प्रतिनिधि, तांतनगर
तांतनगर प्रखंड क्षेत्र के हरिबेड़ा स्थित ओडिशा व झारखंड को विभाजित करने वाली खरकई नदी तट पर 8 व 9 जून को शिकार पर्व (संगर पर्व) का आयोजन होगा. शिकार पर्व पर वन में रहने वाले वन्य जीवों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाता है. सिर्फ परंपरा का निर्वहन होता है. गांव में मेले के आयोजन को लेकर तैयारी पूरी कर ली गयी है. मेले का उद्घाटन विधायक निरल पूर्ति करेंगे. पहले दिन डाबरा पहाड़ देवता की पूजा-अर्चना कर पहाड़ पर शिकार किया जाता है. दूसरे दिन तालाब में पूजा के बाद खरकई नदी के बीच में मेला लगता है. मेले में झारखंड व ओडिशा के दूर-दराज के लोग आते हैं और आराधना करते हैं. सुरमी दुरमी मेला समिति हरिबेड़ा द्वारा मेले का संचालन किया जाता है. यह मेला प्रतिवर्ष जून की अमावस्या पर किया जाता है.तालाब में दैविक शक्ति का वास
तांतनगर प्रखंड क्षेत्र के हरिबेड़ा गांव के उत्तर में दो बड़े-बड़े दैविक तालाब हैं. जिन्हें सुरमी दुरमी तालाब से जाना जाता है. लोगों की मान्यता है कि भीषण गर्मी में भी तालाब का पानी नहीं सूखता है. इस समय तालाब में पानी की गहराई लगभग 6 फीट बतायी जाती है. हालांकि इस समय तालाब जलकुंभी से पटा हुआ है. तालाब में दैविक शक्ति का वास है. इस तालाब में अन्याय कार्य करने व्यक्ति की डूबने की संभावना रहती है.सुरमी व दुरमी से संबंधित दो इतिहास
पहला:
हरिबेड़ा की दक्षिणी दिशा में डाबरा नाम का एक पहाड़ है. उस पहाड़ पर डाबरा नाम के एक तपस्वी योद्धा रहते थे. डाबरा पहाड़ उन्हीं के नाम से हुआ है. उनकी दो रानियां (सुरमी व दुरमी) थीं. 1500 सदी में जब क्षेत्र में भीषण गर्मी पड़ी, तो लोगों के बीच पानी के लिए हाहाकार मचा. लोगों ने तपस्वी डाबरा से निजात की विनती की. डाबरा ने अपनी दोनों रानियों के नाम से पहाड़ी से उत्तर दिशा में दो बाण चलाये. हरिबेड़ा स्थित जहां पर बाण गिरे, वहां दो बड़े-बड़े तालाब बने. दो तालाब बनने से लोगों को पानी के समस्या से निजात मिली. इस तरह दोनों तालाब सुरमी दुरमी के नाम से प्रसिद्ध हुए. माना जाता है कि दोनों तालाब काफी पवित्र हैं. तालाब में पवित्र स्नान करने पर हर मनोकामना पूरी होती है. मेला में आने वाले लोग तालाब में पवित्र स्नान कर मन्नत मांगते हैं. उसके बाद मेला में शामिल होते हैं.दूसरा:
एक बार ओडिशा स्थित नारगी की दो महिलाएं (सुरमी और दुरमी) खरकई नदी में मछली पकड़ रही थीं. तपस्वी डाबरा ने दोनों महिलाओं को देखे बिना शिकार के लिए उतर दिशा में बाण चलाये . बाण मछली पकड़ रही महिला के पास गिरा और दोनों महिलाओं ने बाण अपने पास रख लिये. डाबरा बाण की खोजबीन करते-करते दोनों महिलाओं के पास पहुंचे. दोनों से बाण वापस करने की विनती की. दोनों ने डाबरा से बाण वापस करने की शादी की शर्त रखी. डाबरा ने दोनों महिला की शर्त स्वीकार की. डाबरा सुरमी व दुरमी को लाये. घर व्यवस्था के लिए डाबरा ने उतर दिशा में सुरमी के नाम से बाण चलाया, जहां बाण गिरा वहां बड़ा तालाब बन गया उसी तालाब में सुरमी दैविक शक्ति के रूप में निवासी करने लगी. इसी तरह दुरमी के नाम से भी उतर दिशा में बाण चलाया, जहां बाण गिरा वहां दूसरा बड़ा तालाब बन गया. उस तालाब में दैविक शक्ति पवित्र दुरमी निवास करने लगी. डाबरा सुरमी-दुरमी से मिलने के लिए पहाड़ और तालाब के बीच सुरंग बना दिया. जो आज भी मौजूद है. ……………….क्या कहते हैं हरिबेड़ा के ग्रामीण
पहाड़ पर तपस्वी डाबरा के दो बाणों से सुरमी व दुरमी तालाब बने हैं. दोनों तालाब काफी पवित्र हैं. जून की अमावस्या के आस पास शिकार पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है.
बोगन कालुंडियाहरिबेड़ा में डाबरा पहाड़ व सुरमी-दुरमी तालाब में पूजा-अर्चना कर शिकार पर्व (संगर मेला) का आयोजन किया जाता है. यह पर्व काफी पवित्र है.रौनक मुडरी
हरिबेड़ा में डाबरा पहाड़ व सुरमी-दुरमी तालाब की पूजा-अर्चना की जाती है. फिर खरकई नदी के बीच मेला का आयोजन होता है. ग्रामीण व दूरदराज से आने वाले लोग काफी आनंद लेते हैं.विक्रम कालुंडिया- हरिबेड़ा में शिकार पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है. मेला समिति द्वारा मुख्य अतिथि के रूप आमंत्रित किया गया है.
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