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अधिक स्नान से बीमार हुए प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा, पंचमी से अणसर गृह में शुरू होगा इलाज

5 जून को स्नान पूर्णिमा पर अत्याधिक स्नान से प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा बीमार हो गये हैं. स्नान पूर्णिमा पर 108 कलश पानी से त्रिमूर्ति को स्नान कराया गया था. फिलहाल ये त्रिमूर्ति अस्वस्थ होकर अणसर गृह में चले गये हैं. सरायकेला- खरसावां के जगन्नाथ मंदिरों में बीमार प्रभु जगन्नाथ का इलाज किया जा रहा है.

सरायकेला- खरसावां : 5 जून को स्नान पूर्णिमा पर अत्याधिक स्नान से प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा बीमार हो गये हैं. स्नान पूर्णिमा पर 108 कलश पानी से त्रिमूर्ति को स्नान कराया गया था. फिलहाल ये त्रिमूर्ति अस्वस्थ होकर अणसर गृह में चले गये हैं. सरायकेला- खरसावां के जगन्नाथ मंदिरों में बीमार प्रभु जगन्नाथ का इलाज किया जा रहा है. सिर्फ मंदिर के पुजारी ही पूजा करने अणसर गृह में प्रवेश कर रहे हैं. भक्तों को प्रभु के दर्शन नहीं हो रहे हैं. प्रभु जगन्नाथ के रत्न सिंहासन से लेकर मंदिर परिसर में सन्नाटा पसरा हुआ है. पढ़ें, शचिंद्र कुमार दाश की रिपोर्ट.

सरायकेला- खरसावां जिला में हर पर्व- त्योहार में ओड़िशा की संस्कृति का असर देखा जाता है. यहां ओड़िशा के जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर प्रभु जगन्नाथ की रथयात्रा हर साल बड़े पैमाने पर आयोजित की जाती है. लेकिन, कोविड-19 को लेकर इस साल के रथयात्रा के आयोजन पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. इस वर्ष प्रभु जगन्नाथ की रथयात्रा के आयोजन को लेकर किसी तरह का दिशानिर्देश नहीं मिला है.

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मंदिरों में भक्तों का प्रवेश भी बंद है. बीमारी के कारण प्रभु जगन्नाथ को चढ़ाये जाने वाले प्रसाद में भी बदलाव किया गया है. प्रसाद के रूप में खीर- खिचड़ी की जगह अब फल- मूल का चढ़ावा चढ़ाया जा रहा है. खरसावां, हरिभंजा, सरायकेला, चांडिल आदि स्थानों पर जगन्नाथ मंदिरों में अब भक्तों को प्रभु के दर्शन नहीं हो रहे हैं.

पंचमी से शुरू होगी प्रभु जगन्नाथ की जड़ी- बुटी से इलाज

परंपरा के अनुसार, अणसर पंचमी की तिथि से प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा का विधिवत इलाज शुरू हो जायेगा. विभिन्न प्रकार के जड़ी- बुटियों से तैयार दवा प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा को अर्पित की जा रही है. मान्यता है कि इन जड़ी- बुटी से तैयार दवा के सेवन से त्रिमूर्ति के स्वास्थ्य में सुधार आता है. रोजाना अलग- अलग तरीके से दवा तैयार की जायेगी. इसमें विभिन्न जड़ी- बुटी को उबाल कर काढ़ा बनाया जाता है. इसके पश्चात इस काढ़ा को प्रभु को समर्पित किया जाता है. भक्त इस काढ़ा को प्रसाद के रूप में भी सेवन करते हैं.

दशमी को दी जाती है दशमूली दवा

इलाज के दौरान दशमी को अंतिम रूप से प्रभु जगन्नाथ को स्वस्थ करने के लिए दशमूली की दवा दी जायेगी. दशमूली दवा 10 अलग-अलग जड़ी- बुटी से तैयार किया जाता है. इसके लिए घने जंगलों में 3-4 दिनों तक अलग- अलग हिस्सों में घूम कर जड़ी- बुटी संग्रह करना होता है.

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इस दवा में कृष्ण परणी, शाल परणी, अगीबथु, फणफणा, पाटेली, तिगोखरा, बेल, गम्हारी, लबिंग कोली, अंकरांती के औषधीय हिस्सों को मिलाया जाता है. इन औषधीय जड़ी- बुटी का आयुर्वेद में भी खासा जिक्र है. इसके बाद निर्धारित मात्रा में इन जड़ी- बुटियों से दवा तैयार किया जाता है. परंपरा के अनुसार, अणसर दशमी पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा को यह दवा दी जाती है. दवा खाने के बाद जब प्रभु जगन्नाथ स्वास्थ्य होते हैं, तब नेत्र उत्सव पर भक्तों को दर्शन देंगे. इस वर्ष 21 जून को नेत्र उत्सव पर प्रभु के दर्शन होंगे.

राजा- राजवाड़ों के समय से हो रहा है आयोजन, इस साल संशय बरकरार

सरायकेला व खरसावां में रथयात्रा का आयोजन राजा- राजवाड़े के जमाने से होती आ रही है. सरायकेला व खरसावां में 17वीं सदी से रथयात्रा का आयोजन होता आ रहा है. 23 जून को रथ यात्रा है. कोरोना के कारण इस वर्ष मेले का आयोजन नहीं होगा. रथयात्रा के आयोजन को लेकर भी संशय बरकरार है. सरकार की ओर से रथयात्रा के आयोजन को लेकर अभी तक किसी तरह का निर्देश नहीं मिला है. कोरोना के कारण रथ यात्रा में इस वर्ष सिर्फ रश्म अदायगी होने की ही संभावना है.

Posted BY : Samir ranjan.

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