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मजदूर दिवस विशेष: झारखंड में गिग वर्कर्स के लिए लागू नहीं है कोई योजना, सरकार को कामगारों की संख्या तक की जानकारी नहीं

झारखंड में गिग वर्कर्स के लिए कोई योजना लागू नहीं है. स्थिति ये है कि सरकार को कामगारों की संख्या तक की जानकारी नहीं है. इनकी आधिकारिक गिनती नहीं की गयी है.

रांची, विवेक चंद्र: स्विगी, जोमेटो, ओला, उबर, बिग बास्केट जैसी कंपनियों से जुड़े ड्राइवर, डिलीवरी बॉय और कामगारों को गिग वर्कर का नाम दिया गया है. झारखंड में अब तक गिग वर्कर्स का सर्वे या आधिकारिक गिनती नहीं की गयी है. श्रम विभाग के सूत्रों के मुताबिक राज्य में लगभग एक लाख गिग वर्कर्स हैं. आश्चर्यजनक रूप से गिग वर्कर्स के लिए राज्य सरकार ने अब तक कोई नियम नहीं बनाया है. गिग वर्कर्स के लिए न तो न्यूनतम मानदेय निर्धारित हैं और ना ही उनको श्रमिकों को दी जाने वाली कोई भी बुनियादी सुविधा उपलब्ध करायी गयी हैं.

गिग वर्कर्स को किसी तरह की कानूनी सुरक्षा नहीं
राज्य में गिग वर्कर्स को आम श्रमिकों की तरह नियोक्ता कंपनी से न्यूनतम वेतन, एक्सीडेंट बीमा, ईएसआई, स्वास्थ्य और पीएफ जैसी किसी तरह की कानूनी सुरक्षा फिलहाल उपलब्ध नहीं है. वर्ष 2020 में भारत सरकार ने 44 श्रम कानूनों को मिलाकर सामाजिक सुरक्षा कोड के चार खंड जारी किए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अगस्त 2022 में श्रम मंत्रियों के सम्मेलन में गिग वर्कर्स को भी सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने की बात कही थी. बावजूद इसके गिग वर्कर्स के लिए अब तक धरातल पर बहुत कुछ नहीं किया जा सका है.

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संसद में नहीं बना नियम, हो रहा है शोषण
श्रम मंत्रालय के विजन 2047 के अनुसार ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्लेटफार्म्स से जुड़े गिग वर्कर्स के काम के घंटे, कार्य स्थिति, स्वास्थ्य सुरक्षा और न्यूनतम आय के लिए नियम बनाया जाना है. इसके लिए केंद्रीय श्रम सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाने के बाद सामाजिक सुरक्षा फंड का सृजन भी करने की योजना है. लेकिन, संसद से अब तक इसके लिए कोई कानून नहीं बनाया जा सका है. जिसके फलस्वरूप देश के लगभग 80 लाख गिग वर्कर्स बिना नियम-कानून के मजदूरी कर शोषण का शिकार हो रहे है.

झारखंड में गिग वर्कर्स के लिए बनाया जा रहा है कानून
झारखंड में गिग वर्कर्स के लिए नियम तैयार करने पर काम शुरू हुआ है. श्रम विभाग द्वारा इसकी पहल की गयी है. श्रमायुक्त की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर गिग वर्कर्स को न्यूनतम सुविधाएं देने की प्रक्रिया आरंभ की गयी है. कमेटी में ट्रेड यूनियन व झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया गया है. यह कमेटी गिग वर्कर्स के लिए न्यूनतम मानदेय का निर्धारण भी करेगी. यहां यह उल्लेखनीय है कि देश भर में गिग वर्कर्स की कमोबेश यही स्थिति है. गिग वर्कर्स की शिकायत के समाधान के लिए कोई सिस्टम नहीं बना है. हालांकि, राजस्थान और कर्नाटक में गिग वर्कर्स के लिए कानून बनाया गया है, परंतु उन दोनों राज्यों में भी कानून पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है.

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