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मध्य प्रदेश चुनाव : सत्ता का स्वाद छुपा है मालवा-निमाड़ में! 66 सीटों पर होगी सबकी नजर

कांग्रेस ने पिछले चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को पछाड़कर विधानसभा पर परचम फहराया तो विश्लेषकों ने इसका श्रेय खाने में स्वाद और बोली में मिठास के लिए मशहूर मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र में पार्टी की विजय को दिया था.

By Agency | November 6, 2023 3:49 PM

मध्य प्रदेश चुनाव : कांग्रेस ने पिछले चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को पछाड़कर विधानसभा पर परचम फहराया तो विश्लेषकों ने इसका श्रेय खाने में स्वाद और बोली में मिठास के लिए मशहूर मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र में पार्टी की विजय को दिया था. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, 15 जिलों में फैली 66 सीटों वाला पश्चिमी मध्य प्रदेश का मालवा-निमाड़ क्षेत्र 230 सदस्यीय विधानसभा तक पहुंचने की कुंजी रखता है, जहां कांग्रेस और भाजपा के बागी भी आगामी चुनावों में चौंका सकते हैं. कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र की 66 सीटों में से 35 सीटें जीतीं, जबकि 2013 में यह संख्या नौ थी. दूसरी और, भाजपा को भारी नुकसान हुआ और संख्या 57 (2013) से गिरकर 2018 में 28 हो गई.

हालांकि बाद में कांग्रेस की सरकार गिरी और जब राहुल गांधी के नेतृत्व वाली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को मध्य प्रदेश के 380 किलोमीटर के दायरे से गुजरना था, तो कांग्रेस ने इस यात्रा के लिए सोची समझी रणनीति के तहत इस क्षेत्र को चुना. विश्लेषकों का मानना है कि मालवा-निमाड़ क्षेत्र में अपनी बढ़त के कारण कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव में 114 सीटों के साथ बहुमत के करीब पहुंची और कमल नाथ के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाई. वरिष्ठ पत्रकार और इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस और भाजपा ने इस क्षेत्र में पैठ बनाने की कोशिश की है, लेकिन 2018 में यहां भाजपा के खराब प्रदर्शन का मुख्य कारण पार्टी के स्थानीय नेताओं के खिलाफ विरोध था.

मालवा-निमाड़ क्षेत्र में 15 जिले शामिल हैं, जिनमें 9 विधानसभा सीटों वाला इंदौर, उज्जैन (7), रतलाम (5), मंदसौर (4), नीमच (3), धार (7), झाबुआ (3), अलीराजपुर (2), बड़वानी (4), खरगोन (6), बुरहानपुर (2), खंडवा (4), देवास (5), शाजापुर (3) और आगर मालवा (2) शामिल हैं. राज्य की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 22 इसी क्षेत्र में हैं. पिछली बार कांग्रेस ने 15 सीटें जीतकर आदिवासियों के बीच अपना आधार बढ़ाया था, जबकि 2013 में पार्टी का छह विधानसभा क्षेत्रों पर कब्जा था. इसी अवधि में भाजपा की सीटें 15 से घटकर 2018 छह हो गईं.

तिवारी ने कहा कि मालवा-निमाड़ क्षेत्र के आदिवासियों के बीच अपनी पैठ मजबूत करने के लिए कांग्रेस और भाजपा ने पिछले कुछ वर्षों में कड़ी मेहनत की है. इस चुनाव में देखना होगा कि क्या भाजपा अपने निचले स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं के गुस्से और सत्ता विरोध पर काबू पा सकेगी. वरिष्ठ पत्रकार तिवारी कहते है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ग्रामीण इलाकों में जनता से जुड़ाव और उनकी सरकार की हाल ही में शुरू की गई लाडली बहना योजना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. उनके अनुसार एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर दोनों राजनीतिक दलों के बागी नतीजे बदल सकते हैं और अगर इन विद्रोहियों को पार्टी टिकट दिया गया तो उनमें जीतने की क्षमता है.

तिवारी ने कहा कि इंदौर-1, जहां से भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय चुनाव लड़ रहे हैं, के अलावा क्षेत्र की धार, बदनावर और खातेगांव जैसी सीटों पर भी करीबी मुकाबला दिखाई देता है. धार में, प्रदेश के पूर्व भाजपा अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा की पत्नी विधायक नीना वर्मा को फिर से उम्मीदवार बनाया गया है, जबकि पार्टी के पूर्व जिला प्रमुख राजीव यादव निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस के बागी कुलदीप सिंह बुंदेला और पार्टी की अधिकृत प्रत्याशी पूर्व विधायक बालमुकुंद सिंह गौतम की पत्नी प्रभा सिंह गौतम ने धार में मुकाबले को चतुष्कोणीय बना दिया है.

भाजपा के दिग्गज नेता दिवंगत कैलाश जोशी के बेटे और पूर्व मंत्री दीपक जोशी, जो हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं, देवास जिले के खातेगांव से सबसे पुरानी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. उन्हें स्थानीय कांग्रेसियों के विरोध का सामना करना पड़ा है. उज्जैन की बड़नगर सीट से कांग्रेस के बागी राजेंद्र सिंह सोलंकी मैदान में हैं, क्योंकि पार्टी ने उनकी जगह दूसरे उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया है. पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह चौहान समेत कई बागी नेताओं ने बुरहानपुर में मुकाबले को रोचक बना दिया है.

पूर्व कांग्रेस विधायक अंतर सिंह दरबार, जिन्हें टिकट से वंचित कर दिया गया था, महू (इंदौर जिले) से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस के एक अन्य बागी श्यामलाल जोक चंद मल्हारगढ़ (मंदसौर जिला) से राज्य के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस के दो बार के पूर्व विधायक और पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू आलोट (रतलाम जिले) में एक स्वतंत्र उम्मीदवार हैं, हालांकि कांग्रेस ने उनकी बेटी रीना बोरासी को इंदौर जिले के सांवेर से मैदान में उतारा है.

राज्य करणी सेना के प्रमुख जीवन सिंह शेरपुर, जो कांग्रेस से टिकट के लिए दावेदारी कर रहे थे, जावरा (रतलाम) से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि भाजपा से निष्कासित नेता धन सिंह बारिया झाबुआ से मैदान में हैं. अलीराजपुर से भाजपा के बागी सुरेंद्र सिंह ठकराल मैदान में हैं. पूर्व जनपद पंचायत अध्यक्ष और भाजपा के बागी पूरणमल अहीर जावद (नीमच जिले) से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. उद्योगपतियों के संगठन पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी ने पीटीआई-भाषा को बताया कि मालवा-निमाड़ क्षेत्र में कड़ा मुकाबला है. उन्होंने कहा कि 2013-2018 के बीच क्षेत्र में भाजपा की जमीन खिसकने का कारण सत्ता विरोधी लहर थी.

कोठारी ने कहा, इसके अलावा, मतदाताओं की अपेक्षाएं कई गुना बढ़ गई हैं क्योंकि लोग रेवड़ी (मुफ्त उपहार) को अपना अधिकार मानने लगे हैं. उन्होंने कहा, ”लड़ाई कठिन लग रही है और बीजेपी भी इसे महसूस कर रही है.’’ राज्य भाजपा उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक जीतू जिराती ने दावा किया कि वे 17 नवंबर के चुनाव में मालवा निमाड़ से 40-42 सीटें जीतेंगे. मप्र कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा ने कहा, ‘‘यह सच है कि 2013 में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब था. 2018 में, भाजपा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर गहराने के कारण पार्टी की स्थिति में सुधार हुआ. उन्होंने दावा किया कि इस बार लोग कमल नाथ को चुनना चाहते हैं जो एक भरोसेमंद चेहरा हैं.

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