खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश : देवस्नान पूर्णिमा पर अध्याधिक स्नान से बीमार महाप्रभु जगन्नाथ, भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा को अणवसर गृह में निरोग करने के लिए 14 दिन के एकांतवास में रखा गया. यह एकांतवास एक तरह से क्वारंटाइन की तरह है.
बीमार भगवान का जड़ी बूटियों से हो रहा इलाज
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए जड़ी-बूटियों का काढ़ा पिलाया जा रहा है. यहां महाप्रभु की गुप्त सेवा की जा रही है. देशी नुस्खों से उनका इलाज करने के साथ साथ विभिन्न प्रकार के जड़ी-बूटियों का काढ़ा और प्रसाद के रुप में मौसमी फलों के जूस दिया जा रहा है. इस दौरान भक्तों को महाप्रभु दर्शन नहीं हो रहे है. परंपरा के अनुसार अणसर दशमी के दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्र को जंगल की दस जड़ी-बुटी से तैयार दवा खिलाया गया. दस अलग अलग जड़ी बुटी से तैयार होने के कारण ही इस दवा का नाम दशमूली दवा पडा. परंपरा के अनुसार इस दवा को खाने के दो-तीन दिन बाद प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा के स्वस्थ्य से सुधार होने लगेगी. नेत्र उत्सव पर भक्तों को दर्शन देंगे. इस वर्ष सात जुलाई को नेत्र उत्सव व रथ यात्रा पर प्रभु के दर्शन होंगे.
शरीर का तापमान नियंत्रित रखता है दशमूल हर्ब
दशमूला हर्ब में में एंटी प्रेट्रिक गुण होते हैं, जो कि तेज बुखार को ठीक करने के लिए लाभकारी होते हैं. यह शरीर के तापमान को सही रखता है. दशमूल हर्ब को बनाने के लिए इन 10 जड़ी-बूंटियों का इस्तेमाल किया जाता है. जिसमें अग्निमंथ, गंभारी, बिल्व, पृश्निपर्णी, बृहती, कंटकारी, गोखरू, पटाला हर्ब, शालपर्णी और श्योनाक शामिल है. प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा को दशमूली दवा पिलाने के पश्चात भक्तों में भी इसे प्रसाद के रुप में वितरण किया गया. क्षेत्र में मान्यता है कि इस दवा के सेवन से लोग रोग-व्याधी से दूर रहते है. खरसावां प्रभु जगन्नाथ के लिये दशमूल हर्ब कुम्हारसाही का दाश परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी तैयार करते आ रहा है.
दबा में मिलाये जाना वाला कृष्ण परणी है दुर्लभ औषधि पौधा
दशमुला दवा में मिलाये जाने वाले कृष्ण परणी काफी दुर्लभ औषधिय पौधा माना जाता है. बडी मुश्कील से यह उपलब्ध हो पाता है. जंगलों में यह पौधा बिरले ही मिलते है. किसी किसी साल कृष्ण परणी जंगल में काफी जोखबीन के बाद भी नहीं मिलते है. ऐसे में सुखे कृष्ण परणी से काम चलाया जाता है. इस बार प्रभु को जंगल से ताजा कृष्ण परणी ला कर दशमूला दवा के साथ अर्पित की गयी है.
पीतल के बर्तन में दे रहे काढ़ा
बीमार पड़े महाप्रभु के इलाज के क्रम में काढ़ा बनाकर दिया जा रहा है. यह काढ़ा दालचीनी, सौंठ, काली मिर्च, तुलसी, अजवाइन, पीपली, दशमूला, मधु और घी मिलाकर बनाया जा रहा है.
राजा-राजवाडे के समय से हो रही है आयोजन
सरायकेला-खरसावां में रथ यात्रा का आयोजन राजा-राजवाडे के जमाने से होती आ रही है. सरायकेला व खरसावां में 17 वीं सदी से रथ यात्रा का आयोजन होते आ रहा है.
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