23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंड में रहने वाले ओड़िया समुदाय के लोग आज मना रहे उत्कल दिवस, भाषा को बचाने के लिए हैं प्रयासरत

अपनी मातृभाषा ओड़िया को बढ़ावा देने के लिए ओड़िशा सरकार की ओर से झारखंड, बंगाल व छत्तीसगढ़ में मानदेय पर शिक्षकों की बहाल कर भाषा की शिक्षा दी जा रही है.

शचिंद्र कुमार दाश, सरायकेला : ओड़िया समुदाय के लोग शनिवार को उत्कल दिवस के रुप में मना रहे हैं. झारखंड के सरायकेला-खरसावां, पूर्वी सिंहभूम व पश्चिमी सिंहभूम के ओड़िया समाज के लोग साल 1936 से अपनी सांस्कृतिक धरोहरों एवं भाषा के विकास लगातार संघर्षरत हैं. इस दिन इस समाज के सदस्य आपस में विभिन्न संस्थाओं में मिलते हैं और उत्कल दिवस की बधाई देते हैं. इस अवसर पर सामाजिक संगठन उत्कल सम्मेलनी की ओर से खरसावां व सरायकेला में इस दिन को यादगार बनाने में जुटे हैं. आज के दिन ओड़िया समुदाय के लोग अपनी भाषा, साहित्य व संस्कृति को बचाने का संकल्प लेंगे. मालूम हो कि कोल्हान के तीनों जिलों में बड़ी संख्या में ओड़िया समाज के लोग रहते हैं. ये सभी अपनी संस्कृति को बचाने में जुटे हुए हैं और भाषा के संरक्षण और विकास को लेकर संघर्षरत हैं. कोल्हान में ओड़िया समाज के कई संगठन हैं, जो अपने समाज के सदस्यों को एकजुट करके रखे हैं.

बच्चों को मातृभाषा ओड़िया में शिक्षा देने का अनूठा प्रयास

अपनी मातृभाषा ओड़िया को बढ़ावा देने के लिए ओड़िशा सरकार की ओर से झारखंड, बंगाल व छत्तीसगढ़ में मानदेय पर शिक्षकों की बहाल कर भाषा की शिक्षा दी जा रही है. अपनी मातृभाषा को बचाने के साथ साथ प्रचार प्रसार ये समय समय पर प्रचार प्रसार भी कर रहे हैं. जो एक शानदार पहल है. ओड़िया भाषा के शिक्षकों को ओड़िशा सरकार की सामाजिक संगठन उत्कल सम्मीलनी के जरिये मानदेय दी जाती है. यह कार्य विगत 10 वर्षों से लगातार जारी है. फिलहाल इन शिक्षकों को तीन हजार रुपये मानदेय दिया जाता है. ओड़िशा सरकार व उत्कल सम्मीलनी की इस पहल का जबरदस्त असर देखने को मिल रहा है. आज मातृभाषा ओड़िया के प्रति बच्चों का रुझान बढ़ा है. भाषा को बढ़ावा देने के लिए बच्चों को पुस्तकें भी उपलब्ध करायी जाती है.

Also Read: सरायकेला में श्रद्धा के साथ निकली दोल यात्रा, भक्तों के साथ राधा-कृष्ण ने खेली होली, उत्कल परंपरा की दिखी झलक

क्यों मनाते हैं उत्कल दिवस

उत्कल दिवस मनाने की सबसे बड़ी वजह ये है कि आज ही के दिन साल 1936 में ओड़िशा प्रदेश का गठन हुआ था. इसके बाद से ही एक अप्रैल को उत्कल दिवस के रूप में मनाया जाता है. बता दें कि राज्य के निर्माण में उत्कल मणि गोपबंधु दास और उत्कल गौरव मधुसूदन दास, महाराज रामचंद्र भंजदेव, महाराजा कृष्ण चंद्र गजपति समेत कई लोगों को बड़ा योगदान है. इन सभी को विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन से पहले श्रद्धांजलि दी जाती है.

क्या कहते हैं ओड़िया समुदाय के लोग

सरायकेला-खरसावां जिला समेत पूरे कोल्हान के लोग उत्कल दिवस को बड़े धूमधाम से मनाते हैं. साथ ही अपनी भाषा, संस्कृति को बचाने रखने का संकल्प भी लेते हैं. भाषा के आधार पर एक अप्रैल 1936 को स्वतंत्र प्रदेश का गठन हुआ था.

सुशील षाडंगी, जिला परिदर्शक उत्कल सम्मीलनी, सरायकेला-खरसावां

उत्कल दिवस पर हमें अपनी कला, संस्कृति, भाषा, साहित्य को सशक्त बनाने के लिए प्रण लेने की आवश्यकता है. झारखंड में बड़ी संख्या में ओड़िया समुदाय के लोग निवास करते हैं, जो राज्य के विकास में भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. सरकार को चाहिए वे ओड़िया भाषा के हितों की रक्षा करें.

सरोज प्रधान, पूर्व केंद्रीय उपाध्यक्ष, उत्कल सम्मीलनी

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें