सरायकेला : देश में अलग-अलग संस्कृति व परंपरायें हैं. यह परंपरा ही हमें दूसरों से अलग करता है इसी के तहत मकर संक्रांती के दूसरे दिन यानी आखान यात्रा पर सरायकेला खरसावां जिला के आदिवासी बहुल गांवों में बच्चे का कुत्ता व बच्ची का कुत्तिया से शादी कराने की परंपरा रही है.
इसी का निर्वहन करते हुए सरायकेला प्रखंड के केंदपोशी गांव में बुधवार को एक डेढ वर्षीय बच्ची की शादी एक कुत्ते से करायी गयी. गांव के दीपक हेंब्रम व गुरुवारी हेंब्रम के डेढ वर्षीय बच्ची की शादी एक कुत्ते से करायी गयी. इस दौरान शादी के तमाम रस्मों का निर्वहन करते हुए मेहमानों को भी आमंत्रित किया गया था. शादी समारोह में कुत्ते को दुल्हे के रूप में सजाया गया था, जबकि बच्ची को दुल्हन के रूप में सजाया गया था. मेहमानों की उपस्थिति में परंपरा के तहत एक पेड़ के नीचे शादी करायी गयी.
* क्यों कराया जाता है कुत्ते या कुत्तिया से विवाह
आदिवासी रिवाज में परंपरा है कि अगर बच्चे का दांत दस माह में व उपरी जबडे में पहले दांत आ जाता है वह अशुभ माना जाता है. इसलिए बच्चे का कुतिया से एवं बच्ची का कुत्ते से विवाह करना जरूरी होता है.
* गर्म लोहे से नाभी में भी दाग देने की भी है प्रथा
आखान यात्रा में बच्चे के नाभी में गर्म लोहे से दागने की भी प्रथा ग्रामीण क्षेत्र में है. मान्यता है कि अगर पेट दर्द या पेट में किसी प्रकार की शिकायत है तो चिडु दाग(नाभी में दागने) कराने से पेट दर्द सदा के लिए गायब हो जाता है इसी परंपरा के तहत ग्रामीण क्षेत्र में आज भी नाभी दाग की प्रथा का प्रचलन है.