सरायकेला : छऊ नृत्य राज्य की सांस्कृतिक धरोहर है. छऊ की पहचान देश स्तर पर नहीं अपितु विदेशों में भी है. उक्त बातें राज्यपाल दौपदी मुर्मू ने सरायकेला छऊ महोत्सव के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कही. राज्यपाल ने कहा कि छऊ नृत्य नहीं बल्कि जीवन शैली है. इस नृत्य में बिना कुछ बोले अपने भाव भंगीमा से रामायण, महाभारत व अन्य पौराणीक कथाओं को दिखाने की कला देखने को मिलती है. यह बगैर कहे समाज हित में भी नया संदेश देता है.
राज्यपाल मुर्मू ने छऊ नृत्य की तारीफ करते हुए कहा कि सरायकेला खरसावां जिले में तीन तीन शैली के नृत्य देखने को मिलते हैं. सरायकेला शैली के साथ-साथ मयुरभंज व मानभूम शैली छऊ भी विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ने में सफल रही है.
अन्य लोक कलाओं से छऊ को विकसित कला बताते हुए राज्यपाल ने कहा कि छऊ नृत्य में मुद्रा संयोजन काफी विकसित है. साथ ही उन्होंने छऊ को सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न अंग करार दिया.
छऊ के कारण ही मिले है छह पद्मश्री, गौरव की बात
राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि सरायेकला की प्रसिद्ध छऊ नृत्य के कारण यहां छह गुरुओं को पद्मश्री का अवार्ड प्राप्त हुआ है. जो जिला ही नहीं पूरे राज्य के लिए काफी गौरव की बात है. छऊ नृत्य के कायल देश स्तर पर ही नहीं है परंतु सात समंदर पार विदेशों में भी इसकी अलग ही पहचान है और लोग इसके कायल हैं. राज्यपाल ने छऊ गुरुओं के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि आधुनिकता के साथ छऊ नृत्य में कहानी ला रहे हैं, काफी सराहनीय है.
महिलाओं का प्रवेश होने से बढ़ रही है ख्याति
राज्यपाल ने कहा कि पहले छऊ में सिर्फ पुरुष ही नृत्य करते थे. परंतु अब महिलाओं का भी इसमें प्रवेश होने लगा है. महिलाएं भी छऊ नृत्य कर रही हैं और देश विदेशों में अपनी ख्याति प्राप्त कर रही हैं. उन्होंने नवोदित कलाकारों के प्रति रूचि बढ़ाने की बात करते हुए कहा कि इससे इस नृत्य का और अधिक विकास होगा.