Jharkhand news, Chakradharpur news : चक्रधरपुर (शीन अनवर ) : झारखंड अलग राज्य आंदोलन और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कोल्हान में कई ऐसे यादगार उलगुलान हुए हैं, जिसका दस्तावेज बनाये जाने की जरूरत है. इसी जरूरत को पूरा करने के लिए विधायक सुखराम उरांव ने सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक मार्मिक पत्र लिखा है. जिसमें खरसावां गोली कांड और सेरेंगसिया घाटी कांड का डॉक्यूमेंट्री बनाये जाने की वकालत की है.
पत्र में विधायक द्वारा कहा गया है कि कोल्हान का यह दोनों आंदोलन झारखंड के इतिहास का प्रमुख हिस्सा बनना चाहिए. 18 नवंबर, 1837 को सेरेंगसिया घाटी में ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ पोटो हो के नेतृत्व में ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी गयी थी. जिसमें आदिवासियों ने अंग्रेजों को परास्त किया था. आदिवासियों के पास तीर- कमान और अंग्रेजों के पास तोप थे. फिर भी जीत आदिवासियों की ही हुई थी.
शिकस्त के बाद अंग्रेजों ने पोटो हो और उनके साथियों को गिरफ्तार कर फांसी दे दी थी. इसी लड़ाई का परिणाम था कि साउथ इस्ट फ्रंटियर के तत्कालीन एजेंट कैप्टन थॉमस विल्किंसन को संधि करने के लिए मजबूर होना पड़ा था और कोल्हान की पारंपरिक व्यवस्था विल्किंसन रूल्स को मान्यता दी गयी थी.
इसी तरह खरसावां में 1 जनवरी, 1948 को झारखंड अलग राज्य आंदोलन की पहली गोली कांड हुई थी. लेकिन, इस कांड का इतिहास भी लुप्त हो रहा है. इन दोनों ऐतिहासिक कांडों का दस्तावेजीकरण और डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना कर इतिहास को जिंदा रखा जा सकता है.
भारत की आजादी के करीब 5 महीने बाद जब देश 1 जनवरी, 1948 को आजादी के साथ नये साल का जश्न मना रहा था, तब खरसावां आजाद भारत के जलियांवाला बाग जैसे कांड का गवाह बना. उस दिन साप्ताहिक हाट का दिन था. तत्कालीन ओड़िशा सरकार ने पूरे इलाके को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया था. खरसावां हाट में करीब 50 हजार आदिवासियों की भीड़ पर ओड़िशा मिलिट्री पुलिस गोली चलायी थी. आजाद भारत का यह पहला बड़ा गोलीकांड माना जाता है. इस घटना में कितने लोग मारे गये इस पर अलग- अलग दावे हैं और इन दावों में भारी अंतर है.
प्रभात खबर झारखंड के कार्यकारी संपादक अनुज कुमार सिन्हा की किताब झारखंड आंदोलन के दस्तावेज : शोषण, संघर्ष और शहादत में इस गोलीकांड पर एक अलग से अध्याय है. इस अध्याय में वो लिखते हैं कि मारे गये लोगों की संख्या के बारे में बहुत कम दस्तावेज उपलब्ध हैं. पूर्व सांसद और महाराजा पीके देव की किताब मेमोयर ऑफ ए बायगॉन एरा के मुताबिक इस घटना में 2000 लोग मारे गये थे.
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इसी तरह 18 नवंबर, 1837 को टोंटो प्रखंड की सेरेंगसिया घाटी में अंग्रेजी फौज के साथ हुए भीषण छापामार युद्ध का नेतृत्व पोटो हो ने किया था. इस युद्ध में ब्रिटिश फौज की करारी हार हुई थी. 26 हो लड़ाके शहीद हुए थे, जबकि ब्रिटिश सेना के एक सूबेदार, एक हवलदार और 13 सिपाही घायल हुए थे. पोटो हो का जन्म जगनाथपुर प्रखंड के राजाबासा में हुआ था. अंग्रेजों की ओर से 400 सशस्त्र सैनिक, 200 पाइको सैनिक, 60 घुड़सवार था. पोटो हो के नेतृत्व में लड़ाके सेरेंगसिया घाटी में घात लगाकर बैठ गये. जैसे ही अंग्रेजी सैनिक पहुंचे, हो लड़ाकों ने उनके ऊपर तीरों की बरसात कर दी. अंग्रेज हार गये. 8 दिसंबर, 1837 को पोटो हो, देवी हो, बोड़ो हो, बुड़ई हो, नारा हो, पंडुवा हो, भुगनी हो समेत अन्य पकड़ लिए गये. इसके बाद 1 जनवरी, 1838 को पोटो हो, बुड़ई हो तथा नारा हो को जगन्नाथपुर में बरगद पेड़ पर फांसी दी गयी, जबकि अगले दिन बोरा हो तथा पंडुवा हो को सेरेंगसिया घाटी में फांसी दी गयी. वहीं, 79 हो वीर लड़ाकों को विभिन्न आरोपों में जेल भेज दिया गया.
विधायक सुखराम उरांव ने कहा कि झारखंड अलग राज्य आंदोलन और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कोल्हान में कई ऐसे यादगार उलगुलान हुए हैं, जिसका दस्तावेज बनाये जाने की जरूरत है. पोटो हो के नेतृत्व में सेरेंगसिया में लड़ी गयी लड़ाई इसलिए अहम है कि इसके बाद ही मानकी- मुंडा शासन व्यवस्था की बुनियाद पड़ी. विल्किंसन रूल्स कोल्हान के लिए लागू हुआ. इतिहास नहीं जानने के कारण बार- बार विल्किंसन रूल्स के साथ खिलवाड़ होता आया है. स्थानीय शासन व्यवस्था को अनेकों बार हाशिये में भेजने की कोशिश की गयी है. इसी तरह झारखंड अलग राज्य का सबसे पहला गोलीकांड खरसावां में हुआ था. जहां से अलग राज्य की लड़ाई जोर पकड़ी थी. इसलिए पाठ्यक्रम में ये दोनों इतिहास शामिल कर आने वाली नस्ल को झारखंड के सही इतिहास की जानकारी दी जानी चाहिए. हम अपने बच्चों को अगर स्थानीय इतिहास नहीं बतायेंगे तो फिर कौन बतायेगा.
Posted By : Samir Ranjan.