MP News: वैज्ञानिकों ने मध्य प्रदेश के धार जिले में सबसे बड़े ज्ञात डायनासोरों में से एक टाइटेनोसॉर के 256 जीवाश्म अंडे पाए हैं, जो विलुप्त प्रजातियों के अंडे देने के पैटर्न के बीच आधुनिक समय के मगरमच्छों और पक्षियों के बीच समानताएं दर्शाते हैं. बताया जाता है कि टाइटनोसॉर विलुप्त होने से ठीक पहले कभी नर्मदा घाटी में घूमा करते थे.
शोधकर्ताओं ने नर्मदा घाटी के लामेटा फॉर्मेशन में अपना फील्ड वर्क को अंजाम दिया था. इस दौरान, उन्हें टाइटनोसॉरस से संबंधित कुल 256 जीवाश्म अंडों वाले 92 नेस्टिंग साइट पता चला. आपको बता दें कि टाइटनोसॉरस ग्रह पर घूमने वाले सबसे बड़े डायनासोरों में से थे. लामेटा फॉर्मेशन मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में एक तलछटी भूगर्भीय बेल्ट है. इस क्षेत्र को लगभग 101 से 66 मिलियन वर्ष पूर्व तक फैले लेट क्रेटेशियस पीरियड के जीवाश्म प्राप्त करने के लिए जाना जाता है.
इससे पहले, शोधकर्ताओं ने मध्य प्रदेश के धार जिले में दिसंबर 2017, जनवरी 2018 और मार्च, 2020 में बड़े स्तर पर फील्ड वर्क किया था. उन्होंने अपने शोध से जुड़े आकड़ों को अखाड़ा, ढोलिया रायपुरिया, झाबुआ, जमनियापुरा और पाडल्या से इक्ट्ठा किया. हालांकि, उनका यह सफर आसान नहीं था. इस दौरान शोधकर्ताओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. इसमें अखाड़ा के रहने वाले लोगों का विरोध भी शामिल था, जो टीम को अपना फील्ड वर्क पूरा नहीं करने दे रहे थे. टीम ने इन पांच इलाकों से कुल 92 अंडों के क्लच को खोज निकाला और छह अलग-अलग ओएसिसिस अंडे-प्रजातियों की पहचान की.
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में लिखा है कि यह भी संभव है, डायनासोर की हड्डियां कहीं दबी पड़ी हो और किसी दिन उन्हें खोज लिया जाए. शोधकर्ताओं को ऐसे कई अंडे भी मिले, जिनकी ऊपरी सतह गायब थी. संभावना है कि इस जगह से बच्चा इस कवच से बाहर निकला हो. शोध में शोधकर्ताओं को अंडे में अंडे का एक दुर्लभ मामला भी मिला है. अंडों में पाई जाने वाली पैथोलोजी इस बात की ओर इशारा करती है कि टिटानोसॉर सरूपोड्स में एक प्रजनन शरीर विज्ञान था, जो पक्षियों के समानांतर था. उन्होंने संभवतः अपने अंडे क्रमबद्ध तरीके से रखे जैसा कि आधुनिक पक्षियों में देखा जाता है.
हैच करने के लिए रखे गए कुछ अंडे काफी गहराई में भी दबे हुए मिले थे. शोधकर्ताओं का कहना है कि संभव है, इस क्षेत्र में पुराने समय में एक नदी बहती हो. कुछ अंडे तलछट में भी दिए गए थे. इस जगह को देखने में ऐसे लगता है जैसे यह कभी छोटा तालाब या झील रही होगी. कभी-कभी, कुछ अंडे इन जल निकायों में पूरी तरह से डूब गए होंगे जिसकी वजह से अंडो की हैचिंग नहीं हो पाई.
दिल्ली विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर जीवीआर प्रसाद ने कहा कि अंडे से यह भी पता चलता है कि डायनासोर काफी तनाव में थे. ऐसी घटना तब होता है जब पुराने के ऊपर एक नया अंडा बनता है, जो किसी तरह नहीं रखा जाता है और अंडाशय में वापस आ जाता है. यह बाहरी तनाव के कारण हो सकता है. प्रोफेसर प्रसाद ने कहा कि अध्ययन से इस बात के पुख्ता सबूत मिलते हैं कि डायनासोर क्लैड के अंतर्गत आते हैं.