रांची/नयी दिल्ली : झारखंड के दो जजों अरुण कुमार गुप्ता और राज नंदन राय को दी गयी अनिवार्य सेवानिवृत्ति के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा है. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों से अन्य अधिकारियों की तुलना में उच्च स्तर की निष्ठा और ईमानदारी के मानकों की अपेक्षा की जाती है. अरुण कुमार गुप्ता गोड्डा के कुटुंब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश थे, जबकि राज नंदन राय हजारीबाग के श्रम न्यायालय के पीठासीन पदाधिकारी थे.
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों न्यायिक अधिकारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने के झारखंड हाइकोर्ट के फैसले को गुरुवार को बरकरार रखा. इन न्यायिक अधिकारियों में से एक ने प्रशासनिक सेवाओं के परिवीक्षा अधिकारियों को संबोधित करते हुए ‘अत्यधिक आपत्तिजनक अश्लील’ टिप्पणियां की थीं. शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों से अन्य अधिकारियों की तुलना में उच्च स्तर की निष्ठा और ईमानदारी के मानकों की अपेक्षा की जाती है.
शीर्ष अदालत ने एक व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 327 (संपत्ति हथियाने के लिए जान-बूझकर जख्मी करना) गैर जमानती अपराध में रिश्वत लेकर जमानत देने के मामले में एक अन्य न्यायिक अधिकारी को भी अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने के हाइकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता ने न्यायिक अधिकारियों (अरुण कुमार गुप्ता और राज नंदन राय) की याचिकाएं खारिज कर दीं. दोनों ने हाइकोर्ट के प्रशासनिक पक्ष से लिये गये फैसले को चुनौती दी थी.
पीठ ने कहा कि इस मामले में हाइकोर्ट के वरिष्ठ जजों, जो जांच समिति और स्थायी समिति के सदस्य थे, ने बहुत सुविचारित और तर्कयुक्त निर्णय लिया है. पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में जब तक दुराग्रह के आरोप या तथ्यों का स्पष्ट अभाव नहीं हो, यह कोर्ट न्यायिक समीक्षा के अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं करेगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में हाइकोर्ट के वरिष्ठ जजों वाली समिति के फैसले रद्द करने से पहले कोर्ट को न्यायिक पक्ष में बहुत ही संयम बरतना चाहिए.
पीठ ने कहा, ‘हमारी राय में ये इन फैसलों में हस्तक्षेप करने योग्य मामले नहीं हैं.’ पीठ ने कहा कि उसने उन शिकायतों का अवलोकन किया है, जो जवाब के साथ दाखिल की गयी हैं और इसमें यही कहा गया है कि गुप्ता द्वारा अपने व्याख्यानों के दौरान इस्तेमाल की गयी भाषा बहुत ही अश्लील थी. न्यायालय ने कहा कि गुप्ता के खिलाफ यह आरोप भी था कि उन्होंने धोबी के सिर पर गर्म प्रेस रख दी थी, क्योंकि उसने कथित रूप से उनके कपड़े ठीक से प्रेस नहीं किये थे.
पीठ ने कहा कि धोबी ने गुप्ता द्वारा उसे गर्म प्रेस से जख्मी करने की घटना के बारे में प्रधान जिला न्यायाधीश से व्यक्तिगत रूप से शिकायत की थी. प्रधान जिला न्यायाधीश ने इसकी रिपोर्ट हाइकोर्ट से की थी. राज नंदन राय के मामले में शीर्ष अदालत ने पाया कि कई बिंदुओं पर उनका रिकॉर्ड अच्छा नहीं था और 1996-97, 1997-98 और 2004-2005 के दौरान एक बार से अधिक उनकी प्रतिष्ठा और ईमानदारी पर संदेह किया था.
न्यायालय ने कहा कि 2015-16 में कानून के बारे में राय का ज्ञान औसत स्तर का था और बार के सदस्यों के साथ भी उनका व्यवहार ठीक नहीं था. उल्लेखनीय है कि राज नंदन राय और अरुण कुमार गुप्ता समेत झारखंड की न्यायिक सेवा के 12 अधिकारियों को सेवा से बाहर कर दिया गया था. इनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप थे. हाइकोर्ट की अनुशंसा पर सरकार ने इन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी. सेवा मुक्त किये गये इन 12 जजों पर अपने कार्यों का कथित रूप से सही तरीके से निष्पादन नहीं करने के आरोप थे.
झारखंड हाइकोर्ट की निगरानी ने इन अधिकारियों के संबंध में गोपनीय सर्विस रिकॉर्ड तैयार की थी. इनके कामकाज से हाइकोर्ट संतुष्ट नहीं था. हाइकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने सरकार से अनुशंसा की थी कि 12 जजों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी जाये. सरकार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास की सहमति के बाद सेवानिवृत्ति की अधिसूचना जारी कर दी.
इन लोगों को दी गयी थी अनिवार्य सेवानिवृत्ति : लोहरदगा के जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश अनिल कुमार सिंह नंबर 2, डाल्टनगंज के गिरीश चंद्र सिन्हा, गढ़वा के जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश गिरिजेश कुमार दुबे, पाकुड़ के जिला एवं अपर सत्र न्यायधीश ओम प्रकाश श्रीवास्तव, लातेहार के जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश राजेश कुमार पांडेय, चाईबासा के सीजेएम राम जियावन, साहेबगंज के सीजेएम रामजीत यादव, लातेहार के जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश उमेशानंद मिश्रा, गढ़वा के जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव अशोक कुमार सिंह, गोड्डा के कुटुंब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश अरुण कुमार गुप्ता 2, हजारीबाग के श्रम न्यायालय के पीठासीन पदाधिकारी राज नंदन राय.