Loading election data...

मजदूर दिवस विशेष: मजदूरों के हक के लिए कर रहे आवाज बुलंद, बिखेर रहे उनके चेहरे पर मुस्कान

जमशेदपुर में ऐसे कई शख्स हैं, जो मजदूरों के हक के लिए आवाज बुलंद करते हैं और उनके चेहरे पर मुस्कान बिखेर रहे हैं. नि:स्वार्थभाव से कई लोग ऐसा कर रहे हैं.

By Guru Swarup Mishra | April 30, 2024 11:50 PM
an image

जमशेदपुर, अशोक झा: भारत सहित दुनिया के सभी देशों में एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य उस दिन मजदूरों की भलाई के लिए काम करने व मजदूरों में उनके अधिकारों के प्रति जागृति लाना होता है. सरकार की ओर से भले ही मजदूरों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हों, मगर हकीकत यह है कि आज भी कई ठेका मजदूर हैं, जिनकी आवाज मजदूर संगठनों या राज्य की सरकार तक भी नहीं पहुंच पाती. अगर पहुंचती भी है, तो जरूरी निर्देश मिलने के बावजूद ठेका प्रबंधन चुप्पी साधे रहता है और कोई कार्रवाई नहीं होती. देश का मजदूर वर्ग आज भी अत्यंत ही दयनीय स्थिति में रह रहा है. शहर में भी गरीब, शोषित, पीड़ित और मजदूर वर्ग को उनका हक दिलाने में कई लोग नि:स्वार्थ भाव से जुटे हैं. इन्होंने कई मामलों में मजदूरों को हक दिलाकर उनके चेहरे पर मुस्कान लायी है.

अखिलेश श्रीवास्तव ने मजदूरों का केस लड़ने की नहीं ली फीस
अपनी वकालत के जरिये श्रमिकों को उनका हक दिलाने का काम शहर के वरीय अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव साल 2014 से कर रहे हैं. उन्हाेंने टायो और इंकैब के अलावे सैकड़ों मजदूरों का केस लड़ने के लिए फीस नहीं ली. टाटा मोटर्स के 2700 बाइ सिक्स (अस्थायी) कर्मचारियों के स्थायीकरण मामले में झारखंड हाइकोर्ट में याचिकाकर्ता अफसर जावेद की ओर से कोर्ट में बहस की. टायो और इंकैब के अलावे उन्होंने टाटा मोटर्स, टाटा स्टील से हटाये गये मजदूरों की तरफ से उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय में बहस की. बहुत से मामले उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में वर्तमान में विचाराधीन हैं. इसके अलावा झारखंड के बोकारो, रामगढ़ आदि इलाकों में कुड़मी और दूसरे आदिवासियों की जमीन पर अवैध कब्जा, मुआवजा, नौकरी आदि नहीं देने के मामले को लेकर रांची उच्च न्यायालय में याचिका दायर किये हुए हैं. जिनमें वे कुड़मियों और आदिवासियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. साल 2014 में कोलकाता हाइकोर्ट का सदस्य बने अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में प्रैक्टिस शुरू की. इससे पूर्व वे साल 1995 से 2004 तक वे कॉस्ट और मैनेजमेंट अकाउंटेंट के रूप में कुछ कंपनियों में काम किया और अकाउंट्स, फाइनेंस और टैक्स की प्रैक्टिस की. साल 2004 से 2013 तक कंपनी सेक्रेटरी के रूप में कंपनी लॉ बोर्ड, उत्पाद शुल्क, सेवा कर एवं सीमा शुल्क न्यायाधिकरण में प्रैक्टिस की और कॉर्पोरेट कंसल्टेंट के रूप में काम किया. वर्तमान में वे दिल्ली, कोलकाता, रांची और गुवाहटी हाइकोर्ट में वकालत कर रहे हैं.

Also Read: मजदूर दिवस विशेष: गिग वर्कर्स अर्थव्यवस्था में निभा रहे अहम भूमिका, लेकिन नहीं मिलती उचित मजदूरी

समित कुमार कर ने सिलिकोसिस मरीजों को दिलाये 13 करोड़ 52 लाख का मुआवजा
सोनारी निवासी 69 वर्षीय समित कुमार कर साल 2003 से ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ एसोसिएशन ऑफ झारखंड के बैनर तले झारखंड और पश्चिम बंगाल में सिलिकोसिस मरीजों के लिए काम कर रहे हैं. उनका मिशन सिलिकोसिस के मरीजों की पहचान करके और उन्हें या उनके परिवारों (अगर मरीज की मृत्यु हो गयी है) को सरकार से मुआवजा दिलाने में मदद करना है. अब तक समित कुमार कर ने सिलिकोसिस के मरीज और मरने वाले श्रमिकों के 100 रिश्तेदारों की मदद कर सरकार से मुआवजा दिला चुके हैं. झारखंड के 50 सिलिकोसिस मरीजों को 2 करोड़ 10 लाख, पश्चिम बंगाल में सिलिकोसिस से मरने वाले 22 श्रमिकों के परिवारों को 4-4 लाख रुपये का मुआवजा दिलाया और सिलिकोसिस से प्रभावित 30 श्रमिकों को 2-2 लाख रुपये का मुआवजा दिया. इसके अतिरिक्त, पेंशन और कल्याण योजनाओं के लिए 10 करोड़ रुपये आवंटित किये गये. झारखंड और पश्चिम बंगाल में अब तक कुल 13 करोड़ 52 लाख रुपये मुआवजा दिला चुके हैं. इसके अलावा,सिलिकोसिस रोगी के इलाज के लिए दोनों राज्यों में एक दशक में दानदाताओं से 88 लाख रुपये श्रमिकों को दिलाने का कार्य किया. समित कुमार के दादा श्यामाचरण कर की 1904 से 1916 के बीच जापान में एक ग्लास फैक्ट्री थी. वहां कई कर्मचारी सिलिकोसिस से प्रभावित मिले थे. उनके पिता शैलेश कुमार को इस बीमारी के बारे में पता था और उन्होंने ही कैर को ऑक्यूपेशनल डिजीज से जूझ रहे मरीजों के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया. जमशेदपुर में जन्मे समित कुमार कर मूल रूप से त्रिपुरा के रहने वाले हैं. सिलिकोसिस फेफड़ों की एक अपरिवर्तनीय बीमारी है, जो सिलिका क्रिस्टल से भरी धूल के सांस लेने से उत्पन्न होती है. कारखानों, खदानों और निर्माण स्थलों जैसे धूल-प्रवण वातावरण में श्रमिकों को बीमारी विकसित होने का काफी खतरा होता है.

अंबुज कुमार ठाकुर अपनी नौकरी गंवा, मजदूरों को दिला रहे हक
साल 2003 में लाफार्ज सीमेंट में सीमेंट वेज बोर्ड को लागू करने को लेकर 666 दिन तक लंबा आंदोलन चला. आंदोलन की शुरुआत करने वाले मजदूर नेता अंबुज कुमार ठाकुर को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी और जेल जाना पड़ा. बावजूद उन्होंने मजदूरों के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद रखी. फिलहाल यह मामला हाइकोर्ट में विचाराधीन है. आंदोलन का परिणाम रहा कि प्रत्येक साल मजदूरों को अपग्रेड किया जा रहा है. आज भी अंबुज ठाकुर मजदूरों को उनका अधिकार दिलाने के लिए कार्य कर रहे हैं. सैकड़ों मजदूरों को उनके अधिकारों को सुनिश्चित कराने के लिए प्रयत्नशील जमशेदपुर की सभी कंपनियों में वर्षों से ठेका में काम करने वाले मजदूरों का वेतन बढ़ाने से लेकर उनके अधिकारों की लड़ाई जारी रखे हुए हैं. पीएफ, इएसआइ, फाइनल सेटलमेंट की राशि नहीं मिलने वाले मजदूरों के मामले को श्रम विभाग तक ले जा रहे हैं. जुलाई 2022 में, टाटा पावर के ठेका मजदूरों को दो महीने से मानदेय न मिलने के विरोध में भी प्रदर्शन किया गया था. इसके बाद दिसंबर 2023 में तीन महीने से वेतन न मिलने के विरोध में अंबुज कुमार ठाकुर के नेतृत्व में मजदूरों ने टाटा पावर गेट के सामने प्रदर्शन किया, जिसके बाद मानदेय की राशि मिली. वर्तमान में एआइटीयूसी के राज्य सचिव सह जिला उप महासचिव के साथ ही सीपीआइ के जिला सचिव की भी जिम्मेदारी संभाल रहे अंबुज ठाकुर विभिन्न मजदूर संगठनों से जुड़े हुए हैं. उनका प्रयास है कि मजदूरों की मजदूरी प्रतिमाह 25 हजार रुपये हो.

राजीव ठाकुर मजदूर आंदोलन में जेल गये, लौटे तो दिला रहे उनका हक
शहर के सबसे कम उम्र के मजदूर नेता की पहचान बनाने वाले राजीव ठाकुर 19 साल की उम्र से मजदूरों के हक के लिए आवाज बुलंद करने लगे. गोविंदपुर स्थित स्टील स्ट्रिप्स व्हील्स लिमिटेड कंपनी में साल 2013 में आंदोलन के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा. जेल से निकलने के बाद मजदूर हित के कार्य एवं मजदूर आंदोलन के कार्यों से प्रभावित होकर इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजीव रेड्डी ने राजीव पांडेय को राष्ट्रीय युवा इंटक में राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी सौंपी. तब से वे मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी, कार्य श्रेणी के आधार पर मासिक वेतन, वार्षिक छुट्टी का पैसा, ग्रेच्युटी का लाभ, ओवर टाइम का डबल पेमेंट, बैंक के माध्यम से वेतन का भुगतान, पहचान पत्र, एंप्लॉयमेंट कार्ड, जबरन छंटनी पर रोक, फाइनल सेटलमेंट और इपीएफ, इएसआइ की सुविधा से वंचित मजदूरों को कानूनी मदद दिलाने के साथ सड़क पर भी आंदोलन कर रहे हैं. जमशेदपुर के गोविंदपुर से लेकर सरायकेला जिला के कोलाबीरा तक की कंपनियों के सैकड़ों मजदूरों को उनका हक दिला चुके हैं. कोरोना संक्रमण के दौरान भी मजदूरों को लॉकडाउन में वेतन भुगतान दिलाने के लिए आंदोलन करने पर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया. आज भी वे चौक-चौराहा पर शिविर का आयोजन कर असंगठित कर्मचारियों को लेबर कार्ड के माध्यम से को बेल्चा, कुदाल, गैंता, साइकिल, सिलाई मशीन के अलावा अन्य सरकारी सुविधा का लाभ श्रम विभाग के सहयोग से दिला रहे हैं.

विष्णु कुमार कामत सूचना के अधिकार से कर रहे मजदूरों की मदद
सिदगोड़ा निवासी विष्णु कुमार कामत मजदूरों को उनका हक दिलाने के लिए पिछले तीन दशक से काम कर रहे हैं. कानूनी मदद दिलाने के लिए वे सूचना अधिकार अधिनियम का सहारा लेते हैं. मूल रूप से बिहार के सहरसा निवासी 62 वर्षीय विष्णु कामत युवा कांग्रेस, लेबर सेल सहित शहर के विभिन्न संगठनों से जुड़े हुए हैं. अब तक वे सैकड़ों मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी, फाइनल सेटलमेंट, पीएफ, इएसआइ, ओवर टाइम आदि सुविधा दिला चुके हैं. मजदूरों के पक्ष में वे नि:शुल्क आवेदन लिखने, अधिकारियों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाते हैं. विभिन्न कंपनियों के मजदूरों को जब न्याय नहीं मिलता है, तो वे विष्णु कामत से मदद मांगते हैं, जिनके लिए वे सदैव तत्पर रहते हैं. विष्णु कामत बताते हैं कि टाटा मोटर्स की कैंटीन में वे कार्यरत थे. कर्मचारियों के पक्ष में और ठेका प्रथा के विरोध में आवाज उठाने पर कंपनी प्रबंधन ने साल 1977 में नौकरी से निकाल दिया. फैसले के खिलाफ उनका आंदोलन आज भी जारी है. फिलहाल उनका मामला हाइकोर्ट में विचाराधीन है. तब से वे मजदूरों को उनका हक दिलाने के लिए लगातार आवाज उठा रहे हैं. संयुक्त बिहार- झारखंड में वे यूथ कांग्रेस, लेबर सेल के अध्यक्ष, बिहार प्रदेश यूथ कांग्रेस के सचिव आदि पदों पर रह चुके हैं.

शैलेंद्र कुमार मैत्री मजदूरों को कानूनी मदद में करते हैं सहयोग
16 साल की उम्र में झारखंड अलग राज्य के आंदोलन में शामिल होने वाले शैलेंद्र कुमार मैत्री शहर के मजदूरों को उनका हक-अधिकार दिलाने के लिए संघर्षरत हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा की इकाई झारखंड श्रमिक संघ के केंद्रीय महासचिव शैलेंद्र कुमार मैत्री मजदूरों को उनका हक दिलाने में कानूनी मदद प्रदान करते हैं. अब तक हजारों मजदूरों को उनका हक दिला चुके हैं, जिसमें न्यूनतम मजदूरी, बोनस, पीएफ, इएसआइ की सुविधा, ओवर टाइम आदि शामिल है. इसके लिए वे किसी तरह का शुल्क नहीं लेते हैं. शैलेंद्र बताते हैं कि अलग झारखंड राज्य की लड़ाई के दौरान उन्हें मजदूर आंदोलन में आना पड़ा. साल 1975 में अलग राज्य की लड़ाई में उनको शहीद निर्मल महतो के नेतृत्व में तिहाड़ जेल जाना पड़ा. साल 1980 के दौर में मजदूरों का शोषण होता था. खदानों में आदिवासियों, मूलवासियों की स्थिति सबसे ज्यादा खराब थी. राज मिस्त्री को उस दौर में 50 से 70 रुपये मिलते थे, जिनके खिलाफ उन्होंने आवाज उठायी. टेल्को सहित शहर की कई कंपनियों की कैंटीन में कार्यरत मजदूरों के लिए आंदोलन किया. स्थायी प्रवृत्ति के कार्य अस्थायी कर्मचारियों से कराने का विरोध किया.

Also Read: मजदूर दिवस विशेष: लोहरदगा में निबंधित मनरेगा मजदूरों को भी नहीं मिल पा रहा काम, ना ही बेरोजगारी भत्ता, पलायन को हैं मजबूर

Exit mobile version