सीएनटी एक्ट में संशोधन से खत्म हो जायेगा हो समाज : मुकेश
सीएनटी एक्ट व आदिवासी हो समाज’ विषय पर गोष्ठी, जमीन के बिना हो समाज, संस्कृति और भाषा का अस्तित्व नहीं गैर आदिवासी जनजाति सलाहकार परिषद् के स्वघोषित अध्यक्ष बन कर रहे संशोधन चाईबासा : मानकी मुंडा संघ गोइलकेरा व आदिवासी हो समाज के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार को ‘सीएनटी एक्ट व आदिवासी हो समाज’ विषय […]
सीएनटी एक्ट व आदिवासी हो समाज’ विषय पर गोष्ठी, जमीन के बिना हो समाज, संस्कृति और भाषा का अस्तित्व नहीं
गैर आदिवासी जनजाति सलाहकार परिषद् के स्वघोषित अध्यक्ष बन कर रहे संशोधन
चाईबासा : मानकी मुंडा संघ गोइलकेरा व आदिवासी हो समाज के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार को ‘सीएनटी एक्ट व आदिवासी हो समाज’ विषय पर गोष्ठी हुई. मानकी लंबोरा मेरेल की अध्यक्षता में हुई गोष्ठी में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के उपाध्यक्ष मुकेश बिरुवा ने कहा कि जबतक जमीन है, तबतक आदिवासी हो समाज, संस्कृति और भाषा है. बिना जमीन के आदिवासी हो समाज के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती. सीएनटी एक्ट में संशोधन से कोल्हान का अभेद हो समाज पूरी तरह नष्ट हो जायेगा. आरएसएस व भाजपा के लोग आदिवासी हो समाज के सामाजिक शांति को तहस नहस करने में लगे हैं. ऐसे लोगों से हमें हो समाज को बचाना होगा.
गैर आदिवासी से जमीन की सुरक्षा के लिए सीएनटी एक्ट. पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष (बिहार) देवेन्द्र नाथ चम्पिया ने कहा की अंग्रेजों ने आदिवासी जमीनों की सुरक्षा दिकुओं से करने के लिए सीएनटी एक्ट आदि बनाया.आज दीकू कानून के रखवाले हो गये हैं. पांचवीं अनुसूची का विशेष प्रावधान है, जनजाति सलाहकार परिषद्. इसमें संवैधानिक रूप से आदिवासी प्रतिनिधि सदस्य होते हैं. झारखंड में एक गैर आदिवासी इसके स्वघोषित अध्यक्ष बने बैठे हैं. उन्हीं की अध्यक्षता में संशोधन का निर्णय लिया जा रहा है. इसे आदिवासी हो समाज कभी स्वीकार नहीं करेगा.
21 को चाईबासा में सीएनटी बचाओ आक्रोश रैली
अंत में निर्णय हुआ कि हो समाज सीएनटी एक्ट में संशोधन के विरोध में 15 फरवरी को रांची में होने वाले ग्लोबल समिट के विरुद्ध गोइलकेरा में मुख्यमंत्री का पुतला फूंकेगा. वहीं 21 मार्च को चाईबासा में सीएनटी बचाओ समन्वय मंच की ओर से आहूत आक्रोश रैली में गोइलकेरा से लोग पहुंचेंगे. गोष्ठी में समाजसेवी रमेश जेराई, कुंवर सिंह जोंको, लम्बोरा मेरेल (मानकी), लक्ष्मण चम्पिया (मुंडा), तिल्तुस पुरती, हरिश बह्न्दा, दिलीप मेरेल, कुजरी बोदरा आदि उपस्थित थे.