कंस नदी का जलस्तर सूखा, कभी भी बंद हो सकती है सप्लाई पानी

सिसई प्रखंड के कुदरा, लकेया व भदौली पंचायत सहित मुख्यालय के पांच हजार से अधिक घरों को पानी मुहैया कराने वाले सिसई के पानी टंकी से पानी की सप्लाई कभी भी बंद हो सकता है.

By Prabhat Khabar News Desk | April 23, 2024 10:08 PM

प्रफ्फुल भगत, सिसई सिसई प्रखंड के कुदरा, लकेया व भदौली पंचायत सहित मुख्यालय के पांच हजार से अधिक घरों को पानी मुहैया कराने वाले सिसई के पानी टंकी से पानी की सप्लाई कभी भी बंद हो सकता है. क्योंकि फिल्टर प्लांट को पानी देने के लिए इंटेक वेल जिस कंस नदी में आश्रित है. वह नदी सूख चुकी है. गर्मी के बढ़ने के साथ ही नदी का आंतरिक जलस्तर भी सूखने लगा है. पेयजल कर्मी कच्चा बांध बनाकर, तो कभी जेसीबी से खुदाई कराकर इंटेक वेल के पास पानी जमा करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं. ताकि गर्मी में लोगों को पानी मिल सके. इंटेक वेल के मोटर और फिल्टर प्लांट को चलाने वाला कर्मी मकिर अंसारी ने बताया कि सभी क्षेत्रों में पर्याप्त पानी सप्लाई के लिए प्रतिदिन ढाई लाख लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है. जिस कंस नदी में इंटेक वेल है. वह मार्च अप्रैल महीना में ही पूरी तरह से सूख जाती है, जनवरी फरवरी से ही कच्चा बांध बनाकर पानी रोकने की कवायद हम शुरू कर देते हैं. फिल्टर प्लांट को पानी देने के लिए संप मोटर को कम से कम 7 से 8 घंटा चलाना जरूरी है. जबकि अभी 24 घंटे में रुक रुक कर दो से तीन घंटा ही चला पा रहे हैं. संप मोटर के आधा घंटा चलते ही इंटेक वेल में पानी सूख जाता है. पानी खींचने के लिए लगाया गया जानसन पाइप पानी की सतह से बाहर आ जाता है और पानी देना बंद कर देता है. नदी में बालू नहीं होने के कारण गर्मी बढ़ते ही नदी की आंतरिक जलधारा भी सूखने लगती है. इंटेक वेल में दो संप मोटर और फिल्टर प्लांट में मोटर लगा हुआ है, जिसमें दोनों का एक एक मोटर महीनों से खराब पड़ा हुआ है. एक एक मोटर को किसी तरह से मरम्मत कराकर काम चला रहे हैं. पानी रोकने के लिए नदी में एक पक्का चेकडैम बनाना ही एक मात्र विकल्प बच गया है..

पिछले चार साल से नहीं मिला है मानदेय

मकिर ने बताया कि कनेक्शनधारियों से प्रतिमाह 62 रुपये शुल्क लिया जाता है. आधे से अधिक लोग शुल्क भी नहीं देते हैं. हर माह 30 से 35 हजार रुपये वसूली होता है. जिसमें पानी साफ करने के लिए केमिकल, मशीनों की मरम्मत और टंकी के रखरखाव में 30 हजार से अधिक खर्च हो जाता है जो बचता है. उसे कर्मियों के बीच खर्च के लिए बांट दिया जाता है. ऑपरेटर के तौर पर मकिर अंसारी, मनोज उरांव, दीपक गोप व महेंद्र लोहरा चार कर्मी हैं. पांच साल पहले सभी को नौ हजार प्रतिमाह के मानदेय पर पीएचइडी विभाग ने काम पर रखा है. परंतु चार साल से सभी को मानदेय नहीं मिला है. कर्मी कहते हैं कि मानदेय नहीं मिलने से आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गयी है. पर कभी, तो मानदेय मिलेगा. इसी उम्मीद से काम कर रहे हैं.

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