36 साल पहले की वो मनहूस रात, जब हजारों लोग नींद से जागे ही नहीं, जानिये ऐसा क्या हुआ था उस रात

इस घटना को बीते 36 साल हो चुके है लेकिन आज भी दर्द और बेबसी की वही तस्वीर लोगों की आंखों में दिखाई देती है, जिन्होंने उस रात अपनों को खो दिया था.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 3, 2020 12:10 PM

आज से 36 साल पहले की उस खौफनाक रात को याद कर कईयों की रुह आज भी कांप जाती है. एक ऐसी मनहूस रात जिसने महज कुछ घंटों में हजारों जिंदगियों को मौत की नींद सुला दिया. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में इस घटना को बीते 36 साल हो चुके है लेकिन आज भी दर्द और बेबसी की वही तस्वीर लोगों की आंखों में दिखाई देती है, जिन्होंने उस रात अपनों को खो दिया था. 1984 में 2 और 3 दिसंबर की रात जहरीली गैस के रिसाव ने सो रहे हजारों लोगों की जान ले ली थी.

भोपाल गैस कांड में मिथाइल आइसो साइनाइट जिसे मिक गैस के नाम से भी जाना जाता है. इस जहरीली गैस के रिसाव ने हजारों जिंदगियां लील ली. मिक गैस का उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था. लेकिन हादसे वाली रात चैंबर फटने से यह गैस हवा में घुल गई जिससे हजारों लोग मारे गये. इस गैसे से मरने वालों की संख्या करीब 15 हजार बताई गई है. जबकि, मध्य प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार इस गैस त्रासदी से कुल 5,74,376 लोग प्रभावित हुए थे. वहीं, हजारों लोग इसके प्रभाव में आकर बीमारी और अंधेपन के शिकार हो गये थे.

बताया जाता है कि यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से करीब 40 टन मिक गैस का रिसाव हुआ था. दरअसल, टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसो साइनेट गैस पानी से मिल गई थी. इस कारण जो रासायनिक प्रतिक्रिया हुई उससे टैंक में दबाव बना और टैंक के ढक्कन खुल गये. टैंक खुलने के कुछ ही देर के अंदर जहरीली गैस का रिसाव आसमान में हो गया और देखते ही देखते हजारों लोग उस गैस के प्रभाव में आकर मौत की नींद सो गये.

इधर, भोपाल गैस कांड में पीड़ितों को मुआवजा तो मिला लेकिन, लोग ज्यादा मुआवजे की मांग कर रहे हैं. 2010 में केंद्र सरकार ने सुधार याचिका लगाकर अतिरिक्त मुआवजा 7 करोड़ रुपये से ज्यादा की मांग की थी. फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. वहीं, इस मामले में भोपाल की एक अदालत ने 2010 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के सात अधिकारियों को लापरवाही के मामले में दो साल की सजा सुनाई थी.

भोपाल गैस हादसे के बीते आज 36 साल हो चुके हैं, लेकिन गुजरते वक्त के साथ त्रासदी के शिकार हुए लोगों की पीड़ा बढ़ती गई. साल गुजरे, समय बदला, सरकारें बदली लेकिन तीन दशकों से ज्यादा का भी समय गुजरने के बाद भी पीढ़ितों की तकदीर नहीं बदली. इस पादसे से जो लोग बच गये उन्हें जीवन भर इसकी पीड़ा सताती रहेगी औऱ जडो चले गये उनकी याद टीस बनकर परिजनों में उठती रहती है.

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Posted by: Pritish Sahay

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