– पूर्व सीएम ने संताल परगना में घुसपैठ पर राज्य सरकार को फिर घेरा
सरायकेला/खरसावां.
पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ पर एक बार फिर राज्य सरकार को घेरा है. चंपाई सोरेन ने ‘एक्स’ पर लिखा है वोट बैंक के लिए कुछ राजनीतिक दल भले आंकड़े छुपाने का प्रयास करें, लेकिन शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर गाड़ लेने से सच्चाई नहीं बदल जाती है. वहां के वोटर लिस्ट पर नजर डालने से स्पष्ट हो जाता है कि हमारी माटी, हमारी जन्मभूमि से हमें बेदखल करने में बांग्लादेशी घुसपैठिये काफी हद तक सफल हो गये हैं. उन्होंने उम्मीद जतायी कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ विद्रोह करने वाले वीर शहीदों की धरती पाकुड़ पूरे संथाल-परगना को बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ संघर्ष की राह दिखायेगा.पाकुड़ में आदिवासी समाज हुआ अल्पसंख्यक
पूर्व मुख्यमंत्री ने लिखा है कि संथाल हूल के दौरान, स्थानीय संथाल विद्रोहियों के डर से अंग्रेजों ने पाकुड़ (झारखंड) में मार्टिलो टावर का निर्माण करवाया था, जो आज भी है. इसी टावर में छिप कर अंग्रेज सैनिक स्वयं बचते हुये, इसके छेद से संथाल विद्रोहियों पर गोलियां बरसाते थे. इस वीर भूमि की ऐसी कई कहानियां आज भी बड़े-बुजुर्ग गर्व के साथ सुनाते हैं, लेकिन क्या आपको यह पता है कि आज उसी पाकुड़ में हमारा आदिवासी समाज अल्पसंख्यक हो चुका है ?संताली टोला व मालपहाड़िया में आदिवासी खत्म हो गये
पूर्व सीएम ने लिखा ‘पाकुड़ के जिकरहट्टी स्थित संताली टोला और मालपहाड़िया गांव में अब आदिम जनजाति का कोई सदस्य नहीं बचा है. आखिर वहां के भूमिपुत्र कहां गये? उनकी जमीनों व घरों पर अब किसका कब्जा है? वहां के दर्जनों अन्य गांवों-टोलों को जमाई टोला में कौन बदल रहा है ? अगर वे स्थानीय हैं, तो फिर उनका अपना घर कहां है ? वे लोग जमाई टोलों में क्यों रहते हैं ? किस के संरक्षण में यह गोरखधंधा चल रहा है ? ’आदिवासी समाज का महासम्मेलन 16 को
श्री सोरेन ने लिखा कि आगामी 16 सितंबर को आदिवासी समाज पाकुड़ जिले के हिरणपुर प्रखंड में माझी परगाना महासम्मेलन करेगा. इसमें समस्या का कारण व समाधान तलाशने पर मंथन करेंगे. बाबा तिलका मांझी और वीर सिदो-कान्हू के संघर्ष से प्रेरणा लेकर समाज अपने अस्तित्व के लिए जन-आंदोलन शुरू करेगा.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है