आखिर 17 साल में क्यों नहीं बनी बाइपास सड़क ?
गुमला : आखिर 17 साल में बाइपास सड़क क्यों नहीं बनी? यह सवाल गुमला शहर की जनता का उन नेताओं से है, जो सांसद व विधायक बनते रहे हैं. लेकिन इन 17 सालों में 12 किमी सड़क बनवा नहीं पाये. जबकि इस 12 किमी सड़क की लागत अब दुगुनी हो गयी है. वर्ष 2002 में […]
गुमला : आखिर 17 साल में बाइपास सड़क क्यों नहीं बनी? यह सवाल गुमला शहर की जनता का उन नेताओं से है, जो सांसद व विधायक बनते रहे हैं. लेकिन इन 17 सालों में 12 किमी सड़क बनवा नहीं पाये. जबकि इस 12 किमी सड़क की लागत अब दुगुनी हो गयी है. वर्ष 2002 में जब सड़क का शिलान्यास हुआ था, उस समय उसकी लागत 33 करोड़ रुपये थी. काम शुरू हुआ, लेकिन सड़क बनी नहीं और 33 करोड़ रुपये बेकार हो गया. इसके बाद पुन: इस सड़क का शिलान्यास 18 अप्रैल 2016 को सिसई ब्लॉक में ऑनलाइन किया गया.
दूसरी बार जब काम शुरू हुआ, तो सड़क की लागत 66 करोड़ 89 लाख रुपये हो गयी. इसके बाद भी अभी तक सड़क नहीं बनी है और गुमला शहर कि 52 हजार जनता परेशान हैं. आये दिन शहरी क्षेत्र के लोगों के अलावा गांव से शहर पहुंचने वाले ग्रामीण भी सड़क जाम से परेशान हैं. बाइपास सड़क के आभाव में आये दिन शहर में सड़क हादसे भी होते रहे हैं. नेशनल हाइवे के किनारे गुमला शहर बसा होने के कारण बड़ी गाड़ियों का दबाव शहर की सड़कों पर अधिक रहता है.
हर चुनाव में लोग बाइपास सड़क की मांग को प्रमुखता के साथ नेताओं के पास रखते रहे हैं, लेकिन वोट की राजनीति करने वाले नेता चुनाव के समय वोट तो ले लेते हैं, लेकिन चुनाव जीतते ही जनता की समस्या दूर करना भूल जाते हैं. कुछ इसी प्रकार की कहानी बाइपास सड़क की भी है. जिस ठेकेदार को फिलहाल काम सौंपा गया है, वह तय समय पर काम पूरा नहीं करा सका है. इसके बाद भी उक्त ठेकेदार पर प्रशासन व नेताओं की मेहरबानी जगजाहिर है. किसी का दबाव नहीं पड़ने से ठेकेदार भी मनमर्जी तरीके से काम कर रहा है. हालांकि यह ठेकेदार बाहरी है, जो जैसे तैसे काम करा रहा है.
इस काम में कुछ स्थानीय मेटेरियल आपूर्तिकर्ता भी मिले हुए हैं, जो ठेकेदार के घटिया काम को भी अच्छा बता कर मामले को दबाते रहे हैं. नेता भी जानते हुए चुप हैं, जबकि गुमला शहर की जनता लगातार बाइपास सड़क बनाने की मांग करती रही है. यहां तक कि धरना-प्रदर्शन भी हो चुका है. चेंबर ऑफ काॅमर्स के अलावा कई सामाजिक संगठन बाइपास सड़क बनाने की मांग को प्रमुखता के साथ रखते रहे हैं, लेकिन इनकी कोई सुनने वाला नहीं है. लेकिन इसबार 2019 के लोकसभा चुनाव में उन नेताओं को परेशानी होगी, जो जनता के बीच वोट मांगने जायेंगे, क्योंकि जनता ने इसबार रेलवे के बाद बाइपास सड़क को चुनावी मुद्दा में दूसरे नंबर पर रखा है.
जनता अभी से सवाल करना शुरू कर दी है कि आखिर 17 साल में 12 किमी सड़क क्यों नहीं बन पायी है. इधर, चुनावी मैदान में उतरने वाले नेता पुन: बाइपास सड़क बनवाने का वादा लेकर वोटरों के बीच पहुंचने की तैयारी में हैं, लेकिन इसबार नेताओं को मुंह की खानी पड़ सकती है. ज्ञात हो कि बाइपास सड़क नहीं है, जिससे शहर के लोग त्रस्त हैं. हर रोज सड़क जाम होती है. जाम होने पर घंटों लोगों को सड़क पर रेंगना पड़ता है. खास कर जब स्कूल की छुट्टी होती है या साप्ताहिक बाजार लगता है, उस समय सड़क जाम अधिक होती है.
इस रूट से प्रत्येक दिन एक हजार से अधिक बड़ी मालवाहक गाड़ियां गुजरती है. इसके अलावा 200 बस व हजारों छोटी गाड़ी है. शहर की सड़क भी संकीर्ण है, जिससे एक गाड़ी के फंसने पर जाम की समस्या उत्पन्न हो जाती है. जाम के कारण शहर के व्यवसाय सबसे ज्यादा प्रभावित होता है. शहर में पार्किग की कोई व्यवस्था नहीं है, जबकि सबसे महत्वपूर्ण दुकानें एनएच के किनारे है. ग्राहक दुकान जाने से पहले सड़क के किनारे वाहन खड़ा कर देते हैं.
छोटे वाहन खड़ा होने के बाद मुख्य सड़क कई जगह जाम हो जाती है. यहां तक कि टेंपो स्टैंड भी नहीं है. नतीजा सड़कों पर टेंपो खड़ी रहती है. बडो वाहन शहर में घुसते ही जाम हो जाती है. ज्ञात हो कि झारखंड राज्य बनने के बाद लोहरदगा संसदीय सीट से चार सांसद बने हैं. इसमें भाजपा के तीन व कांग्रेस के एक सांसद रहे हैं. लेकिन ये चारों सांसद अपने कार्यकाल में बाइपास बनवाने में फेल साबित हुए हैं.