Jharkhand news, Saraikela- Kharsawan news : खरसावां (शचिंद्र कुमार दाश) : कोल्हान समेत पूरे राज्य में पहले चरण के तसर बीज कोए (कोसा) की खेती पूरी हो गयी है. मौसम अनुकूल रहने के कारण खरसावां, कुचाई समेत कोल्हान के विभिन्न क्षेत्रों में इस बार बड़े पैमाने पर तसर बीज कोए (कोसा) का उत्पादन हुआ है. अब दूसरे चरण के तसर कोसा की खेती की तैयारी शुरू होगी. पहले चरण में तसर बीज कोए के बेहतर उत्पादन से इस बार राज्य में 3 हजार टन रेशम उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
पहले चरण के तसर बीज कोए (कोसा) से रेशम के अंडा (रोग मुक्त चक्कतों) का उत्पादन होगा. इसके लिए पूरे राज्य में 5 अग्र परियोजना केंद्रों में किसानों से पहले चरण में उत्पादित तसर कोए (कोसा) की खरीदारी करने की योजना है. कोल्हान में खरसावां पीपीसी 6 लाख और पश्चिमी सिंहभूम जिला के हाटगम्हरिया पीपीसी में 4 लाख तसर बीज कोए (कोसा) की खरीदारी करने तथा बीजागार (ग्रेनेज हाउस) में रख कर रोग मुक्त चक्कतों का उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. पिछले साल कोल्हान में 950 टन रेशम का उत्पादन हुआ था. वहीं, इस साल 1000 टन रेशम उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
दूसरी ओर, सरकारी आवंटन के अभाव में किसानों से तसर बीज कोए (कोसा) की खरीदारी नहीं हो पा रही है. एक तसर बीज कोए (कोसा) की कीमत करीब 2 रुपये तय की गयी है. साथ ही तसर बीज कोए (कोसा) को बीजागार में अलग से राशि खर्च होगी. इन दोनों केंद्रों में तसर बीज कोए (कोसा) की खरीदारी से लेकर ग्रेनेज कार्य के लिए कम से कम 22 लाख रुपये खर्च होंगे.
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तसर बीज कोए (कोसा) की खरीदारी आवंटन के अभाव में नहीं हो पा रही है. हर वर्ष बीजागार के लिए कोए की खरीबदारी 16 अगस्त से शुरू हो जाती है. इस वर्ष 16 अगस्त से खरीदारी होने की संभावना कम ही है. अगर समय पर बीज कोए की खरीदारी नहीं हो पायी, तो दूसरे चरण के तसर की खेती पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. पूरे देश का लगभग 80 फीसदी तसर रेशम का उत्पादन झारखंड में ही होता है. साथ ही राज्य में सर्वाधिक कोसा का उत्पादन कोल्हान में होता है. अग्र परियोजना पदाधिकारी असमंजस में हैं कि अगर द्वितीय बीजागार के लिए कोए का क्रय किया जाता है, तो सरकार द्वारा लगाये गये विभिन्न तरह के प्रतिबंध के कारण इसका भुगतान करना संभव नहीं हो पायेगा. बाद में किसान अपने कोए के भुगतान के लिए परेशान करेंगे. अगर द्वितीय बीजागार नहीं किया जाता है, तो क्षेत्र में कोए का उत्पादन ठप हो जायेगा.
खरसावां व हाटगम्हरिया पीपीसी में 10 लाख बीज कोए का बीजागार किया जाता है. इसके बाद डीएफएल का उत्पादन कर इन दोनों ही पीपीसी के कमांड क्षेत्र में करीब 1000 न्यूक्लियस बीज कीटपालकों के जरीय कीटपालन करवाया जाता है. इससे करीब एक करोड़ बीज कोए तैयार कर इसका बीजागार किया जाता है. इन्हीं बीजागार से उत्पादित डीएफएल से क्षेत्र के सभी रेशमदूतों को आपूर्ति होती है. तब जाकर दोबारा वाणिज्यिक फसल तैयार होता है.
राज्य में तसर बीज कोए (कोसा) की खरीदारी विभिन्न अग्र परियोजना केंद्र (पीपीसी) पर होती है. इसके तहत सरायकेला-खरसावां जिला के खरसावां पीपीसी, पश्चिम सिंहभूम के हाटगम्हरिया, पाकुड़ जिला अंतर्गत अमड़ापाड़ा के कुश्चिरा, दुमका के काठीजारियो और गिरिडीह जिला के बेंगाबाद के अग्र परियोजना केंद्र में इसकी खरीदारी होती है.
हस्तकरघा, रेशम व हस्तशील्प निदेशालय, रांची के निर्देशक उदय प्रताप ने कहा कि रेशम से संबंधित योजनाओं के क्रियांवयन के लिए निदेशालय से तैयार कर विभाग को भेजा गया है. विभाग में योजनाओं की स्वीकृति पर विचार चल रही है. योजनाओं की स्वीकृति मिलते ही उनका क्रियान्वयन भी शुरू हो जायेगा. रेशम में कीटपालन का कार्य चल रहा है. पिछले वर्ष 2,694 टन सिल्क का उत्पादन हुआ था. इस वर्ष 3000 टन उत्पादन लक्ष्य है. योजनाओं के क्रियांवयन और राशि आवंटन के लिए विभागीय सचिव से आग्रह किया गया है, ताकि लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके.
Posted By : Samir Ranjan.