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जनजातिय नृत्यों को है संरक्षण का इंतजार

17 केएसएन 2 : पाईका पाइका नृत्य पेश करते कलाकार (फाईल फोटो)खरसावां . जनजातिय कला का देश के विभिन्न हिस्सों के साथ विदेशों में भी गहरा प्रभाव है. प्रकृति से संबंध रखने वाली विभिन्न जनजातिय नृत्यों ने सात समंदर पार अलग भाषा व संस्कृति वाले विदेशियों को भी कई मौके पर झूमने पर विवश कर […]

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17 केएसएन 2 : पाईका पाइका नृत्य पेश करते कलाकार (फाईल फोटो)खरसावां . जनजातिय कला का देश के विभिन्न हिस्सों के साथ विदेशों में भी गहरा प्रभाव है. प्रकृति से संबंध रखने वाली विभिन्न जनजातिय नृत्यों ने सात समंदर पार अलग भाषा व संस्कृति वाले विदेशियों को भी कई मौके पर झूमने पर विवश कर दिया है. पर सरकारी संरक्षण के अभाव में कोल्हान के जनजातिय नृत्य के कलाकार आज भी अपने अस्तित्व को बचाने के लिये जूझ रहे है. पाईका, रिंझा, फिरकाल, माघे, करमा, काठी, वाहा, दासांय नृत्य का अलग ही महत्व है. इन नृत्यों का आयोजन अलग- अलग मौकों पर होता है. इन सभी नृत्यों का जुड़ाव प्रकृति से है. दूसरे देशों के पर्यटकों के लिये यह जनजातिय नृत्य शोध का विषय बन चुके है. वर्षों से चली आ रही इन सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा के लिये सरकारी संरक्षण की आवश्यकता है. अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अपने स्तर से राशि एकत्रित कर इन नृत्यों का बीच- बीच में आयोजन करते है, परंतु क्षेत्र से बाहर इसे ले जाने में आर्थिक कमजोरी रुकावट बन जाती है. नृत्य अकादमी के गठन की वकालत करते हुए जनजातिय नृत्यों के जानकार मोहन मुंडा ने कहा कि जनजाति नृत्यों के लिये अकादमी गठन से जहां नये कलाकार निकलेंगे, वहीं इन लोक कलाओं को भी ख्याति मिलेगी.

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