चाईबासा :जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर मझगांव प्रखंड में पौराणिक कहानियों का सागर ‘बेनीसागर’ अब भी अपने अंदर कई अनसुलझे रहस्य छिपाये हुए है. इसीलिए कहा जाता है कि यह पुरातात्विक स्थल वह रहस्यमयी किताब हैं, जो शोधकर्ताओं, पुरातत्वविदों के साथ ही पर्यटकों को भी बरबस अपनी ओर खींचता है.
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झारखंड अलग राज्य बनने के बाद यहां के इतिहास का नये सिरे से अनुसंधान शुरू हुआ है, ताकि अपनी सभ्यता-संस्कृति को सहेजने के साथ ही अगली पीढ़ी को इसकी धरोहर सौंपी जा सके. इसके तहत भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की ओर सेे बेनीसागर का लगातार अध्ययन जारी है.
बेनीसागर का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है. यहां के कई अनसुलझे रहस्यों के संग्रह के अलावा एक भव्य धार्मिक स्थल भी है. पुरातात्विक अवशेषों के आधार पर कहा जाता हैं कि यह स्थान 5वीं सदी से लेकर 16वीं व 17वीं शताब्दी तक लगातार बसा रहा था. इस स्थान का नाम बेनीसगर राजा वेणु के नाम पर रखा गया है, जिसने बेनीसागर के भव्य तालाब का निर्माण कराया था.
2003 से लगातार चल रहा है उत्खनन व शोध : बेनीसागर में पुरातत्वविदों की टीम वर्ष 2003 से ही लगातार उत्खनन व शोध कर रही है. खुदाई में अब तक यहां कई देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां मिल चुकी हैं, जिनमें शिवलिंग, भैरव, सूर्य, गौतम बुद्ध, गणेश आदि की मूर्तियां प्रमुख हैं.
खनन के दौरान यहां हाल में मूर्तियों के अलावा मुहरें आदि भी मिली हैं, जो बेनीसागर स्थित म्यूजियम में संग्रहित हैं. म्यूजियम से कुछ ही दूरी पर पुरानी इमारतों के अवशेष भी मिले हैं, जिनकी बनावट से लगता है जैसे वहां स्नान गृह रहा होगा. यहां करीब 50 एकड़ में फैले मंदिर के अवशेष भी मिले हैं.
तालाब में खिले कमल आकर्षण का केंद्र: बेनीसागर में करीब 350 मीटर लंबा और 300 मीटर चौड़ा तालाब है जिसमें चारों ओर खिले कमल के फूल इसकी शोभा बढ़ाते हैं. स्थानीय लोगों की मानें तो तालाब के अंदर चांदी का एक मंदिर भी मौजूद है. हालांकि आजतक इसकी पुष्टि नहीं हुई है. इस तालाब की कभी न सूखने की विशेषता इसके अनेक रहस्यों में एक है, जो शोधकर्ताओं के मन में भी कुतूहल पैदा करता है.
प्रशासन पर्यटकों की सुविधा के लिए तालाब के चारों ओर व्यू प्वाइंट बनवा रहा है, जहां बैठकर वे प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा ले सकेंगे.