमिकी में पंकज मिश्रा का नाम अभियुक्तों की सूची में शामिल है. किसी भी तरह की जांच अभियुक्त से पूछ कर करने का कोई नियम नहीं है. साथ ही जांच एजेंसी का नाम भी अभियुक्त से पूछ कर तय नहीं की जा सकती है. इडी की ओर से यह भी कहा गया कि हाइकोर्ट ने मामले में सीबीआइ को प्रारंभिक जांच करने का आदेश दिया था. साथ ही प्रारंभिक जांच में मिले तथ्यों के आलोक में सीबीआइ निदेशक के फैसले के आधार पर आगे की कार्रवाई करने का आदेश दिया. सीबीआइ ने हाइकोर्ट के आदेश के आलोक में प्रारंभिक जांच में मिले तथ्यों के आधार पर हाइकोर्ट से नियमित प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति मांगी थी. लेकिन हाइकोर्ट ने यह कहते हुए सीबीआइ की याचिका को खारिज कर दी कि प्रारंभिक जांच में मिले तथ्यों के आधार पर आगे की कार्रवाई के लिए सीबीआइ निदेशक को फैसला करना है न कि कोर्ट को. इसके बाद सीबीआइ निदेशक के फैसले के आलोक में सीबीआइ ने नियमित प्राथमिकी दर्ज कर ली है. इसलिए अब सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका का कोई औचित्य नहीं है. इडी की दलील पूरी होने के बाद याचिकाकर्ताओं की ओर से मामले में अंतरिम राहत देने का अनुरोध किया गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने किसी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया.