मध्यप्रदेश : कमलनाथ और दिग्विजय के पुत्रमोह में मात्र 460 दिन बाद हाथ से निकल गयी 15 साल बाद मिली सत्ता
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भोपाल : मध्यप्रदेश में 15 साल के लंबे इंतजार के बाद 17 दिसंबर, 2018 को कांग्रेस सरकार सत्ता में आयी. कमलनाथ मुख्यमंत्री बने. महज 460 दिन के बाद 20 मार्च, 2020 को कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पुत्रमोह में 15 साल बाद सत्ता में लौटी सरकार की बलि चढ़ गयी.
वर्ष 2018 में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत बहुत बड़ी नहीं थी, लेकिन उसका राजनीतिक महत्व था. प्रतीकात्मक महत्व था, क्योंकि नरेंद्र मोदी के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सबसे सफल मुख्यमंत्रियों में शुमार शिवराज सिंह चौहान का किला ध्वस्त हुआ था.
मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस की कमान नहीं छोड़ी. वह प्रदेश अध्यक्ष भी बने रहे. कहते हैं कि यही उनकी सत्ता के पतन का कारण बनी. अगर उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ दिया होता और ज्योतिरादित्य सिंधिया को अध्यक्ष बना दिया जाता, तो ग्वालियर के महाराज पार्टी से अलग नहीं होते. न विधायक टूटते, न कमलनाथ और कांग्रेस की सरकार जाती.
कमलनाथ की सरकार बनने से पहले कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक फोटो पोस्ट किया था. इसमें उन्होंने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को योद्धा (Warriors) बताया था. सूत्र बताते हैं कि उस समय राहुल गांधी ने आपसी संबंधों के चलते किसी तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया को शांत कर लिया था. बाद में जब कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गयी, तो उन्होंने ज्योतिरादित्य को दरकिनार करना शुरू कर दिया.
यहां तक कि सिंधिया के कोटे के विधायकों की पार्टी में सुनवाई भी बंद हो गयी. उन विधायकों के क्षेत्र में सरकार ध्यान नहीं दे रही थी. अधिकारी भी उन विधायकों की बात नहीं सुन रहे थे. सिंधिया को सबसे ज्यादा यही बात अखरने लगी.
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को नयी जिम्मेदारी सौंपी. प्रियंका पूर्वी उत्तर प्रदेश, तो सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया गया. तब इसे राहुल का मास्टर स्ट्रोक माना गया था, लेकिन रिजल्ट? राहुल गांधी खुद अपनी अमेठी सीट हार गये.
तब जानकारों ने कहा कि कमलनाथ के कहने पर ही सिंधिया को मध्यप्रदेश से बाहर करने के लिए उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी. ज्योतिरादित्य के लिए यह टफ टास्क था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत सालों से खराब थी. कोई चमत्कार ही कांग्रेस में जान फूंक सकती थी. इसलिए सिंधिया को फेल करने के लिए ही उत्तर प्रदेश भेजा गया.
उत्तर प्रदेश से लौटने के बाद सिंधिया ने मध्यप्रदेश पर फोकस किया. वचनपत्र को लागू कराने के लिए छोटी-छोटी सभाएं करने लगे. एक सभा में सिंधिया ने किसानों के लिए सड़क पर उतरने की बात कही, तो कमलनाथ ने कहा, ‘उन्हें सड़क पर उतरना है, तो उतर जायें.’ यह बात सिंधिया को चुभ गयी और उसके बाद से वह सरकार गिराने की रणनीति पर काम करने लगे.
ग्वालियर के महाराजा को बड़ोदरा की महारानी का साथ मिला. भाजपा प्रवक्ता जफर इस्लाम के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं देश के गृह मंत्री अमित शाह तक उनकी बात पहुंची. कहते हैं कि पहले भाजपा ने सिंधिया को पार्टी में लेने में दिलचस्पी नहीं दिखायी, लेकिन कमलनाथ सरकार गिराने की शर्त पर उन्हें भाजपा में इंट्री मिल गयी.
नरेंद्र मोदी से मिलने के बाद ज्योतिरादित्य ने सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेजा. इससे पहले खबर आयी थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को सोनिया गांधी और राहुल गांधी समय नहीं दे रहे थे. इसलिए सिंधिया ने कांग्रेस को बाय-बाय बोल दिया. कहते हैं कि एक गेमप्लान के तहत सिंधिया को बगावत के लिए मजबूर किया गया.
मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह चाहते, तो सरकार नहीं गिरती. यदि सरकार पर कोई संकट था भी, तो उसे दूर किया जा सकता था. अगर पहली वरीयता वाली राज्यसभा सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिल जाती, तो वह बागी न होते. लेकिन दिग्विजय सिंह की राज्यसभा जाने की चाहत ने ऐसा नहीं होने दिया. कहा तो यह भी जा रहा है कि इसी दिन के लिए दिग्विजय ने सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनने दिया.
सिंधिया न मुख्यमंत्री बन पाये, न प्रदेश अध्यक्ष. अब सिंधिया को लगा कि राज्यसभा के रास्ते जाकर दिल्ली की राजनीात फिर से की जाये. मध्यप्रदेश में कुल तीन राज्यसभा सीटों का 26 मार्च को चुनाव होना है. इसमें प्रथम वरीयता के वोटों से कांग्रेस और भाजपा की एक-एक सीट पर जीत तय है. लड़ाई तीसरी सीट पर भी है.
बेटों को आगे बढ़ाने का प्लान
दरअसल, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों उम्र के कारण सियासत के आखिरी दौर में हैं. दोनों नेताओं ने अपने-अपने बेटे को भले ही मध्यप्रदेश की राजनीति में स्थापित कर दिया है, मगर उनमें असुरक्षा का भी भाव है. कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ को अपनी परंपरागत छिंदवाड़ा सीट से सांसद बनाकर राजनीतिक वारिस बना चुके हैं. दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह भी कमलनाथ सरकार में मंत्री थे.
सूत्र बताते हैं कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के रिटायर होने के बाद सिंधिया का रास्ता मध्यप्रदेश में हमेशा के लिए खुल जाता. इसका असर दोनों नेताओं के बेटों की आगे की महत्वाकांक्षाओं पर पड़ सकता था. इसलिए, आने वाले दिनों को देखते हुए दिग्विजय और कमलनाथ ने सिंधिया की विदाई की पटकथा रच दी. नतीजा यह हुआ कि सिंधिया कांग्रेस छोड़कर चले गये, तो कमलनाथ को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी.