संवाददाता, चाईबासाचाईबासा में करमा पर्व को लेकर शुक्रवार को उरांव समाज के हर घर में नये अन्न का सेवन किया जायेगा. इसके बाद 14 सितंबर को करमा पर्व मनाया जायेगा. इस दिन पूजा-अर्चना की जायेगी. इसके बाद 15 सितंबर को करम डाल का विसर्जन होगा. जिसकी तैयारियां जोरों पर हैं. समाज के लोगों में करमा पर्व को लेकर घरों की साफ-सफाई की जा रही है. घरों का रंग-रोगन भी किया गया है. इसके साथ ही यह पर्व क्यों मनाया जाता है, इस पर चर्चा भी की जा रही है.
उरांव समुदाय का महान धार्मिक पर्व
जानकारी के अनुसार, करमा पूजा उरांव समुदाय का एक महान धार्मिक त्योहार है. यह त्योहार कुड़मी, भूमिज, खड़िया, कोरबा, कुरमाली आदि समाज में भी मनाया जाता है. यह त्योहार भादो महीने के शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन सर्वत्र काफी धूमधाम से मनाया जाता है. भादो महीने तक खेतों में धान की नयी फसल तैयार हो जाती है. फसल के नावागमन का स्वागत करते हुए भी लोग नाचते-गाते हुए करम त्योहार की खुशियां मनाते हैं. इस करम त्योहार में बहने अपने भाई की दीर्घायु व सुख-समृद्धि की कामना करती है. परंपरा है कि भादो एकादशी के पांच दिन पूर्व कुंवारी लड़कियां नदी से टोकरी में बालू लाकर पुजारी पहन के घर तड़के ही जावा (चना, मकई, जौ, गेहूं व उड़द) पांच दिनों तक रोपती हैं. पुराने नियम से उसे जावा को धूवन-धूप देकर नाच-गाकर सेवा किया जाता है. इन पांच दिनों में घर भर के साथ-साथ लड़कियों का भी स्वच्छता पर विशेष ख्याल रखा जाता है.सात कुंवारे लड़के उपवास रख जाते हैं करम डाल लाने
भादो एकादशी के दिन पांच, सात कुंवारे लड़के उपवास रखकर करम डाल काटने जाते हैं, जिस पेड़ से यह डाल काटी जाती है. उससे पहले क्षमायाचना की जाती है, विधिवत पूजा अनुष्ठान कर तीन डालियों को काटा जाता है. डालियों को पीछे से पहुंची कुंवारी लड़कियों के हाथों में सौंपा जाता है. इसके बाद पूरी एकत्रित भीड़ उस करम देव (डाल) को रीझ-ढंग से नाचते-गाते हुए पूजा स्थल अखाड़े तक लाती है और उसे स्थापित किया जाता है. दूसरे दिन फिर उसी हर्षोल्लास के साथ नियम करते हुए नाचते-गाते हुए करम राजा (करम डाल) को विसर्जन किया जाता है.कर्म ही धर्म है और धर्म ही कर्म का मिलता है संदेश
लोककथा में किंवदंती है कि करम डाल की पूजा अर्चना करने से गांव-घरों में खुशहाली आती है. जो कर्मा-धर्मा के दो भाइयों की पूजा- अर्चना जुड़ा है. प्रकृति पर्व करमा त्योहार का संदेश यह है कि कर्म ही धर्म है और धर्म ही कर्म है. आध्यात्मिक व धार्मिक मार्ग को अपनाते हुए अच्छे कर्म से जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त की जा सकती है. प्रकृति की पूजा एवं उनकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है.
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