Kharsawan Assembly Constituency Election: बिहार विधानसभा के लिए हुए आम चुनाव में कुचाई के तिलोपोदा गांव निवासी गुलाब सिंह मुंडा खरसावां विस क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए थे. जिस समय गुलाब सिंह मुंडा निर्वाचित हुए थे उस समय उनकी उम्र 30 साल थी. चाईबासा के बागुन सुबरुई के नेतृत्व वाली झारखंड पार्टी के टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ा था. उन्होंने करीब ढाई हजार वोट से चुनाव में जीत दर्ज की थी. गुलाब सिंह मुंडा इलाके में गुलाब बाबू के नाम से विख्यात हैं. फिलहाल वो अपने कुचाई के तिलोपदा स्थित पैतृक आवास पर ही रहते है.
वन सोशल मीडिया था और न थे इतने संसाधन- गुलाब सिंह मुंडा
पुराने दिनों को याद कर गुलाब सिंह मुंडा बताते है कि उस समय के चुनाव प्रचार में न तो अब की तरह ताम-झाम था और न ही लाउडस्पीकर और सोशल मीडिया के जरिये प्रचार होता था. उस समय जनता से सीधा संपर्क पर ज्यादा जोर दिया जाता था. संसाधन सीमित होने के कारण इतने बड़े क्षेत्र को कवर करना भी आसान नहीं होता था. 70 के दशक में चुनाव प्रचार का साधन दीवार लेखन, पोस्टर-हैंडबिल और डोर टू डोर कैंपेनिंग था.
किराये के कार से करते थे प्रचार
82 वर्षीय गुलाब सिंह ने बताया कि जब वे खरसावां विस क्षेत्र से चुनावी मैदान में थे, तो उनके पास भी संसाधन बहुत कम थे. नामांकन से पहले अपनी पुरानी बाइक और कभी अपनी साइकिल से घूम-घूमकर जन संपर्क करते थे. नामांकन के बाद चुनाव प्रचार के लिये चाईबासा से एक एंबेसडर कार या जीप किराये पर लेना पड़ता था. फिर उस उसी गाड़ी से प्रचार करते थे. तब कार के लिये डीजल भी चाईबासा से लाना पड़ता था. सरायकेला या खरसावां में पेट्रोल-डीजल का पंप नहीं होता था. कुचाई और खरसावां के पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क नहीं होने के कारण साइकिल या फिर पैदल जाना होता था. चुनाव प्रचार के दौरान जिस गांव में शाम हो जाती थी, वहां के कार्यकर्ताओं के घर पर रात गुजारते थे.
पहले अलग अलग विचारधारा वाले नेता भी एक-दूसरे का करते थे सम्मान
पूर्व विधायक गुलाब सिंह मुंडा बताते हैं कि 1972 के चुनाव में करीब दो-ढाई हजार रुपये खर्च कर चुनाव जीत गये थे. अब तो चुनाव प्रचार का तरीका ही बदल गया. चुनावों में लाखों रुपये खर्च हो रहे है. वोट के लिये नेता सच-झूठ बोल रहे हैं. आरोप-प्रत्यारोप में अभी काफी तल्खी देखी जा रही है. पहले ऐसा नहीं था. अलग-अलग विचारधारा वाले राजनीतिक दल के नेता-कार्यकर्ता भी एक दूसरे का सम्मान करते थे.
विधायक बनने के बाद वेतन और भत्ता के रूप में मिलते थे डेढ़ हजार रुपये
गुलाब सिंह मुंडा ने बताया कि चुनाव जीतने के बाद उन्हें वेतन और भत्ते के रूप में करीब डेढ़ हजार रुपये मिलते थे. विधायक फंड नहीं था. उस समय क्षेत्र भ्रमण मोटरसाइकिल या साइकिल से करते थे. विधायकों के अनुशंसा पर जाती व आवासीय प्रमाण पत्र बन जाते थे. छोटे-मोटे कामों के लिये लोगों को सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने नहीं पड़ते है. गुलाब बाबू बताते है कि विधायक रहते हुए उनकी पत्नी का निधन हो गया. बच्चे छोटे थे. बच्चों के परवरिश की जिम्मेवारी थी. इसके बाद विस चुनाव नहीं लड़ा. खेती कर बच्चों को पढ़ाया.
गुलाब सिंह मुंडा ने कहा कि उन्होंने अपने विधायक के कार्यकाल में सिंचाई पर विशेष ध्यान दिया था. यहां के जन प्रतिनिधियों की आवाज पटना में कम सुनी जाती थी. राशि के अभाव में विकास कार्य भी कम होता था. झारखंड बनने के बाद विकास कार्यो में तेजी आयी है. परंतु इन 24 सालों में जितना विकास होना चाहिए था, उतना नहीं हो सका.
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