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Seraikela News : सरायकेला के मिर्गी चिंगड़ा में महिलाओं के लिए लगता है मेला

हर साल मकर संक्रांति के बाद पहले शनिवार को खरकई नदी तट पर लगता है मेला

सरायकेला.सरायकेला शहर से तीन किमी दूर खरकई नदी तट पर मकर संक्रांति के बाद पहले शनिवार को मिर्गी चिंगड़ा मेला लगता है. शनिवार 18 जनवरी को भी यहां मेला लगेगा. झारखंड में केवल महिलाओं के लिए लगने वाला यह एकमात्र मेला है. राजा-राजवाड़े के समय से लगने वाले इस अनोखे मेले में केवल महिलाओं के शामिल होने की परंपरा है. लेकिन अब इस मेले का स्वरूप बदलने लगा है. 90 के दशक के बाद धीरे-धीरे मेले में पुरुष भी पहुंचने लगे, जिससे महिलाओं की भागीदारी घटने लगी है.

सुरक्षा प्रहरी से लेकर सभी जिम्मेदारी महिलाओं के जिम्मे

मेले में सुरक्षा प्रहरी से लेकर सभी जिम्मेदारी महिलाओं की होती है. इसके आयोजन का उद्देश्य आपसी मेल-मिलाप और सामाजिक सौहार्द्र की भावना बढ़ाना है. इस मेले में खान-पान की सामग्री की बिक्री होती है. यहां महिलाएं एक-दूसरे से अपनी बातें साझा करती हैं. यहां लगने वाली दुकानों में खरीदार से लेकर विक्रेता सभी महिलाएं ही होती हैं. क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि 90 के दशक तक इस मेले में सिर्फ महिलाओं का ही प्रवेश होता था.

पिकनिक का आनंद लेती हैं महिलाएं

खरकई नदी तट पर स्थित मिर्गी चिंगड़ा नामक रमणीक स्थल हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है. मेले में सरायकेला-खरसावां के साथ पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल और ओडिशा से भी महिलाएं पहुंचती हैं. यहां महिलाएं पिकनिक का आनंद लेती हैं. इसके लिए महिलाएं घर से ही विभिन्न प्रकार के पकवान लेकर आती हैं और यहां बैठकर पकवान का लुत्फ उठाती हैं.

महाभारत काल से जुड़ा है मिर्गी चिंगड़ा का इतिहास

बताया जाता है कि महाभारत काल में वनवास के दौरान कुंती अपने पांच पुत्रों के साथ यहां विश्राम किया था. मिर्गी चिंगड़ा में पांडवों के पदचिह्न आज भी पत्थरों पर मौजूद हैं.

पत्थरों के बीच बाबा भोलेनाथ विराजमान

मिर्गी चिंगडा में भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं, जो बाबा गर्भेश्वरनाथ के नाम से जाने जाते हैं. नदी के पत्थरों के बीच बाबा की पूजा होती है. यहां आने वाली महिलाएं सबसे पहले नहा-धोकर भोलेनाथ की पूजा करती हैं. मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गयीं हर मुराद पूरी होती है.

कोट

— राजा-राजवाड़े के समय में मिर्गी चिंगडा में सिर्फ महिलाओं का ही प्रवेश होता था. यही इस मेले की विशेषता थी. लेकिन हाल के वर्षों में पुरुषों की इंट्री होने लगी है. पूर्व की तरह यह मेला अपने मूल स्वरूप में लौटे, इसके लिए प्रशासन, जनप्रतिनिधि व क्षेत्र के प्रबुद्ध लोगों को इस पर पहल करनी चाहिए. -जलेश कबि, युवा समाजसेवी

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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