My Mati: झारखंड के इस गांव की तस्वीर बदल रहा ग्रामसभा का युवा नेतृत्व, जानें कैसे?

पश्चिम सिंहभूम जिला के मनोहरपुर प्रखंड में स्थित है कसेयापेचा गांव. मनोहरपुर प्रखंड संविधान की पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आता है इसीलिए इस क्षेत्र में गांव की शासन प्रणाली पेसा कानून के तहत संचालित होती है

By Prabhat Khabar News Desk | November 18, 2022 11:35 AM

पश्चिम सिंहभूम जिला के मनोहरपुर प्रखंड में स्थित है कसेयापेचा गांव. मनोहरपुर प्रखंड संविधान की पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आता है इसीलिए इस क्षेत्र में गांव की शासन प्रणाली पेसा कानून के तहत संचालित होती है जिसमें कि ग्राम सभा को सर्वोपरि माना गया है. यह पूरा क्षेत्र घने जंगलों से घिरा हुआ है जो कि एशिया का सबसे बड़ा साल का जंगल – सारंडा के नाम से जाना जाता है.

साथ ही इस क्षेत्र में लौह अयस्क के कई बड़ी खदानें मौजूद है, जिसके नकारात्मक पक्ष के रूप में पर्यावरण की क्षति, स्वास्थ समस्याएं एवं सांस्कृतिक विघटन इत्यादी चीजों से लोगों को जूझना पड़ रहा है. जितना सशक्त इन इलाकों ने देश की आर्थिकी को किया है शायद उसका कर्ज हम इन इलाकों को चुका नहीं पाये हैं,

नतीजातन इन इलाकों मे शिक्षा, स्वास्थ, सिंचाई, सड़क, पेयजल इत्यादि सुविधाओं का भारी अभाव है. इन सभी मुश्किलों के बावजूद प्रखंड मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर, कसेयापेचा गांव में व्याप्त जन-जागरूकता एवं सामाजिक संगठन देखते ही बनता है – और इसका सीधा श्रेय जाता है यहां पर नियमित होनी वाली गांव वालों की बैठक यानी ग्राम सभा को.

कसेयापेचा ‘हो’ आदिवासी बहुल गांव है और यहां पर पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था वर्षों से चली आ रही है. उसी व्यवस्था का विस्तार है यहां पर नियमित होने वाली ग्राम सभा जिसके अध्यक्ष एवं हातु मुंडा (पारंपरिक मुखिया) नंदलाल सुरिन हैं. आमतौर पर अन्य गांवों में ग्राम सभा को सरकारी योजना मात्र लागू करने वाली एजेंसी के रूप में देखा जाता है जो कि गलत है. लेकिन इस गांव में ग्राम सभा को गांव वाले गांव की ही मूलभूत संगठन के रूप में देखते हैं और यहां पर सरकारी योजनाओं के अलावा गांव की अखंडता एवं खुशहाली से जुड़ी सारी बातों पर विमर्श होता है.

यहां पर ग्राम सभा करने की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार होती है –

गांव से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण विषय को सूचीबद्ध कर सभी गांव वालों को तीन दिन पूर्व सूचना दी जाती है कि इन विषयों पर इस दिन बातचीत होगी. तय दिन सभी लोग ग्राम सभा में हिस्सा लेते हैं एवं अपना-अपना विचार रखते हैं. सभी के विचारों को सम्मिलित कर ग्राम सभा कोई ठोस निर्णय पर पहुंचती है और आगे की प्रक्रिया हातु मुंडा/ ग्राम सभा अध्यक्ष के दिशा-निर्देश एवं जिम्मेदारी में होता है. इस दौरान सभी विचार एवं निर्णयों का लिखित दस्तावेजीकरण ग्राम सभा द्वारा अपने रजिस्टर में किया जाता है, जिसपर सभी गांव वाले हस्ताक्षर करते हैं.

ये सारी प्रक्रिया देखने में भले ही गौण लगे परंतु इसके जरिए गांव वाले सरकार एवं प्रशासन से वार्तालाप, सरकारी योजनाओं का अपनी जरूरत के अनुसार क्रियान्वयन, गांव की अखंडता एवं जागरुकता बना कर रखना एवं गांव वालों का समुचित विकास कर रहे हैं. उदाहरण के तौर पर गांव के ही मंगता सुरिन बताते हैं – इस गांव में जब बिजली आयी तो वह मात्र एक महीना चला और फिर वह ठप पड़ गया लेकिन फिर भी अगले दो साल तक बिल आता रहा.

फिर लोगों ने ग्राम सभा के जरिए इसकी लिखित शिकायत बिजली विभाग को दी, तो मात्र तीन दिन में विभाग ने कर्मचारियों को भेज कर बिजली की मरम्मत की. तीन और चिट्ठियां लिखने पर बिजली के गलत बिल को भी सुधार दिया गया. इसके अलावा पूर्व में बिजली के खंभों को गाड़ने के दौरान जो अनियमितताएं हुई थीं, उसकी भी शिकायत ग्राम सभा द्वारा किया गया तो उसे भी सुधार दिया गया. इसके साथ-साथ ग्राम सभा द्वारा गांव में पीसीसी सड़क का निर्माण एवं एक चेक डैम का निर्माण भी कराया गया है.

इस ग्राम सभा की एक और उपलब्धि यह है कि उसने इस गांव में ड्रिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी) मद से नये स्कूल भवन का निर्माण करवाया है. डीएमएफटी मद को माइंस एंड मिनरल्स (डेवेलपमेंट एंड रेगूलेशन) अमेंडमेंट ऐक्ट 2015 के अंतर्गत स्थापित किया गया है, जहां पर किसी जिले में कार्य कर रही खनन कंपनियां रॉयल्टी का कुछ हिस्सा जमा करती है.

मद में जमा राशि को जिला प्रशासन नियमतः जिले के खनन प्रभावित क्षेत्रों में सर्वागीण विकास हेतु खर्च करती है जैसे कि – पेयजल, स्वच्छता, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास इत्यादि. चूंकि कसेयापेचा पश्चिम सिंहभूम जिले में है, जहां बहुतायत में लौह अयस्क का खनन किया जाता है, ऐसे खनन बहुल जिलों के लिए डीएमएफटी मद से स्वास्थ्य एवं शिक्षा इत्यादि संबंधी चीजों की बेहतरी में खर्च किया जा रहा है.

मंगता सुरिन बताते हैं कि – कसेयापेचा गांव के लोगों ने ग्राम सभा के जरिए प्रखंड में डीएमएफटी मद के प्रयोग से स्कूल भवन का आवेदन दिया था. बीच में इस मद के विषय में कई गांवों को मिलाकर एक आम सभा भी हुई, जहां इसके प्रयोग के बारे में जानकारी भी दी गयी. कुछ दिन बाद खबर आयी कि कसेयापेचा गांव में स्कूल भवन के निर्माण को स्वीकृत कर दिया गया है. हातु मुंडा नंदलाल सुरिन कहते हैं कि स्कूल तो बन गया है, लेकिन इसमें पाकशाला अभी बनाया जाना बचा है.

इसके लिए ग्राम सभा के जरिए वे फिर सरकार को आवेदन लिखेंगे एवं ध्यानाकर्षण के लिए अखबारों में भी खबर पहुचाएंगे. नंदलाल से पूछने पर कि वे क्यों स्कूल पर इतना ध्यान देते हैं, वे कहते हैं कि चूंकि शिक्षा सुविधा के अभाव में वे स्वयं ज्यादा नहीं पढ़ पाये, वे नहीं चाहते हैं कि गांव के अन्य बच्चे-बच्चियों को ऐसा देखना पड़े और गांव की खुशहाली के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा लोग यहां शिक्षित रहें.

ग्राम सभा के जरिए सिर्फ सरकारी योजनाओं के बारे में ही जानकारी नहीं बढ़ी है बल्कि अपने हक और अधिकारों के प्रति भी लोग उतने ही सजग हुए हैं. गांव वाले डीएमएफटी मद को दया करने का जरिया ना मानकर अपने हक का हिस्सा मानते हैं. हातु मुंडा के अनुसार गांव की परिधि में मिलने वाले संसाधनों पर सबसे पहला हक गांव वालों का है और इसी कारण खनन इत्यादि से होने वाले आर्थिक लाभ पर लोगों का उतना ही अधिकार है जितना कि कंपनी एवं सरकार का.

अब तक ग्राम सभा द्वारा प्रस्तावित 17 परियोजनाओं में से लगभग 13 स्वीकृत हो चुकी हैं, जिसमें एक चेक डैम, स्कूल, सड़क इत्यादि शामिल है. ग्राम सभा के नियमित बैठने से मिली उर्जा एवं आत्मविश्वास से ही गांव वाले अब सरकारी योजनाओं के मोहताज मात्र नहीं रह रहे बल्कि अपने भविष्य एवं सपने को संजोने का प्रयास स्वयं कर रहे हैं. हातु मुंडा कहते हैं कि आगे गांव वालों की इच्छा है कि यहां अगर स्नातक स्तरीय कॉलेज खुल पाए तो यहां के लोगों की शिक्षा के लिए बहुत सुविधा होगी

और इसके लिए अन्य गांव के लोगों के साथ मिलकर आम सभा भी की गयी है. इसके अलावा गांव के लोग खेती के नये स्वरूप जैसे कि तसर इत्यादि की खेती सीख रहे हैं, जिससे कि वे और अधिक स्वावलंबी रह सके. गांव की इस यात्रा के अंतिम दिन हातु मुंडा नंदलाल सुरिन गांव के अन्य लोगों को तसर रेशम की खेती के बारे में सिखाने की तैयारी कर रहे थे, जिसे कि उन्होंने स्वयं सरायकेला जाकर सीखा था.

कसेयापेचा ग्राम सभा स्थानीय नेतृत्व एवं ग्राम संगठन के नये आयामों को गढ़ रहा है और उम्मीद है कि इस तरह के सफल संगठन से प्रेरित होकर अन्य इलाकों में भी लोग ग्राम सभा से उर्जा प्राप्त करेंगे.

गुंजल इकिर मुंडा

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