चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में बढ़ गई कड़कनाथ की मांग, महेंद्र सिंह धोनी के फार्म हाउस में है ये खास मुर्गा
झाबुआ मूल के कड़कनाथ मुर्गे को स्थानीय जुबान में 'कालामासी' कहा जाता है. इसकी त्वचा और पंखों से लेकर मांस तक का रंग काला होता है. धोनी के फार्म हाउस में भी है ये खास मुर्गा, जानें इसकी खासियत
झाबुआ : मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों के पहले प्रदेश में एक चीज की चर्चा जोरों पर हो रही है. जी हां…वो कुछ और नहीं बल्कि कड़कनाथ मुर्गा है जिसे अपने फार्म में क्रिकेटर और रांची के राजकुमार महेंद्र सिंह धोनी भी रखे हुए हैं. धोनी ने जब प्रदेश के झाबुआ से इसे मंगवाया था तो इसकी चर्चा पूरे देश में हुई थी. आइए अब आपको आगे की खबर बताते हैं. दरअसल, मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गे की मांग बढ़ने के साथ ही इसके दामों में इजाफा दर्ज किया गया है. काले रंग के पौष्टिक मांस के लिए मशहूर इस मुर्गा प्रजाति को जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स (जीआई) का तमगा हासिल है. झाबुआ के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के वैज्ञानिक डॉ. चंदन कुमार ने बताया कि ठंड के मौसम की शुरुआत हो गई है और चुनावों का भी समय है. ऐसे में कड़कनाथ की मांग 30 से 40 प्रतिशत बढ़ गई है. उन्होंने बताया कि देश भर के पोल्ट्री फार्म संचालक कड़कनाथ मुर्गे की शुद्ध नस्ल के चूजों के लिए झाबुआ का रुख करते हैं.
कड़कनाथ का दाम कितना बढ़ा
इस नस्ल की शुद्धता बचाने की दिशा में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘‘सारा सेवा संस्थान समिति’’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सुधांशु शेखर ने बताया कि उनकी संस्था के चलाए जाने वाले दो किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के पोल्ट्री फार्म में चुनावों के दौरान कारोबार बढ़ गया है. उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान मांग में उछाल से कड़कनाथ के एक वयस्क मुर्गे का दाम बढ़कर 1,200 से 1,500 रुपये के बीच पहुंच गया है जो पहले 800 से 1,200 रुपये के बीच बिक रहा था. मांग बढ़ने के कारण हमें इसकी आपूर्ति तेज करनी पड़ी है. झाबुआ में भील आदिवासियों की बड़ी आबादी रहती है जहां मुर्गा आहार और अर्थव्यवस्था का अविभाज्य अंग है. आदिवासी समुदाय में देवी-देवताओं और पुरखों के लिए किए जाने वाले अलग-अलग अनुष्ठानों में मुर्गे की बलि का रिवाज है.
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मुर्गे को स्थानीय जुबान में ‘कालामासी’ कहते हैं लोग
झाबुआ मूल के कड़कनाथ मुर्गे को स्थानीय जुबान में ‘कालामासी’ कहा जाता है. इसकी त्वचा और पंखों से लेकर मांस तक का रंग काला होता है. कड़कनाथ प्रजाति के जीवित पक्षी, इसके अंडे और इसका मांस दूसरी मुर्गा प्रजातियों के मुकाबले महंगी दरों पर बिकता है. जानकारों ने बताया कि दूसरी मुर्गा प्रजातियों के चिकन के मुकाबले कड़कनाथ के काले रंग के मांस में चर्बी और कोलेस्ट्रॉल काफी कम होता है, जबकि इसमें प्रोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा होती है. देश की जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री ने वर्ष 2018 में ‘मांस उत्पाद तथा पोल्ट्री एवं पोल्ट्री मांस’ की श्रेणी में कड़कनाथ चिकन के नाम भौगोलिक पहचान (जीआई) का चिन्ह पंजीकृत किया था.
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