30.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

लेटेस्ट वीडियो

सरकारी लापरवाही से क्षेत्र के युवा पत्थर तोड़ने को विवश

चाईबासा पावरग्रिड स्थित आचू में निकलता है सिल-लोढ़े का पत्थर विकल्प नहीं होने से सिल-लोढ़े बनाकर रोटी चलाना बनी मजबूरी चाईबासा : वक्त के साथ आयी नयी तकनीक और मशीनों ने हमारी रसोई को बदल कर रख दिया है. सब्जियों के लिए मसाले आज बाजारों में पिसे-पिसाये उपलब्ध हैं या जमाने के साथ घरों में […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

चाईबासा पावरग्रिड स्थित आचू में निकलता है सिल-लोढ़े का पत्थर

विकल्प नहीं होने से सिल-लोढ़े बनाकर रोटी चलाना बनी मजबूरी

चाईबासा : वक्त के साथ आयी नयी तकनीक और मशीनों ने हमारी रसोई को बदल कर रख दिया है. सब्जियों के लिए मसाले आज बाजारों में पिसे-पिसाये उपलब्ध हैं या जमाने के साथ घरों में भी इसके लिए प्रयुक्त रसोई के उपकरण बदल गये हैं. मसाले पीसने के लिए महिलाएं पहले जहां सिल-लोढ़े का प्रयोग करती थीं, वहीं आज उसकी जगह मक्सिर-ग्राइंडर ने ले ली है. लेकिन इसने सिल-लोढ़ा व जांता जैसे रसोई के उपकरण बनाने वालों की जिंदगी भी बदल दी है.

चाईबासा से 5 किमी दूर स्थित आचू गांव के आस-पास के ग्रामीण आज भी जमीन से खोद कर निकाले गये पत्थरों से परंपरागत सिल-लोढ़े के निर्माण से जुड़े हुए हैं. पत्थरों को आचू के माइनिंग क्षेत्र में जमीन से खोद कर निकाला जाता है, जिसके बाद परंपरागत व्यवसाय से जुड़े यहां के ग्रामीण परिवार चलाने के लिए उन पत्थरों से सिल-लोढ़ा बनाते हैं. कहने को तो सरकार इन ग्रामीणों के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं करती है, लेकिन सच्चाई यह है कि किसी भी योजना का लाभ इनको नहीं मिल पाता है. इसका नतीजा यह कि आज भी गांव के युवाओं के साथ ही बूढ़े-बुजुर्ग भी पत्थरों को छेनी-हथौड़ी से आकार देने में ही दिन बिता रहे हैं.

बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या

यहां के ग्रामीण युवाओं की आज भी बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है. सरकार के अनेक दावों के साथ ही कई योजनाएं इन लाभुकों तक नहीं पहुंच पातीं, जिसके कारण यहां के ग्रामीण आज भी बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं. ऐसे में गुजर-बसर के लिए ग्रामीण युवा सिल-लोढ़ा निर्माण को रोजगार के रूप चुनते हैं. वे भी चाहते हैं कि सरकार उन पर ध्यान दे, ताकि उनका जीवन भी इससे उबर सके.

मिट्टी के मोल मिलता हैं भाव

ग्रामीण खून-पसीना एक कर जमीन से खुदाई कर पत्थर निकालते हैं, जिसके बाद घंटों मेहनत कर उससे सिल-लोढ़ा बनाकर चाईबासा बाजार में लाकर महाजन को बेचते हैं. चाईबासा बाजार में बस स्टैंड के आस-पास ही सिल-लोढ़ा के तीन-चार थोक विक्रेता हैं. वे ग्रामीणों से मिट्टी के मोल सिल-लोढ़े की खरीदारी करते हैं. बाद में वे ही उसे राज्य के साथ ही आस-पास के दूसरे राज्यों में भी उसके सप्लाई करते हैं.

तीन घंटे में तैयार होता है एक सिल-लोढ़ा

जमीन से खोद कर खास पत्थर निकालने के बाद एक कारीगर को करीब तीन घंटे का समय सिल-लोढ़े को आकार देकर पूरी तरह तैयार करने में लगता है. इसके लिए वे कई प्रकार की छेनी के साथ ही छोटे-बड़े कई हथौड़े भी अपने पास रखते हैं. सिल-लोढ़ा बनानेवालों के अनुसार उसके पत्थरों को तराशने के में कोई मशीन कारगर नहीं, जिसके कारण पुराने जमाने से यहां छेनी-हथौड़े से ही सिल-लोढ़े बनाये जाते हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

अन्य खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snaps News reels