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व्यापार और आदिवासी

बिल गेट्स, एलन मस्क और जेफ बेजोस के बारे में लगभग हर युवा जानता है. हर इंसान के लिए इनके जैसे शिखर में पहुंचना संभव नहीं है. लेकिन, इतना जरूर है इनके रास्ते में अगर कुछ दूर भी सही से चलो तो कम-से-कम मौत गरीबी में नहीं होगी. इन तीन शख्सों में एक बात सामान्य है, वो इनके सीखते रहने की लालसा और क्षमता.

डॉ गणेश मांझी

gmanjhidse@gmail.com

गरीब के घर पैदा होना तुम्हारा गुनाह नहीं है, लेकिन गरीब मरना तुम्हारा गुनाह जरूर है. गुलामी में पैदा होना तुम्हारा गुनाह नहीं है, लेकिन गुलामी में मरना तुम्हारा गुनाह जरूर है. दुनिया की अमीरों में शुमार लगभग हर शख्स ने कहा है कि, हमेशा कुछ नया सीखने के लिए लालायित रहो, तुम्हारी सीखते रहने की लालसा तुमको कभी भी गरीब नहीं रहने देगी. सीखने और प्रेरणा लेने की संभावना कहीं से भी बन सकती है.

दुनिया के महानतम मुक्केबाज मोहम्मद अली कहा करते थे — “मैं तितली की तरह उड़ता हूं और मधुमक्खी की तरह डंक मारता हूं”, मतलब इतने महान बनने के पीछे उनकी प्रेरणा तितली और मधुमक्खी थी. मोहम्मद अली की एक खास बात और है, कि वो रात को सबसे ज्यादा मेहनत करते थे, उनका मानना था जब रात को उनके प्रतिद्वंद्वी सो रहे होते थे तो उनका मेहनत करने का जोश दोगुना होता था.

ये रात को मेहनत करने वाली बात और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, जब अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में सिर्फ कुछ दशमलव अंकों से हार-जीत का फैसला होता है, मतलब कुछ दशमलव और थोड़ा-सा कम आत्मविश्वास आपको प्रतिस्पर्धा से बाहर कर सकती है.

कैसे लाएं वाणिज्य की नयी सोच?

बिल गेट्स, एलन मस्क और जेफ बेजोस के बारे में आजकल लगभग हर युवा जानता है. हर इंसान के लिए इनके जैसे शिखर में पहुंचना संभव नहीं है. लेकिन, इतना जरूर है इनके रास्ते में अगर कुछ दूर भी सही से चलो तो कम-से-कम मौत गरीबी में नहीं होगी. इन तीन शख्सों में एक बात सामान्य है, वो इनके सीखते रहने की लालसा और क्षमता, किताब पढ़ने की आदत, और कुछ नया करने का जोश.

भारतवासियों की औसत उम्र लगभग 70 साल की है जो की ज्यादातर लोगों की सिर्फ एक ही जिंदगी ही है, लेकिन इन 70 सालों में अगर आप 70 किस्म की किताबें पढ़ लेते हैं तो आप अपने जीवन को कम से कम 70 बार जीते हैं, साथ ही अतिरिक्त अनुभव के जीवन तो हैं ही. पढ़ने की आदत आपके जीवन शैली में बदलाव जरूर लाएगी और आपके आर्थिक जीवन में भी नये आयाम जोड़ेगी, जैसे – बिजनेस शैली, कला, विज्ञान, या वो हर ज्ञान जो जो अस्तित्व में है, और आने वाला है.

व्यवसाय के लिए आपको सिर्फ इतना पता होना चाहिए की बाजार किस वस्तु की है, मांग करने वाले कौन हैं और उनके खरीदने वालों की क्षमता कितनी है, बस बाजार तैयार हो जायेगा. 28 फरवरी के प्रभात खबर के लेख में हमने ‘बाजार में कहां खड़ा है आदिवासी’ में बताने की कोशिश की है. निष्कर्ष ये है कि आदिवासी जहां खड़ा है, वहां न उत्पादन करने वाले के पास पर्याप्त पूंजी है और न ही मांग करने वाले के पास पर्याप्त क्रय शक्ति.

व्यवसाय और बाज़ार की दुनिया को समझने के लिए वैश्विक परिदृश्य को समझना, मानव व्यवहार को समझना बहुत जरूरी है. अक्सर आप देखेंगे व्यवसाय कुछ जातीय समुदायों तक सीमित है, और आदिवासी समुदाय उन समुदायों, यथा बनिया, मारवाड़ी इत्यादि को गुलाम भारत के शोषितों के रूप में ही देखता है, उन्हें अच्छे तरीके से नहीं देखता है और उनके जैसे व्यवसायी बनने में परहेज करता है.

‘नेटवर्किंग बिजनेस’ और ‘चिट फंड’ जैसे व्यवसायों में अपना वक्त क्यों बर्बाद न करें?

आज के युवा की सबसे बड़ी कमजोरी है इनकी धैर्यहीनता, मेरे शब्दों में इन्हें हम ‘मैगी जेनेरेशन’ कहते हैं. आज का युवा तुरंत बिल गेट्स, एलन मस्क, और जेफ बेजोस बनना चाहता है. युवा को ये चमकते हुए सितारे दिखते हैं, लेकिन यही युवा इनके संघर्षों को समझना नहीं चाहता है. युवा की इस धैर्यहीनता को हम ‘नेटवर्किंग बिजनेस’, और ‘चिट फंड’ में इनके बढ़े रुझान से भली-भांति समझ सकते हैं.

नेटवर्किंग बिजनेस (जिसमें हरेक व्यक्ति को तीन सदस्य बनाने होते हैं) की शुरुआत शहर में बैठे किसी धन-लोलुप द्वारा शुरू किया जाता है, ये सारा खेल सूचना (इनफार्मेशन) और विषम सूचना (असिमेट्री ऑफ़ इनफार्मेशन) का है. निहायत ही, लाइन में खड़ा अंतिम व्यक्ति गांव में बसता है जहां पर कड़ी टूटकर खत्म हो जाती है. गांव का अंतिम व्यक्ति का जमा पैसा उस व्यक्ति का नेटवर्किंग बिजनेस का हिस्सा बनते ही शहर की ओर बह जाता है. इस प्रकार पैसे जमा करने के कारोबार का प्रवाह खत्म हो जाता है और नेटवर्किंग व्यवसाय भी यहीं पर खत्म हो जाता है.

निहायत ही, मुफ्त में दूसरे के कमाए पैसे को अपने तथा अपने से ऊपर और टॉप में बैठे हुए व्यक्ति के पॉकेट में भरना नैतिक व्यवसाय नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि ये सारे कारोबार का खेल, प्रशासन की नजरों के सामने हो रहा है इसलिए सरकार के नहीं शामिल होने की सभांवना ही पैदा नहीं होती है. नेटवर्किंग के साथ वस्तु की खरीद और बिक्री फिर भी थोड़ा-सा बेहतर है लेकिन ये अनावश्यक उपभोक्तावाद और इसके परिणामस्वरूप संसाधन के अत्यधिक दोहन का रास्ता खोलता है.

युवावस्था का बहुमूल्य समय जो वास्तविक चीजों पर मेहनत और पढ़ाई करने के बजाय नेटवर्किंग बिजनेस में पैसा जमा करने में गुजर जाता है. कड़ी टूटने तक आपकी कमर टूटती है, आपका बहुमूल्य समय सदस्य बनाने और फायदे गिनाने में निकल जाते हैं, जब तक आप संभल पाते, आपकी मनोदशा और आपके रिश्ते खराब हो चुके होते हैं. समाज के कुछ चेतनशील लोग चेतनशीलता की बात करते हैं तो उन्हें कहा जाता है – आप ही नौकरी दे दीजिये.

‘चिट-फंड’ जैसी गैरजरूरी संकल्पना जटिल तरीके से बड़े-बड़े बिजनेस घराने और बैंक तो करते ही हैं, लेकिन छोटे और बड़े शहरों में सीमांत व्यवसायी इस संकल्पना का इस्तेमाल काफी करते हैं, जैसे – व्यक्ति A अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए B से पैसे लेता है. कुछ महीने बाद B जब A से पैसे की मांग करता है और A के पास पैसे नहीं है तो वो C से पैसे लेकर B को दे देता है. A की ईमानदारी से B बहुत खुश होता है. कुछ समय पश्चात् C अपने पैसे A से मांगता है तो A या तो B से लेगा या फिर कोई नया दोस्त D बनाएगा और उससे पैसे लेगा.

एक सामान्य रिश्ता और विश्वसनीयता बनाये रखने के A द्वारा D से पैसे लेने की ज्यादा संभावना है और उसे C को दे देगा, और कड़ी इसी प्रकार चलते रहेगी. एक प्रकार से A, B, C और D सामान्य मित्र हो गये, जब संयोगवश B, C और D एक दिन मिलते हैं तो बातचीत के क्रम में पता चलता है कि, A बहुत अच्छा आदमी है क्योंकि वो सबके पैसे लौटा दिया/ देता है. खैर, एक वक्त ऐसा आता है जब C पूछता है B से की A ने तुम्हारे पैसे कब लौटाये. ठीक उसी तरह D पूछेगा C से की A ने C को पैसे कब लौटाया इत्यादि.

इस प्रकार सबको पता चल जायेगा की A क्या करने की कोशिश कर रहा है. ये साफ हो जायेगा की A पैसे के प्रवाह में बस खेल रहा है. वैसे, जब तक सच्चाई का पता चलता है तब तक A वहां से गायब भी हो सकता है. अधिकतर स्थितियों में A गायब ही हो जाता है. दिल्ली में बहुत सारे घर खरीदने वाले या घर में निवेश करने वाले काफी सारे छोटे व्यापारियों को भी आप इस प्रकार से समझ सकते हैं. पैसा देने वाले व्यक्ति दूर-दूर से हों तो पैसे देने वालों का पता चलते-चलते शायद बहुत देर हो जाये.

युवाओं को प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता के सही मायनों को समझना बहुत जरूरी है. साथ ही सतत सीखते रहने की नियत बनाये रखना जरूरी है, और कुछ अच्छी चीजें गांठ जरूर बांध लेनी चाहिए — विद्यां ददाति विनयं, विनयाद्याति पात्रताम् । पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥, अर्थात — विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है, पात्रता से धन आता है, धन (‘धर्म’ का मतलब तथाकथित धर्म ही समझना जरूरी नहीं है) से धर्म होता है, और धर्म से सुख प्राप्त होता है.

(प्राध्यापक, अर्थशास्त्र, गार्गी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय)

Posted by: Pritish sahay

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