Jagadhatri Puja 2020 : खरसावां (शचीन्द्र कुमार दाश) : आंवला या अक्षय नवमी को सरायकेला- खरसावां जिले के विभिन्न क्षेत्रों में कोरोना वायरस संक्रमण के प्रभाव को देखते हुए सादगी से मां जगद्धात्री की पूजा- अर्चना की गयी. खरसावां के रामकृष्ण तारक मठ में जगद्धात्री पूजा शुरू हुई. पुरोहितों ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ माता की पूजा शुरू की. पूजा के साथ हवन भी किया गया. इस दौरान सोशल डिस्टैंसिंग का अनुपालन करते हुए लोगों ने मां जगद्धात्री की पूजा अर्चना कर पुष्पांजलि अर्पित किया. कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के मद्देनजर इस वर्ष पूजा में भंडारा या धार्मिक प्रवचन का आयोजन नहीं हुआ. मां जगद्धात्री का प्रतिमा मंगलवार को विसर्जित की जायेगी.
खरसावां के रामकृष्ण तारक मठ में मां जगद्धात्री की पूजा देश की आजादी से पूर्व से हो रही है. वर्ष 1941 में खरसावां के रामकृष्ण तारक मठ की स्थापना के बाद से ही स्थानीय लोगों के सहयोग से साधु-संतों ने यहां मां जगद्धात्री की पूजा शुरू की. इसके बाद से हर साल यहां माता की पूजा बड़े ही धूमधाम के साथ हो रही है. इस वर्ष भी रामकृष्ण तारक मठ में माता जगद्धात्री की आकर्षक प्रतिमा स्थापित की गयी, लेकिन कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए जारी गाइडलाइन का अनुपालन किया गया.
सरायकेला में सरकारी स्तर पर मां जगद्धात्री की पूजा हो रही है. यहां पूजा का आयोजन सरकारी फंड से होता है. पूजा में काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. इस बार भी काफी श्रद्धालु माता की पूजा- अर्चना के लिए यहां पहुंचे, लेकिन मास्क व सोशल डिस्टैंसिंग पर विशेष ध्यान दिया गया.
Also Read: Amla/Akshaya Navami 2020 : संतान प्राप्ति व सुख- सौभाग्य के लिए सोमवार को रखा जायेगा आंवला नवमी का व्रत, जानें इसकी महत्ता…
परिवार की सुख समृद्धि के लिए विधि-विधान से आंवला या अक्षय नवमी की पूजा की गयी. संतान प्राप्ति और सुख- सौभाग्य के लिए रखे जाने वाला यह व्रत सरायकेला-खरसावां में पूरे विधि विधान के साथ किया गया. परिवार की सुख समृद्धि के लिए आंवला नवमी पर महिलाओं ने आंवला वृक्ष की परिक्रमा कर पूजा-अर्चना की. आंवला वृक्ष के नीचे पकवानों का भोग लगाया और उन्हीं पकवानों से अपना व्रत खोला.
मालूम हो कार्तिक माह की नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनायी जाती है. इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है. कोविड-19 के कारण इस वर्ष अधिकांश व्रतियों ने अपने घरों में ही श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना किया. महिलाओं ने आंवला वृक्ष की परिक्रमा लगाकर पूजा की. स्नान कराने के बाद पेड़ पर कच्चा दूध, हल्दी, रौली लगाया गया. बाद में पेड़ की परिक्रमा कर व्रती मौली बांधी गयी. आंवला के पेड पर दूध चढ़ाएं और सिंदूर, चंदन से तिलक कर शृंगार का सामान चढ़ाया गया.
मान्यता है कि अक्षय नवमी पर मां लक्ष्मी ने पृथ्वी लोक में भगवान विष्णु एवं भगवान शिव की पूजा आंवले के रूप में की थी और इसी पेड़ के नीचे बैठकर भोजन ग्रहण किया था. यह भी कहा जाता है कि आंवले के पेड़ के नीचे श्री हरि विष्णु के दामोदर स्वरूप की पूजा की जाती है.
Posted By : Samir Ranjan.